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पूजा-आरती है वर्जित! जानिए क्यूँ शापित है सरयू नदी

धर्म एवं आध्यात्म | अनूप नारायण : 
आप रामायण का उत्तर कांड पढ़ों" उसमें स्प्ष्ट लिखा है तो कि सरयू शापित नदी है। उसमें स्नान करने का भी पुण्य नहीं मिलता। सरयू की पूजा वर्जित है , आरती वर्जित है।

तो सरयू के वर्जित होने का कारण है। श्रीराम ने सरयू नदी में स्वयं की इच्छा से समाधि ली थी।

यह सर्वविदित है कि भगवान रामचंद्र जी ने अपने तीनों भाइयों के साथ सरयू में जल समाधि लेकर ही अपनी इहलीला समाप्त की थी और उनके साथ ही उस अयोध्या का कण-कण , जीव जंतु कीड़े मकोड़े तक सरयू में समा गये थे और वह अयोध्या खत्म हो गयी थी।इसलिए शिवजी ने सरयू को श्राप दिया था कि हे सरयू ? अब अगर तुम्हारे जल में कोई आचमन भी करेगा तो नर्क का भागीदार होगा। तुम्हारा जल किसी भी पूजा में शामिल नहीं किया जाएगा , तुम्हारी कोई पूजा नहीं करेगा। क्योंकि तुम भगवान राम की मृत्यु का कारण बनी हो।"

रामायाण को सर्वप्रथम लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं कि यह भीषण श्राप पाकर सरयू नदी भगवान शिव के चरणों में गिर गई। बोली, प्रभु जो हुआ, वह विधि के विधान के कारण हुआ है। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। तब भगवान शिव ने सरयू से कहा, मैं केवल तुम्हें इतनी छूट देता हूँ कि अगर तुम्हारे जल में कोई स्नान करेगा, तो उसे पाप नहीं लगेगा। हां उसे पूण्य भी नहीं मिलेगा। पर पूरा श्राप सरयू नदी पर आज भी लागू है। कहीं भी यज्ञ होता है, तो उसके लिए सात नदियों का जल लाया जाता है। जिन सात नदियों का जल लाया जाता है, उनमें सरयू शामिल नहीं है। कुंभ, अर्धकुंभ जैसा कोई आयोजन सरयू के किनारे नहीं होता।
अयोध्या में ही जाकर पता कर लीजिए सरयू का जल वहां किसी भी मंदिर की पूजा में शामिल नहीं किया जाता। सभी नदियों की पूजा होती है, सरयू की नहीं होती। ज्ञानवान साधु संत सरयू में जाकर स्नान नहीं करते।

वे लोग अनाड़ी हैं, उन लोगों को हिंदू धर्म का कोई ज्ञान नहीं है, जो लोग सरयू की पूजा आरती करते हैं , उसमें स्नान करते हैं। हिन्दू धर्म की कमान ऐसे ही अनाड़ी और राजनैतिक साधुओं के हाथ में आ गई है जो चिंताजनक है।

सरयू नदी (अन्य नाम घाघरा, सरजू, शारदा) हिमालय से निकलकर उत्तरी भारत के गंगा मैदान में बहने वाली नदी है जो बलिया और छपरा के बीच में गंगा में मिल जाती है।अपने ऊपरी भाग में, जहाँ इसे काली नदी के नाम से जाना जाता है, यह काफ़ी दूरी तक भारत (उत्तराखण्ड राज्य) और नेपाल के बीच सीमा बनाती है।सरयू नदी की प्रमुख सहायक नदी राप्ती है जो इसमें उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बरहज नामक स्थान पर मिलती है। इस क्षेत्र का प्रमुख नगर गोरखपुर इसी राप्ती नदी के तट पर स्थित है और राप्ती तंत्र की अन्य नदियाँ आमी, जाह्नवी इत्यादि हैं जिनका जल अंततः सरयू में जाता है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा को अयोध्या में सरयू जयंती
सरयू की कुल लंबाई करीब 160 किमी है. हिंदुओं देवता भगवान श्री राम के जन्मस्थान अयोध्या से होकर बहने से हिंदू धर्म में इस नदी का विशेष महत्व है. सरयू नदी का वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है.

श्रीराम ने सरयू नदी में स्वयं की इच्छा से समाधि ली थी
यह रहस्य बहुत कम लोगों को मालूम है कि श्रीराम का अवसान कैसे हुआ। दरअसल यह एक रहस्य है जिसका उल्लेख सिर्फ पौराणिक धर्म ग्रंथों में ही मिलता है।

पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्रीराम ने सरयू नदी में स्वयं की इच्छा से समाधि ली थी। इस बारे में विभिन्न धर्मग्रंथों में विस्तार से वर्ण मिलता है। श्रीराम द्वारा सरयू में समाधि लेने से पहले माता सीता धरती माता में समा गईं थी और इसके बाद ही उन्होंने पवित्र नदी सरयू में समाधि ली। पद्म पुराण में दर्ज एक कथा के अनुसार, एक दिन एक वृद्ध संत भगवान राम के दरबार में पहुंचे और उनसे अकेले में चर्चा करने के लिए निवेदन किया। उस संत की पुकार सुनते हुए प्रभु राम उन्हें एक कक्ष में ले गए और द्वार पर अपने छोटे भाई लक्ष्मण को खड़ा किया और कहा कि यदि उनके और उस संत की चर्चा को किसी ने भंग करने की कोशिश की तो उसे मृत्युदंड प्राप्त होगा।

लक्ष्मण ने अपने ज्येष्ठ भ्राता की आज्ञा का पालन करते हुए दोनों को उस कमरे में एकांत में छोड़ दिया और खुद बाहर पहरा देने लगे। वह वृद्ध संत कोई और नहीं बल्कि विष्णु लोक से भेजे गए काल देव थे जिन्हें प्रभु राम को यह बताने भेजा गया था कि उनका धरती पर जीवन पूरा हो चुका है और अब उन्हें अपने लोक वापस लौटना होगा।

अभी उस संत और श्रीराम के बीच चर्चा चल ही रही थी कि अचानक द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए। उन्होंने लक्ष्मण से भगवान राम से बात करने के लिए कक्ष के भीतर जाने के लिए निवेदन किया लेकिन श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण ने उन्हें ऐसा करने से मना किया। ऋषि दुर्वासा हमेशा से ही अपने अत्यंत क्रोध के लिए जाने जाते हैं, जिसका खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ता है, यहां तक कि स्वयं श्रीराम को भी।

लक्ष्मण के बार-बार मना करने पर भी ऋषि दुर्वासा अपनी बात से पीछे ना हटे और अंत में लक्ष्मण को श्री राम को श्राप देने की चेतावनी दे दी। अब लक्ष्मण की चिंता और भी बढ़ गई। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार अपने भाई की आज्ञा का पालन करें या फिर उन्हें श्राप मिलने से बचाएं।

लक्ष्मण हमेशा से अपने ज्येष्ठ भाई श्री राम की आज्ञा का पालन करते आए थे। पूरे रामायण काल में वे एक क्षण भी श्रीराम से दूर नहीं रहे। यहां तक कि वनवास के समय भी वे अपने भाई और सीता के साथ ही रहे थे और अंत में उन्हें साथ लेकर ही अयोध्या वापस लौटे थे। ऋषि दुर्वासा द्वारा भगवान राम को श्राप देने जैसी चेतावनी सुनकर लक्ष्मण काफी भयभीत हो गए और फिर उन्होंने एक कठोर फैसला लिया।

लक्ष्मण कभी नहीं चाहते थे कि उनके कारण उनके भाई को कोई किसी भी प्रकार की हानि पहुंचा सके। इसलिए उन्होंने अपनी बलि देने का फैसला किया। उन्होंने सोचा यदि वे ऋषि दुर्वासा को भीतर नहीं जाने देंगे तो उनके भाई को श्राप का सामना करना पड़ेगा, लेकिन यदि वे श्रीराम की आज्ञा के विरुद्ध जाएंगे तो उन्हें मृत्यु दंड भुगतना होगा, यही लक्ष्मण ने सही समझा।

वे आगे बढ़े और कमरे के भीतर चले गए। लक्ष्मण को चर्चा में बाधा डालते देख श्रीराम ही धर्म संकट में पड़ गए। अब एक तरफ अपने फैसले से मजबूर थे और दूसरी तरफ भाई के प्यार से निस्सहाय थे। उस समय श्रीराम ने अपने भाई को मृत्यु दंड देने के स्थान पर राज्य एवं देश से बाहर निकल जाने को कहा। उस युग में देश निकाला मिलना मृत्यु दंड के बराबर ही माना जाता था।

लेकिन लक्ष्मण जो कभी अपने भाई राम के बिना एक क्षण भी नहीं रह सकते थे उन्होंने इस दुनिया को ही छोड़ने का निर्णय लिया। वे सरयू नदी के पास गए और संसार से मुक्ति पाने की इच्छा रखते हुए वे नदी के भीतर चले गए। इस तरह लक्ष्मण के जीवन का अंत हो गया और वे पृथ्वी लोक से दूसरे लोक में चले गए। लक्ष्मण के सरयू नदी के अंदर जाते ही वह अनंत शेष के अवतार में बदल गए और विष्णु लोक चले गए।

अपने भाई के चले जाने से श्री राम काफी उदास हो गए। जिस तरह राम के बिना लक्ष्मण नहीं, ठीक उसी तरह लक्ष्मण के बिना राम का जीना भी प्रभु राम को उचित ना लगा। उन्होंने भी इस लोक से चले जाने का विचार बनाया। तब प्रभु राम ने अपना राज-पाट और पद अपने पुत्रों के साथ अपने भाई के पुत्रों को सौंप दिया और सरयू नदी की ओर चल दिए।

वहां पहुंचकर श्री राम सरयू नदी के बिलकुल आंतरिक भूभाग तक चले गए और अचानक गायब हो गए। फिर कुछ देर बाद नदी के भीतर से भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। इस प्रकार से श्री राम ने भी अपना मानवीय रूप त्याग कर अपने वास्तविक स्वरूप विष्णु का रूप धारण किया और वैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान किया।

इसलिए शिवजी ने सरयू को श्राप दिया था कि
"हे सरयू ? अब अगर तुम्हारे जल में कोई आचमन भी करेगा तो नर्क का भागीदार होगा। तुम्हारा जल किसी भी पूजा में शामिल नहीं किया जाएगा , तुम्हारी कोई पूजा नहीं करेगा। क्योंकि तुम भगवान राम की मृत्यु का कारण बनी हो।"

"भीषण श्राप पाकर सरयू नदी भगवान शिव के चरणों में गिर गई। बोली, प्रभु जो हुआ, वह विधि के विधान के कारण हुआ है। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। तब भगवान शिव ने सरयू से कहा, मैं केवल तुम्हें इतनी छूट देता हूँ कि अगर तुम्हारे जल में कोई स्नान करेगा, तो उसे पाप नहीं लगेगा। हां, उसे पूण्य भी नहीं मिलेगा। पर पूरा श्राप सरयू नदी पर आज भी लागू है।"

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