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प्रतिभा और सादगी की मिश्रण है डीडी बिहार की एंकर शशि सिन्हा



[पटना]     ~अनूप नारायण
प्रतिभा किसी पहचान की मोहताज़ नही होती और जो प्रतिभावान होते हैं वे अपनी पहचान बना ही लेते हैं. ऐसे  ही रूप, गुण, प्रतिभा और सादगी की मिश्रण है डीडी बिहार की चर्चित एंकर शशि सिन्हा जी.
मूलतः सीतामढ़ी की शशि का जन्म पटना में ही हुआ और इन्होंने अपनी शिक्षा भी यहीं ग्रहण की.शशि के पिताजी सचिवालय में सीनियर ऑफिसर तथा माताजी एक कुशल गृहणी है. बचपन  से ही लिखने की शौक़ीन शशि अपने दादाजी और पिताजी को अपना आदर्श मानती हैं. उन्होंने बताया की उनके दादाजी श्री ने रामायण जैसे ग्रन्थ का उर्दू में अनुवाद किया था लेकिन किसी कारणवश वो छप न सका. वे बताती हैं की आज भी गाँव वाले घर पर दादाजी द्वारा लिखी हुई पुस्तके रखी हुई हैं. जब उनके दादाजी का स्वर्गवास हुआ तब वे बहुत छोटी थी लेकिन उनके पिताजी उन्हें दादाजी की कहानियाँ सुना कर प्रेरित किया करते थे और इसी का नतीजा है की शशि में लिखने की ललक जागी.

शशि ने 2005 में देश के चर्चित अख़बार हिंदुस्तान के लिए लिखना शुरू किया और तब से ले कर 2012 तक निरंतर इस क्षेत्र में सक्रीय रहीं. इस दौरान उनके 300 से भी ज्यादा आलेख प्रकाशित हुए और कई कवर स्टोरी भी छपी.2012 में कुछ पारिवारिक परिस्थितियों की वजह से उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी. जब घर की स्थिति सामान्य हुई तो वे  दूरदर्शन से जुड़ गई. यहाँ इन्होंनेे मेरा बिहार, क़ानूनी सलाह, गुमशुदा जैसे बड़े कार्यक्रम किये. फ़िलहाल आप इन्हें गाँव घर और कृषि दर्शन में देख सकते हैं. अपने अनुभवो को बताते हुए वो कहती हैं की उन्होंने जय प्रकाश नारायण के ऊपर एक फ़िल्म जो दूरदर्शन ने बनाई जिसमे इससे जुड़े कई हस्ती  के इंटरव्यू लिए. वे बताती हैं की ये उनके करियर का सबसे अच्छा अनुभव है. शशि मॉस कम्युनिकेशन के कोर्स के साथ साथ क्रियेटिव राइटिंग का भी कोर्स किया है.

संघर्ष की बात करते हुए शशि जी कहती हैं की इस मामले वे हमेशा भाग्यशाली रही है. उन्हें सदैव घर वालों का साथ मिला. वे कहती हैं की कई बार उन्हें पटना से बाहर जा कर काम करने के भी ऑफर मिले लेकिन कुछ मजबूरियों की वजह से वो वहाँ जाने में असमर्थ रही और इस बात का उन्हें ज़िन्दगी भर अफ़सोस रहेगा. इंटरव्यू के अंत में उन्होंने कहा की वे भगवान और हर उस इंसान की शुक्रगुज़ार हैं जिन्होंने किसी भी रूप में यहाँ तक आने में उनकी सहायता की.