गाँव से निकल लोग जब सफल हो जाते हैं तो उसके बाद पीछे मुड़ कर वो अपने गाँव और समाज को देखते भी नहीं हैं। गाँव में मौजूद परेशानियों पर लोग बडे-बडे भाषण तो जरूर देते है मगर इन परेशानियों को समाप्त करने के लिए कुछ प्रयास भी नहीं करते। दिल्ली में आईएएस के रूप में पदस्थापित अरूण कुमार जायसवाल की पत्नी ॠतु जायसवाल इन दिनों दिल्ली से लेकर बिहार तक चर्चा में है। शादी के 17 साल बाद जब वह अपने ससुराल लौटी तो गांव की हालत देख इतनी व्यथित हुईं कि बदलाव लाने के लिए सोचने लगीं। गांव के हालात देख कर उन्हें ऐसा महसूस हुआ मानो वे प्रेम चंद्र की कहानी में पहुंच गई हों। दुसरे लोगों के तरह नजरअंदाज करने के जगह ऋतु ने गाँव में बदलाव लाने की ठानी और बिहार के सीतामढ़ी के सोनवर्षा प्रखंड के सिंघवाहिनी पंचायत से मुखिया पद पर जीत हासिल कर इस गांव को चर्चा में ला दिया है।
कहती हैं कि उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं किया था कि ऐसा भी कोई गांव हो सकता है। यह सब देख वे इतना द्रवित हुईं कि अपना सुख-सुविधाओं से भरा जीवन और दिल्ली जैसा शहर छोड़ने तक का फैसला कर लिया। पिछले दो साल से वे बराबर गांव आती रही हैं।
यहां कोशिश शुरू की तो एक गांव में आजादी के बाद पहली बार बिजली आई। जब उन्होंने एक बुजुर्ग महिला को बिजली के बल्ब को फूंक मारकर बुझाते देखा तो इस वाकये ने उन्हें झकझोर दिया। उन्हें गांव की हालत देख कर काफी दुख होता था।

वह कहती हैं कि जिस संकल्प को लेकर वे मुखिया का चुनाव लड़ी हैं उसे वह हर हाल में पूरा करेंगी। अब गांव में रहकर ही गांव की तस्वीर बदलेंगी। उन्होंने बताया कि उनके गांव में ना तो चलने के लिए सड़क है और ना ही पीने के लिए शुद्ध पानी। लोगों को शौचालय के बारे में भी पता नहीं था कि शौचालय क्या होता है। गांव के तक़रीबन अस्सी प्रतिशत लोग आज भी सड़कों पर शौच के लिए जाते हैं। बिजली सहित तमाम मूलभूत सुविधाओं से लोग अब भी कोसो दूर हैं।
वह कहती हैं कि मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने के बाद विकास के काम पर ध्यान देंगी। विकास के लिए उन्होंने कृषि विभाग से बात किया है। विभाग यहां के लोगों को ट्रेंनिंग देगा जिससे लोगों को रोजगार भी मिलेगा। यहां की भूमि कृषि योग्य है पर यहां के लोग अब बाहर जा रहे है कमाने के लिए। गांव में सिर्फ औरतें और बुजूर्ग हैं।
बिजली विभाग से बात कर एक गांव में बिजली लाने में सफल हुईं। अपने गांव की फोटो खींच एक डॉक्युमेंटरी बनाई और एनजीओ को दिखाया। फिर वह काम करने के लिए तैयार हो गएं। वे बताती हैं कि दो साल में कई एनजीओ आए और गांव की महिलाओं और लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग दिलाया गया। यह सारा फंड एनजीओ ही वहन करते थे। करीब दो साल पहले नरकटिया के बच्चों के लिए सामुहिक रूप से दो ट्यूटर लगवाए। वे कहती हैं गांव की हालत अब सुधर रही है लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।
सामाजिक कार्य में रुची उन्हें पहले से थी पर गांव को देख रुची और ज्यादा बढ़ गया। वे कहती हैं कि इस गांव से एक लगाव सा हो गया। सिंघवाहिनी पंचायत में नरकटिया को मिलाकर 6 गांव हैं। नरकटिया की आबादी 2300 के आसपास है। बाकी सभी गांव इससे बड़े हैं। इससे पहले जितने भी मुखिया थे उन्होंने कुछ काम नहीं किया है। इस बार भी बहुत लोगों ने मुखिया पद के लिए पर्चा भरा था। चुनाव में उनको यहां के लोगों का तो साथ मिला ही साथ ही उनके पति का भी बहुत सहयोग रहा।

ॠतु जयसवाल ने अपनी पढ़ाई वैशाली महिला महाविद्यालय, हाजीपुर से किया है। उन्होंने बीए की डीग्री अर्थशास्त्र में ली। शादी के बाद भी पढ़ाई जारी रखा। उनके दोनों बच्चे बैंगलोर के एक रेसीडेंशियल स्कूल में पढ़ते हैं। इसके लिए उनकी बेटी अवनि जो सातवीं कक्षा में पढ़ती है उसने उनका बहुत सहयोग किया ताकि वे अपना ज्यादातर वक्त गांव में ही बीता सकें। वह अपने बेटी के बारे में कहती है कि जब उन्होंने अपनी बेटी से बात की तो वह बोली कि मैं तो होस्टल में रह लूंगी और आप बहुत सारे बच्चों की जिंदगी बदल पाएंगी। बेटी की इस बात से उन्हें बहुत हौसला मिला।
शहर की सारी सुख सुविधाओं को छोड सिर्फ समाज सेवा के मकसद से गाँव की तस्वीर बदलने में लगी है। इसकी जितनी भी तारीफ किया जाए कम है। लोग तो सफलता मिलने के बाद गाँव को भूल ही जाते है, शहर को अपना घर बना लेते है और गाँव से अपना रिश्ता ही तोड लेते हैं मगर ऋतु जायसवाल ने न सिर्फ अपने पति और परिवार का नाम रौशन किया बल्कि अन्य लोगों के लिए भी एक आदर्श स्थापित करने का काम किया है। हमें इन पर गर्व होना चाहिए।
(अनूप नारायण)
~गिद्धौर | 15/06/2017, गुरुवार