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प्रकृति की आराधना का महापर्व छठ उदयीमान सूर्यदेव को अर्घ्य के साथ संपन्न


Gidhaur.com (छठ पूजा विशेष) : चार दिनों तक चले भगवान भास्कर के उपासना का महापर्व छठ का समापन शुक्रवार को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हुआ। इसके साथ ही अनगिनत श्रद्धालुओं का व्रत संकल्प पूर्ण हुआ। नहाय खाय के साथ शुरू हुए पर्व में तीन दिनों तक व्रतियों ने निर्जला उपवास रखकर भगवान सूर्य की आराधना की।
लाखों श्रद्धालुओं ने दिया उगते सूर्य को अर्घ्य
शुक्रवार की सुबह गिद्धौर के उलाई नदी का तट व्रतियों के तप से तीर्थ बन गया। आस्था के इस कुम्भ में हर कोई शामिल होने को उत्सुक नजर आया। महिलाओं, बच्चों सहित घर के वरिष्ठ लोगों के कदम भी अहले सुबह छठ घाट की ओर बढ़ते दिखे। हर कोई छठ मैया को अर्घ्य देकर उनका आशीर्वाद पाने को लालायित नजर आया। चार दिनों तक चले छठ महापर्व के अंतिम दिन प्रखंड भर के लाखों श्रद्धालुओं ने उगते सूर्य को अर्घ्य दिया।

सूर्य की सतरंगी किरणों से हुआ ऊर्जा का संचार
लगभग 4 बजे से ही नदी के किनारे व्रतियों का आना शुरू हो गया। परिवार के लोग सर पर फलों और सब्जियों से सजे सूप-दउरा लेकर नंगे पांव छठ घाट पहुंचे। गुनगुनी ठंढ के बीच हलके से कुहासे को चीरती सूर्य की सतरंगी किरणें जैसे ही उलाई नदी के किनारे बने छठ घाटों पर चमकीं, व्रतियों में नई ऊर्जा का संचार हो गया। 
शुद्धता का रखा जाता है विशेष ध्यान
इस पूजा में नियम-निष्ठा का बड़ा महत्व है। लोकानुसार सूर्य देव की पूजा में किसी प्रकार की चूक नहीं होनी चाहिए। प्रकृति की उपासना के इस पर्व में साफ़-सफाई और शुद्धता का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। सूर्य को तत्काल फल देने वाला देवता माना गया है।
सूर्यदेव को अर्घ्य देने उमड़ा अद्भुत जनसैलाब
कई व्रती दंडवत देते हुए भी छठ घाट पहुंचे। कुहासे और ठंढ के बीच प्रकृति भी अठखेलियां करती नजर आईं। भगवान भास्कर कुहासे की चादर ओढ़े व्रतियों की परीक्षा लेते नजर आये। हौले-हौले से बह रही कंपकंपी वाली हवा और पैरों को भिगो रहे पानी के बीच खड़े व्रतियों और उनके परिवारजनों की सूर्यदेव ने कड़ी परीक्षा ली। ऐसा लग रहा था आज उन्होंने कुहासे की चादर न हटाने की ज़िद ठान ली हो। लेकिन सात रंगों के रश्मि रथ पर सवार सूर्यदेव आज जब धरती पर अवतरित हुए तो उनके स्वागत के लिए अद्भुत जनसैलाब उमड़ पड़ा। साक्षात् देव को अर्घ्य देने के लिए असंख्य हाथ हवा में लहराने लगे।

सुमधुर आवाज और दीपों से जगमगाए घाट
किंवदंतियों के अनुसार छठ महापर्व को भगवान सूर्य के जन्मोत्सव के रूप में माना जाता है और इसलिए जैसे ही भगवान सूर्य ने लोगों को दर्शन दिया, पूरा वातावरण दमकने लगा। छठ मैया के जयकारों और शंख-घंटों की सुमधुर आवाज से नदी का किनारा गूंजने लगा। असंख्य दीपमालाओं से घाट जगमगाने लगे। ऐसा लग रहा था मानों टिमटिमाते दिए भगवान सूर्यदेव के धरती पर आगमन के लिए उनके रथ को रास्ता दिखा रहे हों।
महिलाओं ने गाए छठ गीत, लोक कल्याण की हुई प्रार्थना
छठ मैया के स्वागत में महिलाओं ने मंगलगीत गाये। क्षेत्रीय भाषा के इन गीतों में भगवान सूर्य और छठ मैया से लोक कल्याण और सभी के मनोकामनाओं के पूर्ति की प्रार्थना की गई।
सूर्य की तरह तपाकर व्रतियों ने मांगी मनोकामना
मान्यता है कि सूर्य सृष्टि के संरक्षक हैं तो छठी मैया संतान की रक्षक। सूर्य खुद तपकर दूसरों की जिंदगी को रौशन करते हैं। बिना सूर्य के इस जगत की कल्पना भी नहीं की जा सकती। छठ पूजा भगवान सूर्य के इस उपकार के ऋण चुकाने का पर्व है। इसलिए खुद को सूर्य की तरह तपाकर व्रतियों ने सुख, समृद्धि और उन्नति की कामना के साथ भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया।
नई बहुओं ने कहा, तेज और शक्ति का प्रतीक है सूर्य
महिलाओं ने कहा कि अपने परिवार की सुरक्षा, मंगलकामना एवं आध्यात्मिक परंपरा के निर्वहन के लिए सदियों से यह पर्व होता आया है। पहली बार छठ व्रत कर रही गांव की कुछ बहुओं के अनुसार सूर्य तेज और शक्ति का प्रतीक है और यह प्रतीक महिलाओं में अधिकतर होती है। तीन दिनों तक कठिनाई पूर्वक निर्जला रहने की यह शक्ति उन्हें ही होती है, क्योंकि छठ का यह त्यौहार काफी नियम और धर्म के साथ किया जाता है।

गिद्धौर में दो जगहों पर स्थापित हुए भगवान सूर्य
उलाई नदी के दुर्गा मंदिर घाट एवं घनश्याम बाबा रोड घाट किनारे भगवान सूर्यदेव की प्रतिमा स्थापित की गई जहाँ व्रतियों एवं श्रद्धालुओं ने श्रद्धापूर्वक पूजा-आराधना की।

महाप्रसाद के रूप में ग्रहण किया गया ठेकुआ
श्रद्धालुओं ने पूजा समापन के बाद घाट किनारे ही महाप्रसाद के रूप में ठेकुआ ग्रहण किया। 60 घंटों के उपवास का यह महापर्व छठ मैया की कृपा से सकुशल संपन्न हुआ।

(सुशान्त साईं सुन्दरम)
गिद्धौर      |      27/10/2017, शुक्रवार
www.gidhaur.com
(सभी तस्वीर फेसबुक/व्हाट्सऐप्प से साभार)

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