गिद्धौर/जमुई (Gidhaur/Jamui), 28 अक्टूबर 2025, मंगलवार : मंगलवार की भोर में जैसे ही पूर्व दिशा में सूरज की पहली किरणें फूटीं, गिद्धौर के घाटों पर उमड़ी हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ ने लोकआस्था के महान पर्व छठ का समापन अटूट श्रद्धा और भक्ति भाव से किया। चार दिनों तक चले इस व्रत के अंतिम दिन व्रती महिलाओं ने उदयीमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर अपने परिवार की सुख, समृद्धि और मंगलकामना की।
गिद्धौर प्रखंड के दुर्गा मंदिर घाट, महावीर मंदिर घाट, रानी बगीचा घाट, कलाली घाट, सेवा आहर, गंगरा घाट सहित कई छोटे-बड़े घाटों पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। हर घाट दीपों, फूलों और झालरों से सजा हुआ था, जो एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। जैसे-जैसे सूर्य धीरे-धीरे ऊपर उठता गया, वैसे-वैसे घाटों पर छठ गीतों और जयघोषों की गूंज बढ़ती गई, “केलवा जे फरेला घवद से…” और “कांच ही बांस के बहंगिया…” जैसे लोकगीतों ने वातावरण को पूरी तरह भक्ति रस से भर दिया।
व्रती महिलाओं ने पारंपरिक परिधान में सजधज कर व्रत की मर्यादा और अनुशासन के साथ पूजा-अर्चना की। दउरा और सूप में ठेकुआ, केला, नारियल, ईख, और दीप सजाकर उन्होंने सूर्य भगवान को अर्घ्य अर्पित किया। इस दौरान घाटों पर दीपों की झिलमिलाहट और जल में प्रतिबिंबित सूर्य की सुनहरी किरणों ने पूरे माहौल को आध्यात्मिक बना दिया।
छठ महापर्व को लेकर गिद्धौर प्रशासन भी पूरी तरह मुस्तैद दिखा। सुरक्षा व्यवस्था, सफाई, प्रकाश और पेयजल की सुविधा के साथ भीड़ नियंत्रण की भी पुख्ता व्यवस्था की गई थी। गिद्धौर थाना पुलिस के जवान, पंचायत प्रतिनिधि और कई सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता लगातार घाटों पर सक्रिय रहे।
रतनपुर, सेवा, मौरा, कुंधुर, कोल्हुआ पतसंडा जैसे पंचायतों में भी छठ पर्व पूरे अनुशासन और सादगी के साथ मनाया गया। महिलाएं, पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग, सभी ने मिलकर इस लोकआस्था के पर्व में भाग लिया।
स्थानीय श्रद्धालुओं का कहना था कि छठ केवल पूजा का पर्व नहीं, बल्कि यह परिवार, समाज और पर्यावरण से जुड़ने का उत्सव है। यह पर्व हमें स्वच्छता, संयम और कृतज्ञता का संदेश देता है। वर्षों से चली आ रही यह परंपरा अब गिद्धौर की पहचान बन चुकी है, जहां हर घर में छठ की तैयारी हर्षोल्लास से होती है।
गिद्धौर की गलियों, सड़कों और घाटों से जब छठ मईया के गीतों की स्वर लहरियां गूंजीं, तो पूरा क्षेत्र भक्ति और लोकसंस्कृति से आलोकित हो उठा। यह नजारा न केवल श्रद्धा का, बल्कि बिहार की जीवंत लोकसंस्कृति, सामाजिक एकता और मानवीय संवेदना का भी सुंदर प्रतीक रहा।






