(आलेख) :- बारात कि एक रात मैं घर की तरफ वापस आ रहा था ,बोलेरो अपने गति मे चल रही थी और उसमें लगभग आधा दर्जन लोग ..सभी शीशे बंद थे,लेकिन न जाने मंद-मंद हवाये अंदर आ रही थी ,मैंने उस सुराग को खोजने का बहुत देर तक प्रयास किया यकिन मानिए मैं खोजने में असफल रहा।
बेलोरो के बाहरी बल्ब जलते हुए भी कुहासे के वजह से दुर दूर तक कुछ नजर नहीं आ रहा था। जिससे चालक को गाड़ी चलाने मे दिक्कतें हो रही होगी। करिबन एक घंटा सफ़र के बाद गाड़ी मेरे भी घर के गली के पास कुछ देर रुकी ।पर मुझे उस सर्द मे उतरने का मन नहीं कर रहा था। मगर घर तो जाना ही था । मुझे कुछ दुर चलने के बाद सर्द रात के उस सन्नाटे में किसी की खराटे लेने की आवाज का कोई अंश मेरे कानो को सुनाई पड रहा था,मैं एकदम शकपका सा गया करीब जाकर देखा तो पाया कोई 10-12 साल का बच्चा अपने डॉगी के साथ फटा हुआ चादर ओढे हुए इस गली के फुटपाथ पर सो रहा है। ये मासूम सा बच्चा किस तरह मॉनसून की मार को सह रहा है ।और एक मैं महंगी जैकेट पहनते हुए भी ठंड को कोस रहा था और ये बेचारा डॉगी ...
मैं यही सब सोच रहा था कि अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बजी मैंने देखा वह घर का फोन था।फिर मै अधिक आहट किये बिना वहां से चल दिया। घर का दरवाजा खटखटाया कुछ क्षण बाद खुला। दरवाज़ा बंद कर मैं अपने कमरे मे चला गया।उस वक्त घडी के 1:30 बज रहे थे जैसे ही मैंने सोने के लिए कोशिश करने लगा तो नींद नही आकर उस छोटू का ख्याल मेरे मन मे आ गया,उस बच्चे को इस हालात मे देखते हुए भी चला आया मैं,कितना स्वार्थी हूं मेरे पास विकल्प के तौर पर कम्बल,चादर है पर उस बेचारे के पास अधफटी चादर है, उसे भी अपने पालतू डॉगी के साथ बाट कर सो रहा है ,और हम फालतू पड़े पुराने सफेदे और चादर भी किसी को देना गवारा समझते है। यही सब सोचते-सोचते ना जाने कब आँखें लग गई, पता ही नहीं चला।हर रोज़ की तरह उस सुबह जब मैं सैर के लिए निकला तो थोड़ी दूर पे कुछ लोगो की भीड़ लगी थी ,पास पहुंचा उस भीड़ मे बोलते हुए सुना ,अरे जो गांव-गांव जाकर चाय बेचने वाला लड़का कल रात ठंड से मर गया । मेरे पलकों के साथ -साथ मेरा शरीर काप उठा और आँसुओं की एक बूंद आंखों से छलक गया। उस मासूम की मौत से किसी को कोई फर्क नही पड़ा।बस वह डॉगी अपने मालिक के बगल मे बैठा था,शायद उसे उठाने का कोशिश कर रहा था। लेकिन उस जानवर को क्या पता कि अब मेरा मालिक सदा के लिए मुझे छोड़ कर चल बसा...
(राहुल कुमार)
अलीगंज (जमुई) | 06/02/2018(मंगलवार)
www.gidhaur.com
बेलोरो के बाहरी बल्ब जलते हुए भी कुहासे के वजह से दुर दूर तक कुछ नजर नहीं आ रहा था। जिससे चालक को गाड़ी चलाने मे दिक्कतें हो रही होगी। करिबन एक घंटा सफ़र के बाद गाड़ी मेरे भी घर के गली के पास कुछ देर रुकी ।पर मुझे उस सर्द मे उतरने का मन नहीं कर रहा था। मगर घर तो जाना ही था । मुझे कुछ दुर चलने के बाद सर्द रात के उस सन्नाटे में किसी की खराटे लेने की आवाज का कोई अंश मेरे कानो को सुनाई पड रहा था,मैं एकदम शकपका सा गया करीब जाकर देखा तो पाया कोई 10-12 साल का बच्चा अपने डॉगी के साथ फटा हुआ चादर ओढे हुए इस गली के फुटपाथ पर सो रहा है। ये मासूम सा बच्चा किस तरह मॉनसून की मार को सह रहा है ।और एक मैं महंगी जैकेट पहनते हुए भी ठंड को कोस रहा था और ये बेचारा डॉगी ...
मैं यही सब सोच रहा था कि अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बजी मैंने देखा वह घर का फोन था।फिर मै अधिक आहट किये बिना वहां से चल दिया। घर का दरवाजा खटखटाया कुछ क्षण बाद खुला। दरवाज़ा बंद कर मैं अपने कमरे मे चला गया।उस वक्त घडी के 1:30 बज रहे थे जैसे ही मैंने सोने के लिए कोशिश करने लगा तो नींद नही आकर उस छोटू का ख्याल मेरे मन मे आ गया,उस बच्चे को इस हालात मे देखते हुए भी चला आया मैं,कितना स्वार्थी हूं मेरे पास विकल्प के तौर पर कम्बल,चादर है पर उस बेचारे के पास अधफटी चादर है, उसे भी अपने पालतू डॉगी के साथ बाट कर सो रहा है ,और हम फालतू पड़े पुराने सफेदे और चादर भी किसी को देना गवारा समझते है। यही सब सोचते-सोचते ना जाने कब आँखें लग गई, पता ही नहीं चला।हर रोज़ की तरह उस सुबह जब मैं सैर के लिए निकला तो थोड़ी दूर पे कुछ लोगो की भीड़ लगी थी ,पास पहुंचा उस भीड़ मे बोलते हुए सुना ,अरे जो गांव-गांव जाकर चाय बेचने वाला लड़का कल रात ठंड से मर गया । मेरे पलकों के साथ -साथ मेरा शरीर काप उठा और आँसुओं की एक बूंद आंखों से छलक गया। उस मासूम की मौत से किसी को कोई फर्क नही पड़ा।बस वह डॉगी अपने मालिक के बगल मे बैठा था,शायद उसे उठाने का कोशिश कर रहा था। लेकिन उस जानवर को क्या पता कि अब मेरा मालिक सदा के लिए मुझे छोड़ कर चल बसा...
(राहुल कुमार)
अलीगंज (जमुई) | 06/02/2018(मंगलवार)
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