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मौरा : महिलाओं के लिए आजीविका का आधार बना महुआ, दो महीने होती है कमाई

गिद्धौऱ | अभिषेक कुमार झा】:-

प्रखंड मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मौरा पंचायत की तकरीबन 40 फीसदी आबादी के लिए महुआ जीविका का आधार बना है।
लगभग दस हज़ार की आबादी वाले मौरा पंचायत में रोजगार की समुचित व्यवस्था न होने से यहाँ की कुछ युवा या तो पलायन कर जाते हैं, या स्वरोजगार की ओर उन्मुख हो जाते हैं। शेष घर की महिलाएं महुआ का संग्रहण कर परिवार की आजीविका चलाती है। 

महुआ पेड़ के नीचे रोजाना 4 घंटे समय बिताने वाली स्थानीय महिलाएं बताती हैं कि महुआ को सुखाकर 20-25 रुपए प्रतिकिलो की दर से बेचा जाता है। अप्रैल माह के सीजन में संग्रहित महुआ को इकट्ठा करके 30-40 दिन तक सुखाया जाता है और इस बीच जमा किये गए महुआ को बेचकर 5-8 हज़ार रुपये कमा लेती है।
जानवरों के खाने और उर्वरक के रूप में उपयोग के लिए महुआ को खरीदने आस पास इलाके के लोगों का मौरा आना जाना लगा रहता है।
मार्च से अप्रैल माह तक यह सिलसिला लगातार चलता है। महुआ चुनने में महिलाएं ही नहीं वरन पुरुष सदस्यों का भी सक्रिय  रहना मौरा में इस आजीविका की महत्वता पर प्रकाश डालती है।