[गिद्धौर | अभिषेक कुमार झा] : सूबे में शराबबंदी और ठंड बढ़ने के बाद गांजे की कश लगाने वालों की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। व्यस्क एवं बुजुर्ग ही नहीं बल्कि नवयुवक भी इस गांजे की चपेट में आने लग गए हैं।
इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि शराब मिलनी बंद हुई तो नशे की आदत को पूरा करने के लिए ये लोग नशे के तौर पर गांजा पीने लगे हैं। लेकिन शायद सरकार और इसका सेवन करने वाले नशेडी विज्ञान द्वारा प्रमाणित इस तथ्य से बेखबर हैं कि गांजा, शराब से भी अधिक ख़तरनाक है।
सूर्यास्त होते ही गिद्धौर के पंचमंदिर, नगर भवन, महुली पेट्रोल पंप, महावीर मंदिर, नदी किनारे, प्रखंड कार्यालय के इर्द-गिर्द एवं छोटे-मोटे चाय स्टाॅल्स पर इन गंजेडियों की महफिल सजती है जहाँ ये गांजे की कश लगाते नजर आते हैं।
चिकित्सकों के अनुसार गांजे का सेवन करने से कुछ महीने तक मनुष्य एकदम सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार करते हैं लेकिन बाद में इस गांजे से मानसिक परेशानियों, हाथ पैर की गतिशीलता प्रभावित होने लगती है, साथ ही सीजोफ्रेनिया नामक बिमारी के शिकार हो सकते हैं।
चिकित्सकों के अनुसार गांजे का सेवन करने से कुछ महीने तक मनुष्य एकदम सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार करते हैं लेकिन बाद में इस गांजे से मानसिक परेशानियों, हाथ पैर की गतिशीलता प्रभावित होने लगती है, साथ ही सीजोफ्रेनिया नामक बिमारी के शिकार हो सकते हैं।
जानकारी से अवगत करते चलें कि, सूर्यास्त होते ही प्रशासन के वाहन का पहिया, गश्ती के लिए सक्रिय हो जाता है पर उनकी आंखों में धूल झोंककर ये गंजेडी अपनी शाम को धुआँ-धुआँ कर लेते हैं।
बुद्धिजीवियों का कहना है कि सरकार जल्द ही इस तत्व पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाए, वर्ना आने वाले समय में बिहार का समाज और आने वाली पीढ़ियां नशे के गिरफ्त में आ जाएगी।
न्यूज़ डेस्क | 05/01/2018, शुक्रवार