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नालंदा : पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दे रही है नौजवानों की संस्था मिशन हरियाली

Gidhaur.com (नालंदा) : मिशन हरियाली ने बच्चों के माध्यम से हरियाली लाने की मुहिम आरंभ की है। न सरकार से अनुदान की मांग, ना ही अपने कार्यों के प्रसिद्धि का ख्वाब। बावजूद पूर्ण समर्पण के अपने मुहीम में जुटी है। नूरसराय प्रखंड के नौजवानों की एक संस्था जो न पंजीकृत है, न सरकार से अनुदानित। इस संस्थान के नौजवानों की सुबह सूर्य की लालिमा के साथ हो जाती है। मौसम कोई भी हो, दिनचर्या में कोई परिवर्तन नही। पौ फटने के साथ ही नौजवानों का यह दल अपने मिशन पर निकल पड़ता है। इनका मिशन पूरी दुनिया को प्रदूषण से बचाना है। इसलिए इन्होंने अपने मिशन का नाम रखा है 'मिशन हरियाली'।

प्रखंड में बढ़ती गर्मी, भूजल क्षरण तथा पर्यावरण में होने वाले अनावश्यक परिवर्तन ने इन्हें मिशन की ओर प्रेरित किया। आज इनके परिश्रम का फल सुख-शांति और शीतलता के रूप में लोगों को मिल रही है। पूरे प्रखंड में यह संस्था अब तक एक लाख से अधिक पौधे लगा चुकी है।

नौजवानों की संस्था है मिशन हरियाली
मिशन हरियाली में कुल पच्चीस समर्पित नौजवान हैं। जो अपने विभिन्न कार्यों में संलग्न हैं। इस संस्था में कोई बैंक अधिकारी है तो कोई व्यवसायी। हर महीने वे अपनी कमाई का एक छोटा हिस्सा मिशन को जीवन देने के लिए अनुदानित करते हैं। उनकी ही राशि से हर महीने हजारों पौधे मंगाए जाते हैं। ताकि मुफ्त में पौधे बांटे जा सके। मिशन के लोग सूर्य की लालिमा के साथ ही अपने मिशन पर निकल पड़ते हैं किसी के हाथ में फावड़ा तो कोई कुदाल तो कोई खुरपी लिए पौधे लगाने तथा लगे पौधे के संरक्षण में जुट जाते हैं।

बच्चों के माध्यम से पर्यावरण को बचाने की मुहिम
मिशन के हरियाली के सदस्य राजीव लोचन कहते हैं कि बच्चें पौधों के सबसे बड़े संरक्षक होते हैं। इसलिए बच्चों के द्वारा पर्यावरण को बचाने की मुहिम उन्होने आरंभ की है। विद्यालय-विद्यालय घूम कर बच्चों को मुफ्त में पौधे दिए जाते हैं। जब बच्चे पौधे लगाते हैं तो वे किसी भी कीमत पर उसे सूखने नहीं देना चाहते। अब तक बच्चों के बीच तीस हजार से उपर पौधे बांट चुकी है यह संस्था। राजीव लोचन कहते हैं कि विद्यालयों में जब बच्चों से फल के बारे में पूछा जाता है तो पूरी विद्यालय में सन्नाटा छा जाता है। क्योंकि बच्चों से पुल दूर हो चुके हैं। परिणाम कुपोषण की संख्या में वृद्धि हुई है।

प्रदूषण के आंकड़े डरावने
हाल ही में पूरी दुनिया के करीब 186 देशों के 15 हजार वैज्ञानिक एक मंच पर जुटे। बढ़ते प्रदूषण को कारण टटोलने तथा उसका हल निकालने । लेकिन जो आंकड़े उन्होंने प्रस्तुत किए वो वाकई डराने वाले थे। उन्होंने कहा कि जीवन के अब चंद वर्ष शेष रह गए हैं। हमें अब अपनी गलती का फल मिलने वाला है। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस विकट स्थिति की सूचना आज से पच्चीस वर्ष पहले ही दी जा चुकी थी । लेकिन इतने वर्षों में सचेत होने की बजाए हमने 300 मिलियन एकड़ जंगल का सफाया कर दिया। उन्होंने कहा कि वायुमंडल किसी देश या महादेश की सीमा से नहीं बंधी है। किसी भी देश से उठने वाले प्रदूषण किसी
भी देश को प्रभावित कर सकता है।

जिले का भी पर्यावरण खतरे में
जिले में वन आच्छादित क्षेत्रों का प्रतिशत 1.18 प्रतिशत है। यह हैरानी की बात है कि वृक्षों की इतनी कम संख्या के बाद भी लोग ¨जयदा हैं। जीवन के लिए कम से कम 33 प्रतिशत वन आच्छादित क्षेत्र होने चाहिए। यह आंकड़ा 1950 का है जब धरती पर प्रदूषण के स्त्रोत काफी कम थे। आज प्रदूषण की मात्रा इतनी बढ़ गई है। वन आच्छादित क्षेत्रों के मानक फेल हो चुके हैं।

अनूप नारायण
28/02/2018, बुधवार

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