सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए सबसे ज़रूरी हथियार है - शिक्षा। किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए बुनियादी तत्व है - शिक्षा। गिद्धौर प्रखंड अंतर्गत डीपीईपी प्राथमिक विद्यालय, नयागांव में शिक्षा विभाग के सभी नियमों को ताक पर रखा जाता है। जिस वजह से वहां के बच्चे पढ़ाई के लिये भटकते रहते हैं। यह तमाम खामियां बिहार के शिक्षा विभाग के कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह हैं।गिद्धौर प्रखंड के कुंधुंर पंचायत अंतर्गत नयागांव के डीपीईपी प्राथमिक विद्यालय के दर्जनों विद्यार्थियों व अभिभावकों ने कई दिनों से स्कूल बंद रहने व मध्याह्न भोजन योजना के सुचारु ढंग से जारी न रहने को लेकर इस हफ्ते विद्यालय प्रबंधन एवं शिक्षा विभाग के खिलाफ आक्रोशपूर्ण प्रदर्शन किया।
विद्यालय के छात्रों की सुनिए
डीपीईपी प्राथमिक विद्यालय, नयागांव में अध्यनरत छात्र कुणाल कुमार, गौतम कुमार, ललन कुमार, निक्की कुमारी, सोनू कुमार, सूरज कुमार, गोपाल कुमार सहित दर्जनों विद्यार्थियों ने बताया कि यह विद्यालय महीने में दो-चार दिन ही खुलता है। जबकि सारे बच्चे प्रतिदिन स्कूल आते हैं, लेकिन विद्यालय में ताला बंद देख कर घर वापस लौट जाते हैं।
कहते हैं अभिभावक
वहां मौजूद अभिभावकों ने बताया कि शिक्षक कब आते है और कब जाते है, इसका पता ही नही चलता। हर रोज विद्यालय में ताला ही लटका रहता है। पढ़ाई तो दूर की बात, आज तक हमने बच्चों को स्कूल में दिये जाने वाले भोजन को खाते भी नही देखा है। स्कूल के शिक्षक हर रोज स्कूल बंद कर गायब रहते है। लिहाजा हमारे बच्चों को न तो शिक्षा मिल पाती है और न ही मध्याह्न भोजन।
ठंडा पड़ गया चूल्हा
प्रबंधन के उदासीन रवैये से, यहाँ का चूल्हा ठंडा पड़ गया है। कारण ये है कि न जाने कितने दिनों से मिड डे मिल पकाने वाले चूल्हे को आग की तपिश नहीं मिली है।
वहां मौजूद अभिभावकों ने बताया कि शिक्षक कब आते है और कब जाते है, इसका पता ही नही चलता। हर रोज विद्यालय में ताला ही लटका रहता है। पढ़ाई तो दूर की बात, आज तक हमने बच्चों को स्कूल में दिये जाने वाले भोजन को खाते भी नही देखा है। स्कूल के शिक्षक हर रोज स्कूल बंद कर गायब रहते है। लिहाजा हमारे बच्चों को न तो शिक्षा मिल पाती है और न ही मध्याह्न भोजन।
ठंडा पड़ गया चूल्हा
प्रबंधन के उदासीन रवैये से, यहाँ का चूल्हा ठंडा पड़ गया है। कारण ये है कि न जाने कितने दिनों से मिड डे मिल पकाने वाले चूल्हे को आग की तपिश नहीं मिली है।

ये हालात भी देखिये
प्रबंधन की लापरवाही ने किस तरह यहाँ की शिक्षा को रूला रखा है, ये तो आपको नयागांव स्थित इस विद्यालय मे आने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन मत आइएगा। देखिए इस तस्वीर को, क्या इस तरह के रास्ते को पार करके आप इस विद्यालय तक पहुँच सकेंगे? नहीं न। लेकिन हाथ में किताब लेकर, ये बच्चे अपना भविष्य लिखने नयागाँव प्राथमिक विद्यालय की ओर प्रतिदिन जाते हैं। लेकिन जरा सोचिये कठिन डगर पार करने के बाद जब बच्चे गाँव के इकलौते शिक्षालय में पहुँचते हैं तो वहाँ मिलता है -"लटकता हुआ ताला"।
वर्णित है कि विभाग तो सदैव ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का दावा करती रही है। करेगी क्यूँ नहीं, इसके पीछे सरकार की राशि जो सम्मिलित रहती है। परंतु जब तक शिक्षक-शिक्षिका विद्यालयों में उपस्थिति का महत्व नहीं समझेगे तब तक बच्चों में गुणवत्तापूर्ण विकास की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। इन कल्पनाओं से परे नयागांव के बच्चों का भविष्य उज्ज्वल करने वाला कोई ऐसा चिराग मिल जाए, जिसकी आज भी यहाँ के ग्रामीण प्रतीक्षा कर रहे हैं। शायद करते ही रह जाएंगे, तबतक जबतक यहाँ की कुव्यवस्था, सुव्यवस्थित न हो जाय।
प्रबंधन की लापरवाही ने किस तरह यहाँ की शिक्षा को रूला रखा है, ये तो आपको नयागांव स्थित इस विद्यालय मे आने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन मत आइएगा। देखिए इस तस्वीर को, क्या इस तरह के रास्ते को पार करके आप इस विद्यालय तक पहुँच सकेंगे? नहीं न। लेकिन हाथ में किताब लेकर, ये बच्चे अपना भविष्य लिखने नयागाँव प्राथमिक विद्यालय की ओर प्रतिदिन जाते हैं। लेकिन जरा सोचिये कठिन डगर पार करने के बाद जब बच्चे गाँव के इकलौते शिक्षालय में पहुँचते हैं तो वहाँ मिलता है -"लटकता हुआ ताला"।
वर्णित है कि विभाग तो सदैव ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का दावा करती रही है। करेगी क्यूँ नहीं, इसके पीछे सरकार की राशि जो सम्मिलित रहती है। परंतु जब तक शिक्षक-शिक्षिका विद्यालयों में उपस्थिति का महत्व नहीं समझेगे तब तक बच्चों में गुणवत्तापूर्ण विकास की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। इन कल्पनाओं से परे नयागांव के बच्चों का भविष्य उज्ज्वल करने वाला कोई ऐसा चिराग मिल जाए, जिसकी आज भी यहाँ के ग्रामीण प्रतीक्षा कर रहे हैं। शायद करते ही रह जाएंगे, तबतक जबतक यहाँ की कुव्यवस्था, सुव्यवस्थित न हो जाय।
गिद्धौर | 05/08/2017, शनिवार