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विधानसभा चुनाव 2020 : चाय की दुकानों पर लग रही चुनावी चक्कलस


न्यूज़ डेस्क | शुभम मिश्र】 :- चुनाव की चर्चा हो और चौक के चाय दुकान पर चुस्की भरी चुनावी चकल्लस न चले ये मुनासिब नहीं है। लोकतंत्र के जनतंत्र की प्रत्यक्ष, स्वतंत्र संसदीय चर्चा तो जनता चाय दूकान पर ही करती है। वही,  एक ऐसा स्थान होता है जहां जनता जनार्दन अपनी भावाभिव्यक्ति को निडरतापूर्वक प्रकट करती है एवं एक-दूसरे की राय जानकर,प्रतिनिधियों के कार्यकाल के कार्यकलाप का मूल्यांकन करती है। इसमें कोई संशय नहीं है कि राजनीति की प्राथमिक पाठशाला चाय दुकान को ही कहा जाता है। वर्तमान चुनाव की बात की जाय तो बिहार में तीन चरणों में चुनाव होने को हैं। पहले चरण के टिकट बांटने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। बिहार में राजनीति के परिदृश्य में जमुई जिले को " हाॅटस्पाट " माना जाता है। लोग कयास लगाते हैं कि यहीं से बिहार की राजनीति शुरू होती है और अंत भी। इसलिये यहां के लिये दलीय टिकट निर्धारित करना किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं है। 



इस बार के चुनाव में अबतक जमुई जिले के चारों विधानसभा क्षेत्रों में किसी भी पार्टी से टिकट कंफर्म करने की विधिवत घोषणा नहीं हुई है। दलीय प्रत्याशी घोषित नहीं होने से समाजवाद की राजनीतिक सीमाओं में भी सकारात्मकता का संचार क़ायम रखने वाले कई राजनीतिक सूरमाओं में भी दलीय टिकट लेने की ऊहापोह देखी जा रही है


- टिकट पर टिकी है निगाहें -

।प्रत्येक नेताओं के चहेतों द्वारा सोशल मीडिया एवं चाय की चौपालों पर अपने ईष्ट के प्रशंसागान गाये जा रहे हैं। वे लोग उनके टिकट कंफर्म होने की बात ज़ोर-शोर से किये जा रहे हैं। लेकिन सूत्रों की मानें तो एनडीए एवं महागठबंधन में टिकट कंफर्म करने की फ़ाइनल प्रक्रिया हो चुकी है ; पर अबतक किसी भी दल द्वारा विधिवत घोषणा नहीं की गई है।

वहीं, दलीय कार्यकर्ताओं द्वारा क्षेत्रीय मंथन कर जनता के नब्ज़ टटोलकर अमृत रूपी समर्थन एवं विष रूपी विरोध की पहचान की जा रही है । 


- यथावत है जनता की समस्याएं -


क्षेत्रीय समस्याओं की बात की जाय तो वो सिर्फ चुनावी मौसम में ही सुने जाते हैं। या यूं कहें कि वो बे मौसम की बारिश के समान होते हैं , जिसे तात्कालिक आश्वासन रूपी छतरी से बचने का प्रयास किया जाता है। पिछले कई वर्षों से जिले के खैरा-सोनो मुख्य मार्ग 333ए पर अवस्थित नरियाना पुल एवं मांगोबंदर पुल जो बनने के कुछ वर्षों बाद ही क्षतिग्रस्त हो गया था । प्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों की जानकारी में होने के बाबजूद भी आज तक अपने उद्धारकर्ता का वाट जोह रहा है। जबकि क्षेत्रीय लोगों द्वारा हर बार अपने वर्तमान एवं पूर्व के प्रतिनिधियों को इससे अवगत कराया गया था। वहीं चकाई की बात करें तो बहुद्देशीय बरनार जलाशय योजना जिसे जिले के कृषिकों के रीढ़ की हड्डी कही जाती है ; आज तक अपने भविष्य को गर्भ में तालाश रही है।वहीं, झाझा विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत गिद्धौर थाना से स्टेशन तक की सड़क ने सभी सरकारी क्रियाकलापों की पोल खोल दी है। जिले का लगभग 90% स्वास्थ्य केंद्र खुद बीमार पड़ा है, जबकि बच्चों के भविष्य को संवारने वाली सरकारी शिक्षण संस्थान का भविष्य खुद अधर में है। सरकारी कार्यालय भी कुव्यवस्था के शिकार हैं। कुल मिलाकर बात की जाय तो इन पांच वर्षों में जो अनुमानित विकास होने को था वो नहीं हो पाया है। सभी दलीय नेताओं द्वारा आजतक अपनी डफली अपना राग ही अलापा जा रहा है। 

खैर जो हो, इस वर्ष चुनावी महासंग्राम का बिगुल बज चुका है। चुनावी युद्धभूमि मत की प्यासी है। कुशल सेनापति अग्रिम हुंकार भरने को तैयार हैं। अब यह देखना है कि इस राजनीतिक उठापटक में जमुई की जनता सत्ता की चाभी किसके हाथों में सौंपती है।

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