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विश्व शरणार्थी दिवस पर किया गया पौधारोपण का कार्यक्रम

संपादन :- शुभम मिश्र
किऊल, लखीसराय(Kiul,Lakhisarai)21-06-2023
कहा जाता है कि " जल ही जीवन है " इस कारण शायद ऐतिहासिक प्रमाणिक है कि मानव संस्कृति की शुरूआत नदियों के किनारे हुई है।लखीसराय जिला अंतर्गत किऊल भी " किऊल नदी" के किनारे बसा है।देखा जाय तो मानव अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए दिनों-दिन प्रकृति का दोहन करते जा रहा है।जिस कारण वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग की शुरुआत भी देखने को मिल रही है।

वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो प्रकृति को संरक्षित एवं नदियों को सुरक्षित करने की जद्दोजहद कर रहे हैं।ऐसे में एक व्यक्ति का पर्यावरण के प्रति समर्पण उनके महती भूमिका को बताता है।वो नाम और कोई नहीं पर्यावरण भारती के संस्थापक एवं अखिल भारतीय पेड़ उपक्रम टोली के सदस्य रामविलास शाण्डिल हैं।जिन्होंने नदियों को बचाने का संकल्प लिया है इसकी शुरुआत इन्होंने खगौर (किऊल) से की है।

उनका कहना है कि मनुष्य पर्यावरण को बचाने के लिए कोई भी महत्वपूर्ण दिवस चाहे वो अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय या स्वयं से जुड़ा हुआ ही क्यों न हो..! से पर्यावरण को बचाने के लिए कृतसंकल्पित होने की शुरुआत कर सकता है।जो हमेशा स्मरणीय भी रहेगा। इसलिये मैंने भी विश्व शरणार्थी दिवस के अवसर पर नदियों को सुरक्षित रखने के लिए किऊल नदी के किनारे वृक्षारोपण कर शुरुआत की है।वहीं 

उन्होंने विश्व शरणार्थी दिवस के बारे में बताया कि " शरणार्थी वह लोग होते हैं जो दूसरे देश से आपदा या उत्पीड़न के कारण उत्प्रवास कर किसी सुरक्षित देश में चले आते हैं जिनको शरणार्थी कहा जाता है।" UNHCR के अनुसार भारत में करीब 50000 से अधिक लोग शरणार्थी बन कर जीवन यापन कर रहे हैं। 

वहीं वर्ष 1951 के आंकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में करीब एक मीलियन शरणार्थी थे।जो 2023 में बढ़कर करीब 20 मीलियन हो गये हैं।इस वर्ष विश्व शरणार्थी दिवस का थीम " समावेशन और शरणार्थी समाधान के मूल्यों पर जोर देना है "। प्रत्येक वर्ष आज के दिन का मुख्य उद्देश्य विभिन्न देशों के शरणार्थियों को जागरूक करने के लिए इसके होस्ट देश उनके सहयोगी बनते हैं और साथ ही उन्हें सम्मानित एवं प्रोत्साहित भी किया जाता है।

इसकी शुरुआत 2000 ई. से की गई थी।जब युद्ध , गृह युद्ध ,आपदा एवं आतंकवाद की मार झेलते हुए बहुत सारे लोगों को मजबूरन अपने देश छोड़कर भागना पड़ा था और वर्तमान समय में वे लोग दूसरे देशों में शरणार्थी बनकर जीवन व्यतीत कर रहे हैं।वहीं संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों की बात की जाय तो विश्व में 68 % शरणार्थी केवल पांच देशों से हैं।जिनमें सीरिया, वेनेजुएला, अफगानिस्तान, सूडान, म्यान्मार जैसे देश शामिल हैं।वहीं हिन्दुस्तान विभाजन होने के बाद 1947 ई से बहुत सारे लोग आज भी भारत में शरणार्थी बन कर रह रहे हैं।

उक्त अवसर पर पर्यावरण भारती के सहयोगियों में हरिनंदन पासवान,धर्मेन्द्र पासवान,गणेश कुमार, मुंगेर जिला के विभाग संयोजक प्रशांत कुमार यदुवंशी,रूपेश कुमार,बिट्टू ,गोलू, मिथिलेश, नीतीश,विपिन, जितेन्द्र,विकास, कृष्णा सहित दर्जनों कार्यकर्ता मौजूद थे।

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