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शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

ऊँचे दाम से टमाटर हुए लाल, उपभोक्ता हुए बेहाल

"टमाटर"। अरे-अरे! पढ़ते ही आपके मुंह में पानी आ गया। लोगों को प्याज तो अक्सर रुलाता ही है लेकिन अब लाल टमाटर भी सभी को रुला रहा है। जी हाँ जनाब! इस खुशनुमा मौसम में कभी आप गिद्धौर की सब्जी मंडी आएं तो यहाँ अन्य सब्जियों के बीच टमाटर की अनुपस्थिति से चौंकिएगा मत क्यूँकि बारिश के मौसम में टमाटर की पैदावार कम होने की वजह से पूर्व में भी भाव तेज हुए हैं। लेकिन इस बार मुनाफाखोरी हावी होने की वजह से टमाटर सौ रुपए किलो तक का आंकड़ा छू गया है। नतीजतन अत्यधिक महंगा होने के चलते लोगों के खाने का जायका भी बिगड़ गया है। आसमान छूते टमाटर के दाम से मंडी में सब्जी विक्रेता इसे लाने से कतराते हैं, वहीं गाहे-बगाहे अगर किसी दुकान में टमाटर दिख भी जाता है तो इसके दाम सुनकर ग्राहक केवल इसे निहार कर रह जाते हैं और टमाटर उन्हें चिढ़ाता रहता है।
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गिद्धौर से 15 किलोमीटर दुरी पर स्थित झाझा बाजार में टमाटर 105 रूपये किलो, बड़ी मण्डियों में टमाटर 100 रुपए तो बाहरी इलाकों में 120 रुपए किलो तक बेचा जा रहा है। लिहाजा बाजार की बात तो दूर, हमारे घर में टमाटर की उपस्थिति कम हो गयी है। मध्यम वर्गीय परिवार से लेकर उच्चवर्गीय परिवार तक के भोजन की थाली में सालाद एक काॅमन पोषण तत्व है। इस सलाद के साथ टमाटर का कोम्बीनेशन जरूर होता था लेकिन अब आजकल सलाद में  प्याज और  खीरा की मौजूदगी में बेचारे टमाटर की कमी खल रही है।
इतनी हसरतों से मत देखिये जनाब 
आखिर क्यूँ टमाटर हुआ इतना लाल?
2016 में अक्टूबर-नवंबर के समय टमाटर की बंपर पैदावार हुई। लेकिन पिछले वर्ष नवम्बर में नोटबंदी के फैसले के बाद मार्केट में कैश की कमी हो गई। मंडियों में टमाटर की खरीद कम होने से टमाटर के भाव गिर गए। हालात ये हो गए कि किसानों को 3-4 रुपये प्रति किलो की दर अपनी उपज को बेचना पड़ा। इसके अलावा किसान अपने टमाटर सड़कों पर फेंकने लगे, लिहाजा गर्मियों (जून-जुलाई) में टमाटर की खेती पर किसानों ने कम ध्यान दिया। इसके अलावा भारी बारिश की वजह से टमाटर की आपूर्ति पर असर पड़ा। बड़ी मंडियों में भी टमाटर का भाव दहाई में पार नहीं कर सका और किसानों को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा।
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किसानों को उपज की सही दाम न मिलने के पीछे एक बड़ी वजह नोटबंदी के साथ-साथ पिछले साल अच्छा मानसून भी था। इस वर्ष 2017 में जून के अंत में उपभोक्ताओं ने टमाटर की बढ़ती कीमतों पर ध्यान देना शुरू किया। बहुत से मामलों में पहली पिकिंग के बाद किसानों ने खाद-पानी देना बंद कर दिया, जिसका असर ये हुआ कि टमाटर की पैदावार कम हो गई और मंडियों तक टमाटर की खेप पहुंचना मुश्किल हो गया, जिसकी कीमत अब उपभोक्ता अदा कर रहे हैं। 

(अभिषेक कुमार झा)
गिद्धौर  |  28/07/2017, शुक्रवार 
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