[धोरैया (बांका) | अरूण कुमार गुप्ता ]:-
केन्द्र एवं राज्य सरकारें एक ओर जहां भोगोलिक दर्पण में उस जगह के खास चीज को समेट कर रख उसे वहां की खास पहचान बना रही है. सरकार की इस सोच की ही परिणति है मधुबनी पेंटिंग, मगही पान, भागलपुर के जर्दालु आम व कतरनी धान सहित कई अन्य उत्पाद हैं। जो संरक्षित हैं वहीं दुसरी ओर नक्शल प्रभावित क्षेत्र बांका जिला के धोरैया प्रखंड अंतर्गत सिंगारपुर गांव। यहां तकरीबन दो दशक पहले महिलाएं जहां हस्त करघा का उपयोग कर सुत काटती थी. और पुरूष इसे बुन कर कपड़ा जैसे लुंगी, गमछी, चादर, बेडशीट आदि बनाकर बाजार में बेचते थे. इनके गुणवत्ता और खुबसुरती की धमक आस पास के जिले के बाजारों में था.
वहीं आज स्टार्टअप इंडिया की कवायत हो रही है. नये बिहार पर पहल किया जा रहा है ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए स्कील इंडिया का आगाज हो रहा है. और जिसमें पहले से ही स्कील डवलप है, वह आज अपना घर द्वार छोड मुम्बई, मेरठ, कलकत्ता,़ हरियाना, बनारस दुसरे प्रदेशों में अपनी कारीगरी का हुनर दे रहे हैं। यहां पलायन करने से सिंगारपुर का खास पहचान अब इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया है. हुनर वंद कुछ बुजुर्ग महिलाएं अपने अपने हुनर सुत काटने की कला को अंदर में दफन कर खेत में मजदुरी कर रही हैं।