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बांका : चिकित्सा का अभाव और अंधविश्वास ने ले ली दो मासूमों की जान

[gidhaur.com | धोरैया(बांका)] :- दुनिया आज चाँद तारे पे पहुचने की सोच रही है लेकिन आदिवासी समाज के ये लोग आज भी  झाड़ फूक की अंधविश्वास जैसी बातों पर विश्वास कर करती है। विरासत में मिली गरीबी का दंश झेल रहा आदिवासी परिवार अपना भरण पोषण करने के लिए घर द्वार छोड़ कर कुछ वर्षों से पुनसिया के गैरेज में मेकेनिकल का काम करता था। वहीं विनोद अपनी पत्नी रेन बसेरा एवं अपने तीन पुत्री एवं अपने दिल का टुकड़ा सबसे छोटे पुत्र के साथ पुनसिया में ही किराये के मकान में रहता था, लेकिन उसे क्या पता घर का चिराग ही हमलोगों को छोड़कर इस दुनिया से चला जायेगा।
सर्फ दंश के बाद दीपिका और उसके छोटे भाई रियांशु का इलाज समय रहते किसी सरकारी हॉस्पिटल में  कराया गया होता तो शायद उसकी जान बच सकती थी। लेकिन घटना के बाद मध्य रात्रि को बिनोद के पास अपने दोनों मासूम बच्चों की इलाज कराने के लिए सरकारी अस्पताल ले जाने का साधन नही होने से वह निजी चिकित्सक के चक्कर मे पड़कर एक नहीं बल्कि अपने दो बच्चों जिसमें एकलौते बेटे की जिंदगी बचाने के बजाय उसे मौत की नींद सुला दिया।
दीपिका के पिता बिनोद उसे बेहतर चिकित्सा की वजह झाड़ फूक कराने के लिए तेरह माइल रजौन ले कर गया। लेकिन करीब दो घंटे तक  ओझा के तंत्र मंत्र के चक्कर मे पड़कर अपने दोनों बच्चे को मौत के मुँह में समा गई। जबकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र धोरैया में सर्फ दंश की जीवन दायनी सुई मौजूद थी उसके उपरांत भी शिथिलता एवं अंधविश्वास के तराजू पर मासूमों के जान की भेंट चढ़ गई।
(अरुण कुमार)
बांका 13/06/2018, बुधवार
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