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सोमवार, 20 मई 2019

संपादकीय : चुनावी नतीजों के निहितार्थ, जनादेश का खेल

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[gidhaur.com | अभिषेक कुमार झा]      :-
             
लोकतंत्र के महामहोत्सव का परिणाम 23 मई को आ जायेंगे। परिणाम की अनुकूलता-प्रतिकूलता के हिसाब से प्रसन्नता और खिन्नता की दस्तक होगी। 543 सीटों के लिए कहीं प्रसन्नता अपनी सुगंध बिखेरती नजर आयेगी, तो कहीं खिन्नता झुंझलाहट के रूप में ! जीतने वाले प्रत्याशी और उनके समर्थक खुशी से झूमते नजर आयेंगे, तो हारनेवाले प्रत्याशी और उनके समर्थक हताश-निराश नजर आयेंगे। परिणाम जब सामने आयेंगे, तो अनेक भ्रांतियां धराशायी होंगी। खुशफहमियां ढ़हेंगी...और बड़बोलेपन का यथार्थ से सामना होता नजर आएगा। कौन विजयी होगा..? किसकी पराजय होगी..? इस बात को लेकर देशभर में चर्चा अपने चरम पर है। मतदान करने को लेकर भी लोगों की अलग-अलग समझ होती है। कोई यह देख कर वोट डालता है कि देश का प्रधानमंत्री कौन होगा..? तो कोई यह देख कर वोट डालता है कि उसका प्रत्याशी कौन है..? कई लोग तो विकास से परे, पूर्वजों की परंपराओं को देखते हुए दल विशेष को वोट देते हैं। उन्हें देश हित से कोई मतलब नहीं होता। दरअसल, ऐसे लोगों को रुढ़िवादी होने के कारण समझाना बमुश्किल होता है। ये अपनी परम्पराओं के प्रति काफी दृढ़ संकल्पित होते हैं। वरन कुछ लोग तो सुरत और सीरत को देख कर वोट देते हैं। कारण पूछने पर उनके चेहरे की सुन्दरता व व्यक्तित्व का  बखान करते हैं। जबकि,ज्यादातर ऐसे लोग भी होते हैं जो सर्व हित को देखकर वोट देते हैं। 

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अभिप्राय यह कि मतदाताओं के वोट डालने का कोई निश्चित तौर-तरीका नहीं रहता। मतदाताओं के मनोनुकूल  तरीकों के कारण लम्बे समय से ऐसा ही चलता आ रहा है। यद्यपि, आज देश की जनता काफी जागरूक हो चुकी है। वह अपने बुनियादी मुद्दे भली-भांति समझ रही है। उसे खूब पता है कि किस तरह के प्रत्याशी का वह चुनाव करेगी, तो उसके विकास और खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होगा। पिछली सरकार ने यदि अच्छा कार्य किया है, तो जनता निश्चित रूप से उसे ही पुन: सत्ता सौंपेगी। लेकिन, यदि वह उसकी अपेक्षाओं की कसौटी पर खरा नहीं उतरी है, तो बदलाव करने से भी नहीं हिचकिचायेगी। 2019 के चुनावी दंगल में उतरे प्रत्याशी चाहे किसी भी पार्टी के हों, यदि अपने क्षेत्र में उन्होंने काम किया है, तो फिर परिणाम को लेकर उन्हें चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन, यदि उन्होंने काम नहीं किया है, तो फिर उन्हें अवश्य चिन्तित होना चाहिए, क्योंकि तब तो उन्हें न कोई बड़ा नाम ही जिता पायेगा, न ही उनकी जाति ही, उन्हें जीत दिला पायेगी। धर्म-मजहब और पूजा-इबादत का फंडा भी उन्हें जीत की दहलीज पर नहीं पहुंचा पायेगा।
अभिप्राय यह कि मुश्किलें उनकी अवश्य बढ़ेंगी, जिन्होंने जनकल्याणकारी मुद्दों से सरोकार नहीं रखा।जो लोक जनकल्याण की दिशा में पूरी निष्ठा से जुड़े रहे, कार्य करते रहे, वे हर हाल में सफल होंगे... सफलता उनके कदम चूमेगी ही, संसद में भेजेगी ही; इसमें संशय की रत्तीभर गुंजाइश नहीं है। आने वाली सरकार से जनता की अपेक्षा तो रहेगी ही। अब देखना यह है कि चुनावी नतीजों में क्या निहितार्थ छुपा है...?

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