
और इस हकीकत से प्रखंड मुख्यालय में स्वच्छ भारत अभियान बेअसर साबित हो रहा है। प्रखंड मुख्यालय में एक भी सार्वजनिक शौचालय निर्माण न होने से महिलाओं को सशक्त बनाने और उनके लिए हर सुविधाएं मुहैया कराने का सरकारी दावा भी यहां मजाक लगता है।
केन्द्र व प्रदेश सरकार द्वारा लोगों में खुले में शौच से निजात दिलाने के लिए तो भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं पर धरातल पर वास्तविकता कुछ और ही ब्यां कर रही है। gidhaur.com टीम की ने प्रखंड मुख्यालय में विभिन्न जगहों पर जब स्वच्छता अभियान और शौचालय सुविधा का जायजा लिया गया तो बेहद शर्मनाक तस्वीर उभर कर सामने आई।
हलांकि कुछ लोग बताते हैं कि वर्षों पूर्व महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग अलग ईंट की दीवार खड़ी कर एक शाौचालय बना था, लेकिन देख-रेख और साफ-सफाई के लिए कोई सुनिश्चित व्यवस्था नहीं बनने से इन दोनों शौचालय के नजदीक से होकर गुजरना भी अब बेहद तकलीफदेह हो गया है।

विदित हो, 2011 जनगणना अनुसार प्रखंड मुख्यालय की आबादी 77,014 थी जिसमें पुरूषों की संख्या 40,506 एवं महिलाओं की संख्या 36,507 थी। सन् 2011 से अब तक इन सात सालों में अनुमति तौर पर यदि कहा जाए तो वर्तमान में प्रखंड की आबादी बढकर 6 अंकों की हो गई है। प्रखंड अंतर्गत आने वाले 8 पंचायतों के विभिन्न गांवों से सैकड़ों लोग तरह-तरह कार्य को लेकर प्रखंड मुख्यालय आते हैं पर इस दौरान आवश्यकता पर उन्हें खुले में ही शौच को जाना पड़ता है।
गिद्धौर प्रखंड सह अंचल कार्यालय परिसर में कार्यरत पदाधिकारियों के लिए शौच की सुविधा उपलब्ध है, पर आम जनता के लिए यह अत्यंत आवश्यक सुविधा ना होने से उन्हें मजबूरन झाड़ियों में जगह खोजना होता है.
पाठकों को बता दें कि, गिद्धौर प्रखंड की स्थापना 07/9/1994 को हुई थी, पर मुख्यालय का दर्जा मिलने के तकरीबन 23 साल बीत जाने के बाद भी गिद्धौर में सार्वजनिक शौचालय का निर्माण नहीं हो सका है। लिहाजा, दूर दराज से आए लोगों को जन-सुविधाओं के लिए इस चिलचिलाती धूप में भी इधर-उधर भटकना पड़ता है।
'गिद्धौर' एक प्रखण्ड मुख्यालय होने के साथ-साथ यहां तकरीबन आधा दर्जन राष्ट्रीयकृत बैन्क, एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, पावर-सब-ग्रीड समेत दर्जनों शिक्षण संस्थान व सैंकडों दुकानें भी मौजूद हैं। थाना क्षेत्र का यह प्रमुख बाजार होने के कारण गिद्धौर के 8 पंचायतों के अंतर्गत आने वाले दर्जनों गांव के सैकड़ों लोगों का रोजाना आना-जाना लगा रहता है, जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं। पर सार्वजनिक रूप से शौचालय निर्माण न कराए जाने से उन्हें भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है। जिससे की गिद्धौर जैसे इलाके में लंबे समय से सार्वजनिक शौचालय की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
गिद्धौर को प्रखंड का दर्जा मिले दो दशक से भी अधिक का समय बीत गया, इस दौरान कई दफा सत्ता शासन का भी उलट-पुलट हुआ, पर ताज्जूब तो तब होता है जब इन दो दशकों में भी कोई भी जन प्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर नहीं गया और न ही इस संदर्भ में कोई सार्थक पहल ही किया गया।
गिद्धौर बाजार भी है शौचालय वीहिन
प्रखंड सह अंचल परिसर को यदि छोड़कर बात करें तो, गिद्धौर बाजार में भी सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था नहीं रहने के कारण लोगों, दुकानदारों व ग्राहकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
गिद्धौर बाजार करने आए कुछ लोग, स्थानीय दुकानदार जब खुले में शौच करते हुए gidhaur.com के कैमरे की नजर में आए तो उनके मुख से निकला कि हुजूर, गिद्धौर बाजार में एक भी सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है, इसलिए हमलोग खुले में शौच को विवश हैं।
विदित हो कि, थाना क्षेत्र का यह गिद्धौर बाजार प्रखंड मुख्यालय के एक प्रमुख बाजार में गिना जाता है। जहां परस्पर लोगों की भीड़ लगी रहती है। ऐसे में यहां एक भी सार्वजनिक शौचालय नहीं रहने की कमी सभी को बराबर खलती है, विशेषकर महिलाओं को।
गिद्धौर बाजार करने आए कुछ लोग, स्थानीय दुकानदार जब खुले में शौच करते हुए gidhaur.com के कैमरे की नजर में आए तो उनके मुख से निकला कि हुजूर, गिद्धौर बाजार में एक भी सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है, इसलिए हमलोग खुले में शौच को विवश हैं।
विदित हो कि, थाना क्षेत्र का यह गिद्धौर बाजार प्रखंड मुख्यालय के एक प्रमुख बाजार में गिना जाता है। जहां परस्पर लोगों की भीड़ लगी रहती है। ऐसे में यहां एक भी सार्वजनिक शौचालय नहीं रहने की कमी सभी को बराबर खलती है, विशेषकर महिलाओं को।
सत्तासीन सरकार गांव-गांव में शौचालयों का निर्माण कराकर खुले में शौच से मुक्त कराने के लिए तो प्रयासरत् है, परन्तु इस घनी आबादी वाले गिद्धौर प्रखंड एवं बाजार में एक भी सार्व्जनिक शौचालय नहीं होना जन प्रतिनिधियों के प्रति गिद्धौर वासियों के मन में एक सवालिया निशान लगाता है।