[पटना] ~अनूप नारायण
ये फोटो सोन नद के डेहरी स्थित एनिकट का है जहां आज से करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व बिहार के वर्तमान रोहतास, कैमूर, बक्सर, भोजपुर, औरंगाबाद, अरवल तथा पटना जिला के लिए भाग्य रेखा एक अंग्रेज फौजी अभियंता ने खिंची थी और इसी भाग्य रेखा के बदौलत पटना, गया और शाहाबाद प्रक्षेत्र आज खुशहाल है।
दरअसल 1857 में शाहाबाद की धरती पर कुंअर सिंह एवं अन्य लोगों ने अग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध विद्रोह किया तो उनके बाद यहां के लोगों को रोजगार देने के लिए सोन नहर प्रणाली की नींव रखी गई। फौजी अभियंता लेफ्टीनेंट जनरल सी. एच. डिकेन्स ने 1857 के विद्रोह के बाद1860 में इस्ट इन्डिया कम्पनी के आदेश पर शाहाबाद क्षेत्र का सर्वे कराकर एक रिपोर्ट तैयार किया और वह रिपोर्ट 1861 में वह प्रस्तुत किया। उसी रिपोर्ट के आधार पर डेहरी के एनीकट में 12469 फुट लम्बा 120 फुट चौड़ा तथा सधारण जलस्तर से आठ फुट उच्चा बांध बनाकर1873 तक नहरों का निर्माण कर पानी भी छोड़ दिया गया था। इन नहरों से सिंचाई के अलावे यातायात एवं माल ढ़ुलाई के लिए कोयला से संचालित स्टीमर को भी चलाया जाता था। उस समय यह विश्व का सबसे उत्तम नहर प्रणाली था जिसे देखने और अध्ययन करने के लिए अमेरिका के इंजीनियरों का एक दल यहां आया था।
इसके बेसिन में बालू जमने के बाद करीब दस किलोमीटर उपर इन्द्रपुरी में बराज बनाकर 1965 में संयोजक नहर के द्वारा एनीकट के नहरों को जोड़ा गया।
आज वही एनीकट डेहरी के लोगों के लिए घूमने का सबसे पसंदीदा स्थान बना हुआ है।
दरअसल 1857 में शाहाबाद की धरती पर कुंअर सिंह एवं अन्य लोगों ने अग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध विद्रोह किया तो उनके बाद यहां के लोगों को रोजगार देने के लिए सोन नहर प्रणाली की नींव रखी गई। फौजी अभियंता लेफ्टीनेंट जनरल सी. एच. डिकेन्स ने 1857 के विद्रोह के बाद1860 में इस्ट इन्डिया कम्पनी के आदेश पर शाहाबाद क्षेत्र का सर्वे कराकर एक रिपोर्ट तैयार किया और वह रिपोर्ट 1861 में वह प्रस्तुत किया। उसी रिपोर्ट के आधार पर डेहरी के एनीकट में 12469 फुट लम्बा 120 फुट चौड़ा तथा सधारण जलस्तर से आठ फुट उच्चा बांध बनाकर1873 तक नहरों का निर्माण कर पानी भी छोड़ दिया गया था। इन नहरों से सिंचाई के अलावे यातायात एवं माल ढ़ुलाई के लिए कोयला से संचालित स्टीमर को भी चलाया जाता था। उस समय यह विश्व का सबसे उत्तम नहर प्रणाली था जिसे देखने और अध्ययन करने के लिए अमेरिका के इंजीनियरों का एक दल यहां आया था।
इसके बेसिन में बालू जमने के बाद करीब दस किलोमीटर उपर इन्द्रपुरी में बराज बनाकर 1965 में संयोजक नहर के द्वारा एनीकट के नहरों को जोड़ा गया।
आज वही एनीकट डेहरी के लोगों के लिए घूमने का सबसे पसंदीदा स्थान बना हुआ है।
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