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रविवार, 3 नवंबर 2019

महाराष्ट्र : शिवसेना नहीं मानी तो क्या भाजपा राष्ट्रपति शासन का कदम उठाएगी?

मुंबई : महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ सरकार बनाने में आ रही अड़चनों के बीच भाजपा ने अन्य विकल्पों पर विचार शुरू कर दिया है। गतिरोध और लंबा खिंचने पर भाजपा राष्ट्रपति शासन का भी कदम उठा सकती है। महाराष्ट्र के निवर्तमान वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार के बयान से भी ऐसे संकेत मिलते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि पार्टी की सोची-समझी रणनीति के तहत सुधीर ने यह बयान दिया। भाजपा सूत्रों के मुताबिक, राष्ट्रपति शासन लगने के बाद भी पार्टी शिवसेना के साथ बातचीत जारी रख सकती है। अगर इस अवधि में बातचीत सही मुकाम पर पहुंचेगी तो फिर राष्ट्रपति शासन हटाकर सरकार बनाने का कभी भी फैसला हो सकता है। दरअसल, पार्टी को लगता है कि 24 अक्टूबर को नतीजे आने के 10 दिनों बाद भी सरकार न बनने से राज्य सियासी भंवर में फंसा हुआ है, जिससे गलत संदेश जा रहा है।
भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के एक पदाधिकारी ने आईएएनएस से कहा, "भाजपा सत्ता की भूखी नहीं है। चूंकि जनादेश भाजपा-शिवसेना महायुति(महागठबंधन) के पक्ष में है तो हम सरकार बनाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं, मगर ताली दोनों हाथ से बजती है। बात नहीं बनी तो पार्टी के घुटने टेकने से बेहतर कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाए। तब भी हम महाराष्ट्र की जनता की बेहतर ढंग से सेवा कर सकेंगे।"
भाजपा की ओर से राष्ट्रपति शासन पर विचार करने के संकेत देने के बाद शिवसेना मुखर हो उठी है। शिवसेना ने अपने पास 145 विधायकों का समर्थन होने की बात कहते हुए भाजपा पर भड़ास निकाली है। भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार के राष्ट्रपति शासन वाले बयान को शिवसेना ने जनादेश का अपमान बताया है।
शिवसेना ने शनिवार को भाजपा को आगाह किया कि राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख है। भाजपा की ओर से राष्ट्रपति या राज्यपाल के कार्यालय का दुरुपयोग करने का कोई भी प्रयास "देश के लिए खतरा" है।
गौरतलब है कि देवेंद्र फडणवीस सरकार में वित्तमंत्री रहे सुधीर मुनगंटीवार ने शुक्रवार को कहा था कि यदि महाराष्ट्र में सात नवंबर तक सरकार नहीं बनती है, तो ऐसी स्थिति में राज्य में राष्ट्रपति शासन लग सकता है।
भाजपा नेता पर निशाना साधते हुए शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा, "राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख है.. वह किसी की जेब में नहीं है। इस तरह की धमकी देना जनता के जनादेश का अपमान है।"
उन्होंने दोहराया कि शिवसेना अपने गठबंधन की प्रतिबद्धताओं को भाजपा के साथ 'अंतिम क्षण तक' सम्मान देगी। लेकिन इसके बाद 'रूको और देखो' की नीति को नहीं अपनाया जाएगा।

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