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बुधवार, 26 मई 2021

सिमुलतला : जरूरतमंदों को नहीं मिल रहा मुफ़्त राशन, अनाज लेने कार से आ रहे कार्ड वाले

सिमुलतला/जमुई (Simultala/Jamui) | मुकेश कुमार [इनपुट : सोनू कुमार | Edited by: Jaya] : लॉकडाउन में गरीब तबके से लेकर मध्यम वर्ग के परिवारों के सामने दो वक्त की रोटी के लिये एक तरफ जहां रोजगार के सारे दरवाजे बन्द हो गए हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार द्वारा दिए जा रहे मुफ्त राशन के लिये जरूरत मंदों को राशन कार्ड भी नहीं निर्गत हो पाया है। सरकार की व्यवस्था कहें या विभागीय मुलाजिमों की लापरवाही कि पिछले वर्ष कोरोना काल में ही जीविका दीदीयों द्वारा हर घर से राशन कार्ड बनाने के लिये दस्तावेज इकट्ठा किया गया, जिसने विभागीय कार्यालय में ही दम तोड़ दिया।

दुबारा पुनः सरकारी फरमान जारी हुआ और जरूरत मन्द लोगों ने आयप्रमाण पत्र, आवासीय प्रमाणपत्र, फ़ोटो ऑन लाइन करवाने के बाद प्रखण्ड कार्यालय में बड़ी मशक्कत के बाद जमा किया, लेकिन इसके बावजूद भी जरूरतमन्दों को राशन कार्ड तक मुहैया नहीं हो सका। भीषण कोरोना महामारी के इस वैश्विक आपदा में भी वैसे जरूरतमन्द जिन्हें राशन कार्ड निर्गत नहीं है और आधार नम्बर पर भी तकनीकी त्रुटियां हैं, उन्हें राशन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। ऐसी स्थिति में एक बार फिर से क्षेत्र के गरीब, असहाय एवं मजदूर परिवार दाने दाने के मोहताज हो गए है। राशन कार्ड के आभाव में ऐसे लोगों को जनवितरण का भी लाभ नही मिल पा रहा है लोग भुखमरी के चौखट पर खड़े है।
वहीं शुक्रवार को उस वक्त सबकी आंखें खुली की खुली रह गई जब कनौदी पैक्स के जनवितरण दुकान पर एक युवक फ्री का राशन लेने खुद की कार लेकर आया था। उसे देखकर हर कोई स्तब्ध था। मुफ्त का राशन लेकर बाहर निकले युवक ने निकट के एक दुकान में चावल बेच दिया और गेंहू अपने कार की डिक्की में डालकर चलते बना। यह दृश्य देखकर आसपास के लोगों में चर्चा होने लगी कि जरूरतमंदों को खाने के लिए अनाज नहीं है और शायद जिन्हें जरूरत नहीं है उन्हें सरकार फ्री में अनाज दे रही है।

पत्रकारों से बातचीत में नाम ना छापने के शर्त पर युवक ने बताया कि चावल की गुणवत्ता अच्छी नही होती है इसलिए उसे ₹14 प्रति किलो के दर से बेच दिए। ऐसे भी हमलोगों के खेतों में भी चावल की उपज होती है, जिससे साल भर का गुजारा हो जाता है। गेहूं का इस्तेमाल घर में होता है, इसलिए इसे घर लेकर जाएंगे।
उक्त जन वितरण प्रणाली के सामने इस दृश्य को देखकर मीडियाकर्मियों द्वारा आसपास के इलाके में गरीब एवं असहाय परिवारों की वर्तमान स्थिति जानने की कोशिश की गई। जिसमें यह देखा गया कि इस क्षेत्र में दर्जनों ऐसे परिवार हैं जिन्हें दो वक्त का भोजन नसीब नहीं है। इसी क्रम में खुरंडा पंचायत के गोपलामारण गांव निवासी मजदूर पिन्टू पुझार से बातचीत की गई। उसने बताया कि वे एक छोटी सी झोपड़ी में अपनी पत्नी कालो देवी एवं चार बच्चे के साथ रहते है। उसने कहा कि मैं मजदूरी करता हूं और पत्नी जंगल से पत्ता तोड़कर बेचती है। फिर किसी तरह घर चल जाता है। यातायात के लिए घर मे साइकिल तक नहीं है। राशन कार्ड के लिए कई वार आवेदन दिए लेकिन कार्ड नही बना। कार्ड के अभाव में राशन भी नही मिलता है। इस लॉकडाउन में मजदूरी का काम भी नही मिलता है और ना ही जंगल के पत्तों की बाजारों में मांग है। इस परिस्थिति में हमारे घर में दोनों वक्त का चूल्हा जलना मुश्किल हो गया है।

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