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लंदन यूनिविर्सटी में प्रोफेसर की नौकरी छोड़ बिहार की बेटी कर रही है रेशम के पौधे की खेती

मधुलिका चौधरी आज हजारों बुनकर परिवारों को दे रही है रोजगार के अवसर...

विशेष/व्यक्तित्व (अनूप नारायण) :
अगर इन्सान ठान ले तो वह क्या कुछ नहीं कर सकता है. वह भी किसी कार्य को करने की इच्छा हो तो उसके सामने कुछ भी नहीं है. चाहे वह कठिनाई में हो या फिर किसी अन्य क्षेत्रों में धनोपार्जन क्यों नहीं कर रहा हो, वह अपने इच्छा के अनुसार कार्य कर ही लेता है.

कुछ इस तरह की ही कहानी है, बिहार के कटिहार जिले के फलका के गांधी ग्राम बरेटा की मधुलिका चौधरी की, जिन्होंने 3 वर्ष पहले लंदन यूनिविर्सटी में प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर गांव के लिए कुछ करने का सपना देखा.

पिता को है गर्व अपनी बेटी पर पिता नवल किशोर चौधरी का कहना है कि उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है. तीन साल पहले मधुलिका अपने गांव आई और यहां की हरियाली और खेती ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि वह यहीं की हो कर रह गई. मधुलिका चौधरी ने साढ़े पांच एकड़ जमीन पर रेशम के पौधे की खेती की शुरुआत की है.

खेती से पहले यह जमीन बंजर थी, पर आज उसमें हरे भरे पौधे लहलहा रहे हैं. मधुलिका ने रेशम के पौधे की खेती को दिन दुनी, रात चोगुनी तरक्की दी.

देश की माटी की खुशबू मधुलिका चौधरी को यहां खींच लाई
मधुलिका चौधरी अपने देश की मिट्टी की खुशबू के कारण वापस आई. भारत में बुनकरों सहित महिलाओं को आत्म निर्भर और सशक्त बनाना उनका मकसद है. इस काम में उनके माता-पिता और परजिनों के साथ उनके विदेशी साइंटिस्ट पति डॉ. डेविट टोनेंटो का सहयोग मिल रहा है. मधुलिका ने बताया कि वह अपने प्रयास से गांव की बाकी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाना चाहती है.

अगर सब ठीक रहा तो जल्द ही अपने गांव गांधी ग्राम में रेशम उद्योग लगाएगी. मधुलिका ने मिशन "चलो अपने गांव की ओर" पर बल देते हुए तथा बापू के सपने को साकार करने के उद्देश्य से भारत में बुनकरों को सशक्त बनाने की ठान ली है.

दिल्ली में बड़ी बहन तूलिका चौधरी के सहयोग से लूम प्लांट उद्योग तथा ऑनलाइन शॉपिंग तथा भारत में कई जगह दिल्ली, भोपाल, बंगलौर, कोलकाता सहित कई बड़े शहरों में शोरूम खोलकर रेशम, खादी से बने हैंडलूम तथा रंग बिरंगे कपड़े की बिक्री की शुरूआत की है. मधुलिका आज हजारों बुनकर परिवारों को रोजगार दे रही है.