Gidhaur.com (पटना) : बिहार संग्रहालय को लेकर सरकार की मंशा हमेशा से संदेह के दायरे में रही है। पहले तो इसके निर्माण लागत पर हाईकोर्ट ने गहरे सवाल खड़े किए। फिर मुख्यमंत्री रहते जीतन राम मांझी ने भी इसमें बड़ी कमीशनखोरी का मुद्दा उठाया। बिहार की सांस्कृतिक विरासतों को इस नए भवन में शिफ्ट किए जाने पर सूबे के संस्कृतिकर्मियों ने भी गहरे सवाल खड़े किए। बावजूद नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार हर समय इस संग्रहालय को लेकर उतावली दिखी। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भी अधूरा निर्माण होने के बावजूद आनन-फानन में इसका उद्घाटन कर दिया गया। उस वक्त मात्र एक कला दीर्घा ही खोली गई थी। इसके करीब दो साल बाद एक बार फिर इसकी दूसरी कला दीर्घाओं का औपचारिक उद्घाटन किया गया। एक अखबार में विभाग के प्रधान सचिव के हवाले से छपी खबर को सही माने तो उद्घाटन के बाद संग्रहालय को अगले एक हफ्ते के लिए फिर से बंद कर दिया गया और इसे फिर से 10 अक्टूबर को खोला गया। यही नहीं, इसमें प्रति व्यक्ति प्रवेश का शुल्क भी 100 रुपए रखा गया है, जो काफी अधिक दिखता है। मालूम हो कि इस संग्रहालय के निर्माण पर करीब 400 करोड़ रुपए की लागत आयी है। यह पैसा जनता की गाढ़ी कमाई का है। उसी जनता को अपनी संस्कृति और इतिहास जानने के लिए 100 रुपए देना कहां तक उचित है?
(अनूप नारायण)
पटना | 25/10/2017