पंजाब, बंगाल व बिहार में हिरासत में ज्यादा मौतें, यूपी ने नहीं दिए आंकड़े : रिपोर्ट - gidhaur.com : Gidhaur - गिद्धौर - Gidhaur News - Bihar - Jamui - जमुई - Jamui Samachar - जमुई समाचार

Breaking

Post Top Ad - Contact for Advt

Post Top Ad - Sushant Sai Sundaram Durga Puja Evam Lakshmi Puja

मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

पंजाब, बंगाल व बिहार में हिरासत में ज्यादा मौतें, यूपी ने नहीं दिए आंकड़े : रिपोर्ट


10 DEC 2019
नई दिल्ली : मानवाधिकार दिवस पर जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पंजाब, पश्चिम बंगाल और बिहार में सबसे ज्यादा हिरासत में मौतें (कस्टोडियल डेथ) हुई हैं। खास बात यह कि पुलिस की कारगुजारियों के लिए सुर्खियों में रहने वाले उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड जैसे राज्यों ने इस तरह के आंकड़े ही उपलब्ध नहीं कराए हैं।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की यह रिपोर्ट राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोगों की वार्षिक रिपोर्ट और आरटीआई से मिली जानकारियों पर आधारित है। ये आंकड़े 1993-94 से लेकर 2018-19 के बीच के हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में 1993-94 से वर्ष 2018-19 तक हिरासत में 31845 मौतें दर्ज हुई हैं, जबकि राज्य मानवाधिकार आयोग के आंकड़े इससे अलग हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की इस रिपोर्ट ने देश में मानवाधिकारों की सुरक्षा को लेकर सरकारों की सजगता की कलई खोलकर रख दी है।

खास बात यह कि राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोगों में इस दौरान मानवाधिकार हनन के लाखों मामले दर्ज हुए। वर्ष 1993-84 से 2018-19 के दौरान राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में जहां 18.31 लाख मामले दर्ज हुए, वहीं विभिन्न राज्य मानवाधिकार आयोगों में इनकी संख्या 18.89 लाख रही।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के सिर्फ 13 राज्यों में ही राज्य मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष के पद पर किसी की नियुक्ति है। जबकि आयोग में प्रशासनिक कार्यो से जुड़े कुल 835 में से 286 पद खाली हैं। अरुणाचल, मिजोरम और नगालैंड में अब तक राज्य मानवाधिकार स्थापित नहीं हुआ है।

रिपोर्ट से भारतीय पुलिस में नागरिकों के विश्वास को लेकर बड़े सवाल उठ खड़े हुए हैं। पंजाब, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और तमिलनाडु जैसे पांच राज्यों में सबसे ज्यादा संख्या में पुलिस हिरासत में मौतें हुई हैं।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक रामनाथ झा ने आईएएनएस को बताया, "मानवाधिकार हनन के आरोपों की स्वतंत्र रूप से जांच करने का कार्य राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोग को सौंपा जाता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष ने स्वीकार किया है कि मानवाधिकार आयोग बिना दांत के शेर से ज्यादा कुछ नहीं है। इसलिए जरूरत है कि मानवाधिकारों के इन संरक्षकों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए अत्यधिक शक्तिशाली बनाया जाए।"

मानवाधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को मनाया जाता है। दरअसल, इसी दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अपनाया था, जिसके बाद से हर साल इस तिथि को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है, ताकि दुनिया में मानवाधिकारों को लेकर जागरूकता फैले और लोगों को उनके अधिकारों को लेकर सजग किया जा सके।

Post Top Ad -