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गुरुवार, 20 सितंबर 2018

सच्चाई और बलिदान का पर्व है मुहर्रम, यहाँ जानिए इतिहास

पटना (अनूप नारायण) : इस्लाम धर्म में मुहर्रम का बड़ा ही महत्व है जो हमें त्याग, बलिदान और मानव धर्म के प्रति समर्पण का संदेश देता है।

बात आज से 1338 साल पहले की है। इस्लाम धर्म पर प्रभुत्व कायम करने के लिए पैगंबर मोहम्मद साहब परिवार को चुनौती देते हुए उम्मय्या वशं के यजीद समर्थकों ने पैगंबर साहब के नाती इमाम हुसैन पर दबाव बनाने लगे। यजीद चाहते थे कि इस्लाम का नेतृत्व हम करें। लेकिन इमाम हुसैन ने इसे अस्वीकार कर दिया। क्योंकि वह जानते थे की यजीद मोहम्मद साहब के बताए गए सत्य, निष्ठा और मानव सेवा के रास्ते से भटक सकता है। इसलिए उन्होंने समर्पण नहीं किया। इस्लामिक कैलेंडर 61 हिजरी 10 मोहर्रम, यानी 10 अक्टूबर 680 ईसवी को इराक की राजधानी बगदाद से करीब 90 किलोमीटर दूर करबला नामक स्थान पर यजीद ने इमाम हुसैन को अपनी अधीनता स्वीकार करने की आग्रह किए और वे जब नहीं माने तो उन्हें वहीं पर मौत के घाट उतार दिया गया। इससे पहले यजीद ने उन्हें 3 दिनों तक भूखे-प्यासे रहकर अपनी अधीनता स्वीकार कराने की कोशिश की थी, लेकिन धर्म के रास्ते पर चलते हुए इमाम हुसैन ने उनकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी। इमाम हुसैन साहब से पहले भी उनके परिवार के सभी सदस्यों को बलिदान होना पड़ा था।अन्तिम समय में इमाम हुसैन के साथ एक छोटी टुकड़ी थी लेकिन वह टुकड़ी बड़ी ही आत्मविश्वास के साथ हजारों सैनिक वाले यजीद के साथ डटकर मुकाबला किया था।

दरअसल यजीद ने खुद अपने पिता को भी मौत के घाट उतार कर अपने आप को खलीफा घोषित किए थे और बड़ी सेना तथा बड़ी ताकत वाले यजीद चाहते थे की इमाम हुसैन भी उसके खिलाफत को स्वीकार कर लें। शिया मुसलमान के लिए मक्का के बाद कर्बला सबसे पवित्र स्थान माना जाता है, जहां की इमाम हुसैन 72 साथियों के साथ शहीद हुए थे।

मोहर्रम बलिदान, शहादत और त्याग को याद करने का दिन है। मोहर्रम हिजरी का पहला और सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस दौरान शिया समुदाय के लोग मातम मनाते हैं और अफसोस जाहिर करते हैं कि काश इमाम हुसैन साहब के साथ उस दिन बलिदान देने के लिए हम भी होते! बेबीलोनिया सभ्यता के अनुसार कर्बला का शाब्दिक अर्थ ईश्वर का पवित्र स्थान होता है। इस स्थान पर दुनिया का हर शिया मुसलमान एक बार जरूर जाना चाहता है। सत्य के लिए अपनी जान निछावर कर देने वाले इमाम हुसैन साहब के साथ घटी इस घटना से जुड़ा हुआ है मोहर्रम का पवित्र पर्व।

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