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गुरुवार, 14 नवंबर 2019

जयंती पर विशेष : समाजवाद की लड़ाई लड़ने वाले एक राजनीतिक योद्धा हुए स्व. दिग्विजय सिंह

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विशेष | नवनीत आनंद, बांका :
आज 14 नवम्बर ही के दिन 1955 में पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह का जन्म जमुई जिला के गिद्धौर राजपरिवार से सम्बन्ध रखने वाले घराने में हुआ था। उन्हें लोग प्यार और सम्मान से दादा बुलाते थे। उनकी राजनीतिक कर्मभूमि हमेशा बांका ही रही। उस समय जब मीडिया का प्रचलन आज के समय के विपरीत था, वैसे समय में भी आमजन के जहन में उनका नाम बसता था, अर्थात अखबारों की सुर्खियां उनकी लोकप्रियता का आधार नहीं थीं।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का प्रभाव भी नाम मात्र ही था। उनका करिश्माई व्यक्तित्व, संयोजन कुशलता और चेहरे पर विरोधियों तक के लिए मुस्कुराहट ही उन्हें आम से खास बनाता था। राजनीतिक दृष्टिकोण से बांका जिला आजतक उस सूनेपन को, या यूँ कहें उस कमी की भरपाई नहीं कर पाया है और शायद ही आने वाले समय में उसकी भरपाई हो सकेगी। जहाँ एक ओर उनकी राजनीतिक कर्मभूमि बांका में राजनैतिक कार्यक्षेत्र को लेकर उनके बाद समरसता का आभाव दिखता है, वहीं उनकी कार्यशैली और नेतृत्व क्षमता को याद कर जनमानस भाव-विभोर हो उठता है।

मंदार की धरती बांका को भारतीय रेल से जोड़ने का श्रेय दिवंगत नेता दिग्विजय सिंह उर्फ दादा को ही जाता है। ट्रेन की सौगात देकर उन्होंने बांका के लिये विकास के प्रति स्वर्णिम भविष्य की नींव रख दी थी। नेतृत्व मुख्य रूप से कार्यों को करने या संभव बनाने का विज्ञान है और उस विज्ञान को समझने में उनकी निपुणता सभी जगह परिलक्षित होती थी। नेता की उपस्थिति इसलिए जरूरी हो जाती है, ताकि लोग सामूहिक रूप से जहां पहुंचना चाहते हैं, वहां पहुंच जाएं।
वे ऐसे नेता थे जो अपनी व्यक्तिगत सीमाओं से आगे बढक़र सोचते थे, महसूस करते थे, और कार्य करते थे।जिसका परिणाम था कि सत्तात्मक परिप्रेक्ष्य के विपरीत भी जनता उनके साथ होती थी। जीवन का अनुभव और जीवन को देखने का तरीका, दिग्विजय सिंह के लिए वो भी व्यक्तिगत सीमाओं से परे था। अगर किसी तरह से आपने जीवन को भौतिकता की सीमाओं से परे महसूस करना शुरु कर दिया, तो आपमें बिना किसी खास कोशिश के, सहज रूप से नेतृत्व का गुण खिल उठेगा, क्योंकि राजघराने में पैदा होकर भी समाजवादी संघर्ष की भूमिका निभाना कोई आसान बात नहीं है। दिग्विजय सिंह एक ऐसे व्यक्तित्व हुए कि उन पर लिखने बैठ जाओ तो शब्द खत्म ही नहीं होते।

दादा की अनुभूति एक हवा के झोंके सी बांका को हमेशा छूती रहती है। वे बांका क्षेत्र ही नहीं अपितु सम्पूर्ण अंग क्षेत्र की राजनीति को प्रभावित करने वाले ऐसे महान विभूति हुए जिन्होंने अपने राजनैतिक कर्म को साधना के रूप में जीया। जिसका परिणाम ही है कि बांका के जन-जन की आत्मा उनकी अनुपस्थिति में भी अकेलापन महसूस नहीं करती। उनके व‍िचार आज भी प्रासंगिक हैं और आने वाले समय में भी लोगों को रास्‍ता दिखाते रहेंगे।
दादा दिग्विजय सिंह के करिश्माई व्यक्तित्व, संयोजन कुशलता और चेहरे पर विरोधियों तक के लिए मुस्कुराहट; साथ ही देश के लिए, बिहार के लिए और बांका के लिए आपका राजनीतिक योगदान अतुलनीय था, है और रहेगा जो आने वाले कई वर्षों तक युवाओं को हमेशा प्रेरित करता रहेगा।

- लेखक 'नई चौपाल' के संपादक हैं!
[साभार सहित चंद संशोधनों के साथ gidhaur.com पर प्रसारित]

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