[धोरैया | अरूण कुमार गुप्ता]
धोरैया प्रखंड का सिरमौर बाबा धनकुण्डनाथ में सावन की पहली सोमवारी को लगभग 35 हजार शिव भक्तों ने शिवलींग का जलाभिषेक किया। वहीं सैकड़ों डाकबम ने भागलपुर के बरारी व सिड़ीघाट से जलभर धनकुण्ड नाथ का जलाभिषेक किया।
ऐश्वर्य का झुण्ड कुबेर का कुण्ड धनकुण्ड भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक माना गया है। ऐसी मान्याता है कि रत्न गर्भा धरा का आँचल सजाती सकुचाती मुस्कुराती स्वयं लक्ष्मी यहाँ पहल करती हैं।
उत्पत्ति-पालन-विनाश इन तीनों के भूत-मूलभूत कारण एकमात्र देवाधिदेव महादेव है। जो भाव, श्रद्धा, विश्वास के मानकरूप है। शिव की पूजा कभी व्यर्थ नही जाती है। शिव दयालू हैं, दुःखों को दूर करते अन्नत रूप में शिव लिंग में समाये रहते है।
वहीं सावन की सोमवारी को जलाभिषेक को लेकर उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुये धनकुण्ड थानाध्यक्ष प्रवीण कुमार झा पुलिस बलों के साथ सुबह से ही तटस्थ दिखाई दे रहे थे।
वहीं आए भक्तों को पूजा-पाठ के दौरान किसी भी प्रकार कि परेशानी न हो इसके लिए मुख्य द्वार के अंदर किसी प्रकार की वाहन को आने की अनुमती नही दी गई।
हालांकि शिव गंगा में अधिक पानी को देखते हुए लाल कपड़ा का निशान अभी तक प्रशाशन की ओर से नही लगाया गया है, जिससे शिव गंगा में स्नान करने के दौरान अगर शिव भक्त गहरे पानी में जाने से दुर्घटना हो सकती है।
- मंदिर का इतिहास -
धनकुण्डनाथ मंदिर का इतिहास मुगनकालीन है, और यहां अबतक ब्राह्मण जाति पुजारी नहीं बने बल्कि राजपूत जाति के ही पुजारी द्वारा प्रारंभ से ही पूजा की जाती है। बताया जाता है कि यहां साक्षात भगवान षिव विराजते है।
दंत कथाओं के अनुसार धनकुण्ड षिव मंदिर का इतिहास धनु और मनु नाम के दो भाइयों से जुड़ा हुआ है। एक बार दोनों भाई जंगल में भटक रहे थे इसी दौरान छोेटे भाई मनु को भूख लगी, इस कारण धनु ने जंगल में कंद मुल फल खोजने लगा, इसी दौरान एक पेड़ की जड़ से लिपटा कंद को देख उसे पाने के लिए धनु ने प्रहार किया तो उस कंद से रस के बदले खून की धार फूट गई। जिसे देख दोनों ही भाई वहां से भाग गए लेकिन प्रभु की माया कहे या विडंमना वह देानों जहां भी जाते कंद आकर वहीं खड़ा हो जाता।
अंत में हारकर दोनो ही भाई सो गये तो उसने स्वप्न में देखा कि यहां पर भगवान षिव विराजमान है और उसे पुजा करने की बात कह रहे है ।आंख खुलते ही धनु ने कुंड के करीब खुदाई की जिससे कंद के भीतर एक शिवलिंग प्राप्त हुआ। तब से उस स्थान को नाम धनकुण्ड पड़ा। आज भी धार्मिक दृष्टिकोण से यह मंदिर महत्वपूर्ण है। शिव मंदिर के सम्मुख माता पार्वती क मंदिर है जिसे विन्द समाज द्वारा बनवाया गया है। वहीं मंदिर के दक्षिण ओर शिवगंगा है जिसमें सालों भर जल भरा रहता है।
मंदिर के पुजारी मटरू बाबा ने बताया कि यहां सालों भर लोग पूजा अर्चना के लिए आते है। लेकिन सावन और शिवरात्री के मौके पे अत्यधिक शिव भक्त पूजा व जलाभिषेक के लिए आते है। लेकिन प्रशासन द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किया जाता है। ताकि आने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी ना हो।
Social Plugin