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जानिए कैसे खत्म हो गई बिहार की मिठास


Gidhaur.com:(पटना):- बिहार में उत्पादित चीनी विदेश के सरहदों को पार कर विदेशों तक में अपने उन्नत क्वालिटी के कारण पसंद की जाती थी। बाढ़ और सुखाड़ से जूझते बिहार में गन्ना की पैदावार किसानों के लिए किसी संजीवनी से कम न थी फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि बिहार के किसानों के आर्थिक पक्ष को उन्नत करने वाले चीनी मिलें एक-एक कर बंद होते चले गए। सरकार बदले हालात तो बदले,लेकिन अगर कुछ नहीं बदली तो वो है किसानों की किस्मत! बिहार में 28 चीनी मिलें हैं, जिसमें वर्तमान में 18 बंद पड़ी हैं। रैयाम (दरभंगा), लोहट (मधुबनी), मोतीपुर (मुजफ्फरपुर), गरौल (वैशाली), बनमनखी (पूर्णिया) की ये पांच चीनी मिलें बंद पड़ी हैं और शकरी तथा समस्तीपुर वाली मिलों को सरकार ने बंद कर दूसरा उद्योग लगाने को दे दिया है | इन पांचों मिलों को खोलने के लिए बिहार सरकार के द्वारा कुछ सकारात्मक पहल पिछले दस साल में की गयी, लेकिन अभी तक ये चालू नहीं हो पायीं। बिहार में सन् 1820 में चंपारण क्षेत्र के बराह स्टेट में चीनी की पहली शोधक मिल स्थापित की गई थी। 1903 से तिरहुत में आधुनिक चीनी मिलों का आगमन शुरू हुआ। 1914 तक चंपारण के लौरिया समेत दरभंगा जिले के लोहट और रैयाम चीनी मिलों से उत्पादन शुरू हो गया। 1918 में न्यू सीवान और 1920 में समस्तीपुर चीनी मिलों में काम शुरू हो गया।  इस प्रकार क्षेत्र में चीनी उत्पादन की बड़ी इकाइयां तो स्थापित हो गईं, लेकिन आजादी के बाद के वर्षो में सारी चीनी मिलें एक साजिश के तहत बंद कर दी गयीं।

2009 में सकरी और रैयाम को महज़ 27.36 करोड़ रुपये की बोली लगाकर लीज़ पर लेने वाली कंपनी तिरहुत इंडस्ट्री ने नई मशीन लगाने के नाम पर रैयाम चीनी मिल के सारे सामान बेच दिए। सन् 2009 में 200 करोड़ के निवेश से अगले साल तक रैयाम मिल को चालू कर देने का दावा करने वाली यह कंपनी मिल की पुरानी संपत्ति को बेचने के अलावा अब तक कोई सकारात्मक पहल नहीं कर सकी।
सारण प्रमंडल की एकमात्र औद्योगिक नगरी मरहौरा में चीनी के साथ ही साथ विश्व प्रसिद्ध माटन चॉकलेट का उत्पादन किया जाता था 90 के दशक में प्रबंधन के ढुलमूल  रवैया के कारण यह दोनों मिले बंद हो गई चीनी मिल को चालू करवाने के लिए राजनीति हुई आंदोलन हुए और इस इलाके से आने वाले सांसद चाहे वह सत्ता पक्ष में हो या विपक्ष के हो दोनों ने लोगों से वादा भी किया कालांतर में लालू प्रसाद यादव केंद्र में मंत्री बने और  उन्हें पराजित करने वाले भाजपा के राजीव प्रताप रूडी भी केंद्र में मंत्री बने तमाम घोषणा चुनावी वादे बनकर ही रह गए।अब तो आस भी टूट चुकी है।

अनूप नारायण
पटना
22.06.2018

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