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मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

गिद्धौर का ऐतिहासिक मिंटो टावर बना उपेक्षा का शिकार

(गिद्धौर स्थित लार्ड मिंटो टावर)
[अभिषेक कुमार झा] स्वर्णिम इतिहास को समेटे, राजा-रजवाड़ों की भूमि गिद्धौर, जो कभी राज-रियासत हुआ करता था, स्थित ऐतिहासिक लार्ड मिन्टो टावर आज सरकारी उदासीनता का दंश झेल रहा है। चौथे ब्रिटिश वाइसराय लार्ड मिंटो के सन् 1907 में गिद्धौर आगमन पर उनके स्वागत हेतु तोरण द्वार के रूप में वर्ष 1906-07 में गिद्धौर राज रियासत के तत्कालीन शासक महाराजा रावणेश्वर प्रताप सिंह द्वारा इसका निर्माण करवाया गया था।
(भीतरी छत) 
शताब्दियों पुराने इस ऐतिहासिक धरोहर को वर्तमान में जमुई जिले के पहचान के रूप में जाना जाता है। लेकिन सन् 1985 के बाद राज परिवार के अंतिम शासक द्वारा इसे सरकार को दान स्वरूप दिये जाने के बावजूद भी पुरातत्व विभाग के उदासीन रवैये के कारण यह ऐतिहासिक धरोहर अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार के अधिसूचना संख्या - 30 , दिनांक - 06/11/2014 द्वारा इसे संरक्षित स्थल घोषित किया गया। इसके बावजूद भी इस ऐतिहासिक धरोहर की दिनोंदिन स्थिति दयनीय होती जा रही है।
(मिंटो टावर में लगे घड़ी के भीतरी कलपुर्जे)
दशकों पहले टिक-टिक करती और हर पहर घंटे की आवाज से लोगों को अवगत कराने वाली घड़ी की सुइयां भी अब नहीं घूमती। वर्ष 2014 में बिहार सरकार द्वारा इसका मरम्मतीकरण कराया गया था जिसके बाद कुछ दिनों तक घड़ियाँ सही समय बताती रही लेकिन पुनः उसके बंद होने के बाद इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। सभी घड़ियाँ केवल शोभा की वस्तु बनकर रह गई हैं। 
(कचड़े का लगा अम्बार एवं अतिक्रमण)
वर्तमान में मुख्य बाजार व चौराहे के रूप में चिन्हित लार्ड मिंटो टावर के चारों तरफ लगी सब्जियों की अवैध दुकानों के कारण कचरे के ढेर का अंबार लग गया है। बाजार से गुजरने वाले लोग दुर्गन्ध व गंदगी से परेशान हैं। यत्र-तत्र कचड़ा फेंके जाने एवं उसकी सफाई नहीं होने की वजह से यहाँ पर खड़ा होना भी मुश्किल हो गया है। 


(भीतरी दृश्य)
गिद्धौर वर्तमान में प्रखंड व अंचल क्षेत्र है जिसके अंतर्गत कई छोटे-बड़े गांव शामिल हैं। गिद्धौर बाजार ग्राम पंचायत राज पतसंडा के अंतर्गत है लेकिन इसके बावजूद स्थानीय पंचायत व विभिन्न जनप्रतिनिधि मूकदर्शक बनकर इस मूल्यवान धरोहर के दुर्दशा को देख रहे हैं। लिहाजा यह ऐतिहासिक धरोहर अपना वजूद खोता जा रहा है ।
(दुर्गा पूजा के समय का रात्रि नजारा)
जमुई से झाझा व सूबे की राजधानी पटना सहित दूसरे राज्यों को जोड़ने वाली सड़क - राष्ट्रीय राजमार्ग 333 ठीक इस चौराहे के बगल से होकर गई है। इसी रास्ते से होकर जिले के आलाधिकारी प्रतिदिन गुजरते हैं परन्तु लार्ड मिंटो टावर चौक को अतिक्रमण से मुक्त कराने का प्रयास न तो जिला स्तर से करते हैं और न ही स्थानीय जनप्रतिनिधि इसके लिए सक्रिय हैं। फलस्वरूप, इस ऐतिहासिक धरोहर की स्थिति दिन-प्रतिदिन दयनीय होती चली जा रही है।


(मिंटो टावर में लगे घड़ी का घंटा)
दो वर्ष पूर्व आए लगातार भूकंप के झटकों ने लार्ड मिंटो टावर के मजबूत खम्भों व दीवारों पर भी अपनी छाप छोड़ी है। उस भूकंप में मिंटो टावर के पश्चिमी द्वार के ऊपर तीन जगह दरार आई थी जिसका मरम्मत अब तक नहीं किया गया। यह अभी भी चिंता का विषय बना है। पुरातत्व विभाग द्वारा भूकंप के बाद हुई क्षति का जायजा लेने की तैयारी की गई थी। वर्ष 2014 में बिहार सरकार द्वारा मिंटो टावर को पुरातत्व विभाग को सौंपे जाने के बाद उसके रंग-रोगन तथा मरम्मत का काम हुआ था। उसके बाद से सारी गतिविधियाँ मौन हैं ।
(टावर चौक के नीचे यत्र-तत्र खड़े वाहन)
मिंटो टावर के चहुंओर मधुमक्खियों ने अपना छत्ता लगा रखा है। यह इतनी अधिक संख्या में हैं कि कोई भी अनहोनी घटित होने पर पुरे क्षेत्र के लोग मधुमक्खियों का शिकार बन सकते हैं। काफी लम्बे समय से रंग-रोगन व मरम्मत आदि का कार्य नहीं किया गया है। टावर परिसर के भीतर व बाहर सब्जी विक्रेताओं एवं ठेले-खोमचे वालों का अधिपत्य है, जिस वजह से वाहनों को जाम की समस्या भी होती है। राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे अवस्थित होने की वजह से वाहनों के धुएं से इमारत की चमक चली गई है एवं दीवारों पर धूल की मोटी परत जम गई है।

(अभिषेक कुमार झा)

गिद्धौर        |       25/04/2017, मंगलवार
www.gidhaur.com

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