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शनिवार, 9 मई 2020

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 480वीं जयंती पर विशेष

पटना | अनूप नारायण :
महाराणा प्रताप का जन्म 1540 ई. मे राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। महाराणा व मुगल बादशाह अकबर के बीच हुआ हल्दी घाटी का युद्ध काफी प्रसिद्ध है। क्योंकि इस युद्ध को इतिहास के कई बड़े युद्धों से बड़ा माना गया है। मालूम हो कि यह युद्ध 18 जून 1576 में चार घंटों के लिेए चली थी जो काफी विनाशकारी साबित हुई थी।बताया जाता है कि हल्दी घाटी की युद्ध में वीर महाराणा के पास सिर्फ 20 हजार सैनिक थे वहीं मुगल राजा अकबर के पास 85 हजार सैनिक थे। युद्ध काफी भीषण था, लेकिन महाराणा ने हार नहीं मानी। वे मातृभूमि को आक्रांताओं से बचाने के लिए संघर्ष करते रहे। बताया जाता है कि इस युद्ध में महाराणा ने 81 किलो के भाले का प्रयोग किए थे। वहीं उनकी छाती पर 72 किलो का भारी कवच था। वे दो तलवार भी रखे थे जिनका वजन 208 किलो बताया जाता है।अक्सर कविताओं में महाराणा प्रताप के घोड़े का जिक्र हमनें सुना है, उनके घोड़े का नाम चेतक था जो उन्हें अत्यधिक प्रिय था। बता दें कि चेतक अपने स्वामी का बहुत वफादार था वह युद्ध में होशियारी के साथ महाराणा को बचाता था व दुश्मनों को छका देता था। कहा जाता है कि महाराणा अपने चेतक पर सवार होकर लड़ाई कर रहे थे वहीं मान सिंह हाथी पर सवार होकर लड़ाई कर रहे थे। राणा ने मान सिंह पर भाले से प्रहार किया और वो उन्हें न लगकर उनके महावत को लग गई।
महावत के सूढ़ में लगी तलवार से चेतक बुरी तरह घायल हो गया और चेतक को घायल देख मुगल सेना महाराणा पर तीरों की बरसात कर दी। चेतक के पैरों से बुरी तरह खून बह रहा था फिर भी वो महाराणा को सुरक्षित स्थान तक छोड़ आया। महाराणा तो बच गए लेकिन उनका वीर चेतक हृदयाघात आने की वजह से वहीं पर शहीद हो गया। चेतक के मरने से महाराणा प्रताप बहुत दुखी हुए, युद्ध के बाद उन्होंने चेतक की स्मारक बनवाई।हल्दीघाटी का युद्ध इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध माना जाता है। यह युद्ध इसलिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि एक हिंदू राजपूत राजा एक हिंदू राजपूत राजा के सामने लड़ रहा था। इस युद्ध में महाराणा के खिलाफ अकबर के तरफ से मानसिंह मैदाने जंग में थे। यह युद्ध 18 जून 1576 को हल्दीघाटी में लड़ा गया था। युद्ध तपती दुपहरी में लड़ा जा रहा था। शुरू में मान सिंह को लगा कि राजपूत, मुग़लों पर भारी पड़ रहे हैं।तभी मुगल सेना का एक लड़ाका मिहतार खां ने पीछे से चिल्लाकर कहा कि बादशाह अकबर खुद बड़ी सेना के साथ युद्ध में मोर्चा संभालने आ रहे हैं। इतना सुनते ही मुगल सेना का मनोबल बढ़ गया और वे मैदान में राजपूतों का सामना करने लगे और मिहतार खां के इस अफवाह ने राजपूतों का मनोबल गिरा दिया और मुगल सेना इस युद्ध में भारी पड़ी और इस युद्ध में महाराणा को हार का सामना करना पड़ा।हल्दी घाटी छोड़ कर राणा प्रताप गोगुंडा के पश्चिम में एक कस्बे कोलियारी में पहुंचे वहां उनके घायल सैनिकों का इलाज किया जा रहा था। प्रताप को पता चल गया था कि यहां भी मुगल की सेना पहुंच जाएगी। इसीलिए वे वहां से अपने परिवार व फौज को सुरक्षित जगह भेज दिए और 20 सैनिकों को किले की सुरक्षा के लिए लगा दिए। वे 20 जवान मुगलों से लड़ते हुए शहीद हो गए। प्रताप को युद्ध की आशंका पहले ही थी इसीलिेए उन्होंने गोगुंडा की राशन रूकवा दी थी जिसके बाद मुगल सेना को खाने के लाले पड़ गए थे। कहा जाता है कि इसके बाद मुगल सेना अपने घोड़ों को मारकर खाने लगे। इतिहास की कई पुस्तकों में हल्दीघाटी की लड़ाई का जिक्र है, जिसमें मुगलों की स्पष्ट जीत पर अलग-अलग मत हैं कुछ इतिहासकारों का कहना है कि स्वयं बादशाह अकबर भी इस लड़ाई से खुश नहीं थे। कहा जाता है कि युद्ध में जनरल रहे मान सिंह, आसफ खां व काजी खां को अकबर ने दरबार में आने से मना कर दिया था। बताया जाता है कि महाराणा की तरफ से मुस्लिम युद्ध नीति बनाने वाला एक मुस्लिम था जिसका नाम हाकिम खां सूर था और वे युद्ध में भाग भी लिए थे।कहा जाता है कि युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने अपनी युद्ध नीति बदल दी और वे मुगलों पर घात लगाकर हमला करने लगे। कहा जाता है कि महाराणा एक साथ सौ जगहों पर रहते थे क्योंकि मुगलों पर हमला करके वे जंगलों में बने गुप्त रास्ते से निकलकर कहीं छुप जाते थे। इतिहासकारों के अनुसार सन् 1596 में महाराणा शिकार खेल रहे थे उसी दौरान चोट लगी जिससे वो कभी उबर नहीं पाए और 19 जनवरी, 1598 को मात्र 57 वर्ष की आयु में अमर वीर का देहांत हो गया

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