(सिमुलतला | गणेश कुमार सिंह) :-
बिहार सहित संपूर्ण देश में विपरीत-विषम परिस्थितियों के बीच गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का परचम लहराने वाला ''सिमुलतला आवासीय विद्यालय'' एक बार फिर सूर्खियां में है। किंतु, यह सूर्खियां किसी उपलब्धि के कारण नहीं है, बल्कि लाख मना करने के बावजूद एंड्रॉयड मोबाइल रखने व उसे पकड़े जाने के बाद संबंधित छात्रों द्वारा विद्यालय में उपद्रव करने, उनके द्वारा विद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, मार्निंग असेंबली को हाइजैक करने, विज्ञान शिक्षक विजय कुमार व सामाजिक विज्ञान शिक्षक डा. प्रवीण कुमार सिन्हा , के आवास पर संबंधित छात्रों द्वारा दबिश देने , हिन्दी शिक्षक डा. सुधांशु कुमार के साथ विद्यालय कैप्टन 'सुशांत सात्विक' द्वारा अनुशासन हीनता के साथ पेश आने , मेस समिति के सदस्य परवेज मुशर्रफ द्वारा डा. सुधांशु कुमार का खाना रोके जाने और इन अनुशासन हीनता के कारण खुद पर विद्यालय की अनुशासन समिति द्वारा संभावित कार्रवाई से बचने हेतू गंभीर पिटाई का अभिनययुक्त वीडियो क्लिप संबंधित छात्रों द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल करने के कारण सूर्खियों में है।
विदित हो कि यह विद्यालय शिक्षकों की क्राइसिस से जूझ रहा है । नौ वर्षों के उपरांत वहां के शिक्षकों को न वेतनमान मिला, न सेवाशर्त, परिणामस्वरूप अबतक लगभग एक दर्जन शिक्षक विद्यालय छोड़ चुके हैं । जो हैं , वह इस विश्वास के साथ रेत में एड़ियां रगड़ रहे हैं कि पानी यहीं से निकलेगा। दिन हो , रात हो, सुबह या शाम हो, या अंधर तूफान, सभी परिस्थितियों में चौबीसों घंटे शिक्षक बच्चों के साथ लगे रहते हैं । जब आधी रात को किसी बच्चे की तबीयत अत्यधिक बिगड़ गयी तो नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के बावजूद अपनी जान जोखिम में डालकर शिक्षक उन बच्चों को आवश्यकतानुसार जंगलों से होते हुए झाझा या देवघर ले जाते हैं । अब कल्पना कीजिए कि यदि उन शिक्षकों के साथ कुछ अनहोनी घट जाती है तो कल होकर उनकी बीवी और बच्चे सड़क पर ! क्योंकि इस कठिनतम जगह पर नौकरी करने के बावजूद सरकार की तरफ से अभी तक न इंश्योरेंस पॉलिसी करवायी गयी है और न ही उनका ईपीएफ अकाउंट, और अनुकंपा की व्यवस्था ही है ...यह तो छोड़िए ...अभी तक तो यह भी निर्धारित नहीं है कि यदि किसी शिक्षक को कुछ हो जाता है तो उनके यतीम बच्चे इस विद्यालय में पढ़ सकेंगे या नहीं ? निष्कर्षतः वह बिहार सरकार के अन्य नियोजित शिक्षकों से भी बुरी तरह रहने को अभिशप्त होने के बावजूद शिक्षक जिस समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा का परिचय दे रहे हैं, उसका प्रतिदान उन्हें यही मिला कि मोबाइल पकड़े जाने व उसे नष्ट किए जाने के उपरांत कुछ लोगों के बहकावे में आकर संबंधित सीनियर छात्रों ने डाॅ. सुधांशु कुमार के साथ अनुशासनहीनता का परिचय दिया और अगले दिन जब अनुशासन समिति के सामने परवेज व अन्य छात्रों को प्रस्तुत किया गया, कार्रवाई सुनिश्चित की गयी तो कल होकर किसी अभिनेता की तरह चोटिल होने का अभिनय करते हुए मीडिया के माध्यम से उसके अभिभावकों को खबर कर दिया गया कि उसे बेरहमी से पीटा गया । अब प्रश्न यह उठता है कि छात्रावास के भीतर से उसके अभिभावकों को खबर करने के लिए मो. नं. किसने उपलब्ध कराए ? इसकी उच्चस्तरीय जांच की माँग उपप्राचार्य सुनील कुमार करते हुए कहते हैं कि - जिस प्रकार बढ़ा चढ़ाकर इस मामले को तूल दिया गया , हास्टल के भीतर से मीडिया कर्मी को मो. नं. उपलब्ध कराकर विद्यालय की विधि व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करने की कोशिश की गयी , इसकी गहन जाँच करके दोषियों पर विधिसम्मत कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए । " यह स्वाभाविक है कि किसी भी अभिभावक को उसकी संतान की बेरहमी से पिटाई की खबर दी जाय , वह भी किसी तीसरे व्यक्ति के द्वारा तो कोई भी अभिभावक परेशान हो सकते हैं , माँ बेचैन हो जाएगी । हुआ वही । उन्होंने प्राचार्य डा. राजीव रंजन को फोन करके तल्ख शब्दों में प्रश्न किया कि आपने अभी तक मेरे बेटे को डाक्टर से क्यों नहीं दिखलाया ? चूंकि ऐसी कोई बात थी ही नहीं । बावजूद इसके अभिभावक की संतुष्टि के लिए दुरूह जंगल और स्थान होने के बावजूद एक शिक्षक और विद्यालय स्वास्थ्य कर्मी के साथ वह परवेज को लेकर एक निजी अस्पताल में डाॅ. से दिखाकर आधीरात को लौटे ।
कल होकर अभिभावक विद्यालय में पहुंचे। अनुशासन समिति , शिक्षक व मीडिया कर्मियों के सामने पिता से जब पूछा गया कि आपने अपने बेटे को एंड्रायड मोबाइल क्यों दिया, तो पिता ने इनकार और माँ ने स्वीकार कर लिया । अब उन अभिभावकों को कौन समझाए कि एंड्रॉयड मोबाइल आज के किशोर और उनके भविष्य को किसी भयावह दानव की तरह लील रहा है । वे किशोर उसके माध्यम से, अश्लील वीडियो में धँसते हैं तो धँसते चले जाते हैं। बच्चे अपने माता-पिता को इस बिंदु पर राजी कर लेते हैं कि वह इंटरनेट के माध्यम से पाठ्य सामग्री का अध्ययन करेंगे। किंतु होता कुछ और है जो पकड़े गए कई मोबाइल में मिला । कई आपत्तिजनक चीजें, जो न विद्यालय की और न उन छात्रों की गरिमा के अनुकूल थी ।
खैर, जब एक माँ ने इस अवस्था में बेटे को देखा तो उसके अभिनय को समझ न पाई, असहज हो गयी। किंतु जब उसकी छाती देखी गयी तो सबकुछ सामान्य पाकर अभिभावकों के साथ माँ भी तुरंत सामान्य हो गयी । बातचीत के क्रम में एक क्षण के लिए परवेज भूल गया कि उसे किस प्रकार अपना अभिनय जारी रखना है, और वह उपप्राचार्य पर जोरदार आवाज में आरोप लगाने लगा कि आपने मेरी छाती पर मारा है। जिसके मुँह से कुछ देर पहले आवाज नहीं निकल रही थी , वह अचानक दुरुस्त आवाज में आरोप लगाने लगा !! यह देख मीडिया कर्मी सहित कई उपस्थित लोग अपनी मुसकुराहट रोक नहीं पाए , चले गए ।
» प्लान 'A' के फ्लाप होने के बाद बारी थी प्लान 'B' की «
कुछ देर बातचीत के बाद अनुशासन समिति ने निर्णय लिया कि उसे फिलहाल अभिभावकों के साथ भेज दिया जाय । फलस्वरूप जब उसे कपड़े वगैरह लेने के लिए हाॅस्टल भेजा गया तो उसी क्रम में कुछ छात्रों के सहयोग से अपने बेड पर दर्द से कराहती हुई अवस्था में वीडियो क्लिप बनवा लिया जिसे शाम होते-होते सोशल मीडिया पर तल्ख टिप्पणी के साथ वायरल कर दिया गया। कटघरे में उपप्राचार्य सुनील कुमार के साथ डाॅ. जयंत कुमार , डाॅ. प्रवीण कुमार सिन्हा , डाॅ. सुधांशु कुमार को खड़ा कर कई तरह के निशाने लगाए गए , तरह - तरह के विशेषणों से विभूषित किया गया। विपरीत और विषम परिस्थितियों में सरकार की घोर उपेक्षा के बावजूद अपने कर्तव्य-निर्वहण के इस पुरस्कार को पाकर एक व्यक्ति का कलेजा तो दो टूक हो गया किंतु उनके भीतर का शिक्षक अपने कर्तव्य पर अडिग था। उस वायरल वीडियो का क्लिप ध्यान से देखा गया तो पाया गया कि उसे तैयार करने वाले के हाथ की मध्यमा ऊँगली में एक मास्सा है । प्राचार्य डान. राजीव रंजन व अन्य शिक्षकों ने जब छात्रावास में जाकर सीनियर छात्रों की ऊँगली चेक की तो वह छात्र मिल गया , जिसकी उस संबंधित ऊँगली में मास्सा था । पूछताछ करने पर उसने यह स्वीकार कर लिया कि परवेज मुशर्रफ के कहने पर तीन छात्रों ( वर्ग 11 का सन्नी व नवनीत एवं वर्ग 10 के अभिनव ) के साथ यह वीडियो क्लिप बनाया गया । उनके अनुसार परवेज अपने साथ उस मोबाइल को ले गया ।