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मंगलवार, 2 दिसंबर 2025

पढ़ें राहुल की कलम से, कहानी "किसान की जिंदगी"

रघु बरामदे में लगी चौकी पर लेट गए थे। आज खेत से आने में शाम हो गई थी। दिन भर के थके हुए थे। सामने कमरे में बैठकर उसका बेटा राजीव अपना होमवर्क (गृह कार्य) कर रहा था। रघु करवटें बदल रहे थे। यह देखकर राजीव अपना होमवर्क बंद करके पापा की पीठ पर चढ़कर दबाने लगा। मैं आपको बता दूं की राजीव 14 साल का होगा। उसका होमवर्क देखकर लगता है कि वह पढ़ने में तेज है।                                       

पीठ दबाते हुए अपने पिता से ही सवाल करने लगा, "इतना काम ही क्यों करते हो, जब आपका शरीर दर्द करने लगता है तो?" अपने मासूम बेटे से ये सुनकर रघु कहते हैं, "काम नहीं करेंगे तो खाने के लिए पैसा कौन देगा?" सुनकर राजीव चुप हो गया। कुछ समय दबाने के बाद फिर अपना होमवर्क करने लगा। लेकिन रघु के चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभर आई थी। 

"मेहनत ही तो करना जानते हैं हम, बाकी ऊपर वाले की मर्जी है। धान पूरी तरह से पक चुकी है बस धान की फसल जल्द ही काट लेंगे।" और दो लोगों को रख लूंगा खेत से लाने के लिए।"       

"रघु सोच रहा था की रसोई घर (kitchen) से उसकी पत्नी सविता चाय लाकर रखी और चली गयी। रघु टेबल से चाय उठाकर पीने लगे।        

सविता (उसकी पत्नी) ने रसोई घर से ही आवाज लगाई, "घर में माचिस की डिब्बी खत्म हो गई है, ले आना।" रघु चाय पीकर। दुकान जाते हुए सोचने लगा, "इस बार धान की अच्छी फसल हुई है, पहले जिससे कर्ज लेकर बीज और खाद खरीदे थे, उसका ऋण चुकाएंगे।" यह सोचकर रघु का चेहरा खिल उठा और दुकान से माचिस लेकर वापस आया फिर कुर्सी पर बैठ गया। सविता बोली, "संदीप के पास तो है अभी कहीं आने-जाने के लिए बढ़िया सा कपड़ा लेकिन राजीव के लिए कपड़े खरीद देना। कल रविवार है, राजीव के लिए कल ही दिलवा दूंगा। तुम्हारे लिए भी कोई ढंग की साड़ी नहीं है, वह भी ले आऊंगा।" सविता बोली, "नहीं-नहीं पहले फसल तो बेच लीजिए, तुम क्यों चिंता करती हो पगली? मेरे पास अभी कुछ पैसे बच्चे हैं, जिससे राजीव का और तुम्हारा कपड़ा आ जाएगा। "वैसे भी सरकार लोगों को ₹10000 दे ही रही है, तो तुम्हारा भी आ ही जाएगा।"

धान की फसल तो उम्मीद के मुताबिक ही हुई थी, कीड़े और मकोड़े के प्रकोप से नुकसान नहीं हुआ। 
आज रघु राजीव को कपड़े दिलवाने के लिए बाजार की दुकान में गए और कपड़ा दिखाने के लिए कहा। "यह रंग कैसा रहेगा? "रघु ने पूछा। "अच्छा है पापा, "राजीव ने कहा। जब कीमत पूछा तो चेहरा मुरझा सा गया। "ज्यादा है, कम नहीं होगा, सही कीमत तो बताएं हैं, "दुकानदार ने कहा। रघु बहाना करके दुकान से निकल गए।
 
इस दुकान से उस दुकान घूम रहे थे तब राजीव ने कहा, "पापा हम कोई भी सामान को अपनी कीमत पर क्यों नहीं खरीद सकते हैं?, "एक दिन मम्मी ने बताया था कि हमारे धान को मंडी वाले खुद ही कीमत लगाते हैं, किसी फसल का हम अपने हिसाब से भाव नहीं रख सकते हैं।" वहां का नियम अलग है बेटा यहां का अलग है।"
यह नियम अलग-अलग क्यों है पापा? रघु के पास इसका कोई जवाब नहीं था। व्यापारियों के हिसाब से फसल की कीमत तय होती है किसान चुपचाप देखती है। मैं पूछता हूं इतना असहाय क्यों होते हैं किसान?"

आखिरकार एक दुकान में उन्हें सस्ता कपड़ा मिल गया, कपड़ा भी अच्छा था, राजीव ही पसंद किया था। सविता के लिए साड़ी खरीदी और घर चले आए। राजीव अपने नए कपड़े को अपनी मां को दिखाएं मां भी बहुत खुश होती है अपने हाथों में पसंदीदा साड़ी के रंग को देखकर। ये मिडिल क्लास के लोग हैं, जो छोटी-छोटी चीजों में खुशियां तलाश लेते हैं।,,

"कुछ सोच ही रहे थे कि अचानक बादल की गड़गड़ाहट सुनाई दी रघु घर से बाहर आकर आसमान की ओर ताकने लगे, "नहीं होगी बारिश बादलों के आवाजाही, उनके घिरना देख अनुमान लगाए, "क्योंकि हवा की गति विपरीत है, सारे घटाओं को उड़ा के दूर ले जाएंगे।"

कुछ देर बाद बारिश होने लगी, जो उनके अनुमान से उल्टा(विपरीत) था दोनों पति-पत्नी के दिमाग में चिंता कि सुई चुभ गई। जैसे-जैसे बारिश तेज होने लगी वैसे-वैसे सविता की नजर में खुद की साड़ी का रंग फीका पड़ने लगा था। 

अब हुआ यह की दो दिनों तक बूंदाबांदी हुई पर लगातार बारिश होने से धान की काफी हानि हुई। 
दोनों पति-पत्नी फसल की चिंता में डूब गए थे। साथ में रघु की पत्नी सविता यह भी सोच रही है, "जीविका समूह का पैसा यहां पर रहने वाले सभी लोगों के खाते में तो आ गया। आखिर मेरे खाते मे अब तक क्यों नहीं आया?"
लेखक -: राहुल कुमार रावत, अलीगंज (जमुई)

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