■ रिपोर्ट : चंद्रशेखर सिंह
◆ संपादन : अपराजिता
अलीगंज प्रखंड के क्षेत्र में लंपी स्किन डिजीज बीमारी से पशुपालक काफी परेशान होते दिख रहे हैं। प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांव से पशुओं में काफी तेजी से यह बीमारी गाय, भैंसो में फैल चुकी है।
पशु पालक ब्रह्मदेव सिंह, गोरेलाल यादव, अर्जून सिंह, मनोज यादव, मंटु सिंह, सुरेश यादव, नगीना चंद्रवंशी, पोलसी यादव, सहित दर्जनों पशुपालकों ने बताया कि जानवरों में ऐसे कई नई बीमारी, लंपी स्किन डिजीज ने पशुओं को परेशान कर रखा है। जिससे पुरे प्रखंड वासियों में पशु पालको को इस बीमारी से काफी भयभीत व दहशतजदा है। लंपी स्किन डिजीज बीमारी क्या है और किन पशुओं को प्रभावित करता है, इसके लक्षण क्या है
लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी होती है, जो गाय-भैंसो में होती है। लंपी स्किन डिजीज में शरीर पर गाठ बनने लगती है। खासकर सिर, गर्दन और जननांगों के आसपास धीरे धीरे ये गाठे बडी होने लगती है खासकर सिर, गर्दन और घाव बन जाता है।
एलएसडी वायरस मच्छरों और मक्खियों जैसे चूसने वाले कीड़ों से आसानी से फैलता है। साथ ही ये दुषित पानी, लार और चारे के माध्यम से भी फैलता है। यदि पशुओं में लंपी स्किन डिजीज बीमारी होती है तो दुधारू पशुओं में दुध उत्पादन कम होने लगती है।
वैसे तो अभी तक लंपी स्किन डिजीज बीमारी से ग्रसित पशुओं में तेज बुखार आ जाता है। दुधारू पशु दूध देना कम कर देता है। मादा पशुओं का गर्भपात हो जाता है।पशुओं की मौत भी हो जा रही है।
क्या लंपी स्किन डिजीज बीमारी से ग्रसित पशुओं गाय-भैंस के दुध का सेवन करना सुरक्षित है?
वैसे तो लंपी स्किन डिजीज बीमारी से ग्रसित पशुओं से इन्सानो में बीमारी फैलने की कोई मामला सामने नही आया है। लेकिन फिर भी पशु चिकित्सक सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो बाजार से दूध खरीदकर कम-से-कम सौ डिग्री सेंटिग्रेट तक गरम करना या उबालना चाहिए। दूध में मौजूद घातक वैकटीरिया और वायरस को खत्म करने के लिए सिर्फ यही नुक्शा काफी है। इसलिए लंपी स्किन डिजीज बीमारी से ग्रसित पशुओं के दूध पीने से पहले सावधानियो पर अमल करना फायदेमंद रहता है।
लंपी स्किन डिजीज के संक्रमण को कैसे रोके
अगर एक पशु में संक्रमण हुई तो दुसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं। ये बीमारी मच्छर, मक्खी, चारा के जरिए फैलती है। रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए। लंपी स्किन डिजीज बीमारी से मरने वाली मवेशियों को डिसपोजल सही तरीके से करें।
अगर इस बीमारी से ग्रसित पशुओं की मौत हो जाती है तो उसके बाडी के सही तरीके से डिसपोज करना चाहिए ताकि ये बीमारी ज्यादा न फैले इसलिए पशु की मौत के बाद जमीन में अच्छी तरह दफना देना चाहिए।
समाजसेवी सह अधिवक्ता शशिशेखर सिंह मुन्ना बताया कि अलीगंज प्रखंड में पशु चिकित्सक नही है। वर्षों से प्रभार में चल रहा है। जो महीने दो महीनों पर भी दर्शन नहीं देते है। जिससे पशुपालको में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
कई ग्रामीणों ने बताया कि अगर पशुओं में कोई बीमारी हो जाती है तो चिकित्सक नही रहने से कोई सलाह नहीं मिल पाती है। यहां कौन प्रभार में है जिसके बारे में किसी को भी पता तक नही है।
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