"लवंडिया लंदन से लायेंगे रात भर डीजे बजाएंगे..."
रात भर डीजे बजाने वालों को इसकी जानकारी होनी भी जरूरी है और प्रशासनिक स्तर पर भी इसपर कड़ाई करने की जरूरत है कि ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) कानून-2000 के मुताबिक रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर और डीजे बजाने पर पाबंदी है. यूं तो शहरों में यह लागू है और शहरी क्षेत्रों के निवासियों में इस कानून के प्रति प्रशासनिक डर भी है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में न तो इस कानून की जानकारी है और न ही डर. यहां तक कि प्रशासन भी इसे लेकर गंभीर नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2015 के एक आदेश में रात 10 बजे के बाद खुली जगहों पर तेज संगीत बजाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है.
राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह कुछ शर्तों के साथ रात 12 बजे तक लाउडस्पीकर और डीजे बजाने की इजाजत दे सकती हैं, लेकिन रात 12 बजे के बाद किसी को भी लाउडस्पीकर या डीजे बजाने की इजाजत नहीं है. ऐसा करना गैर कानूनी और क्राइम है. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) भी कह चुका है कि एक तय सीमा से तेज लाउडस्पीकर और डीजे बजाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.
संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन जीने के अधिकार के तहत ध्वनि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार भी आता है.
अगर देर रात तक लाउडस्पीकर या डीजे बजाने से किसी की नींद खराब होती है या मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, तो यह उसके मौलिक अधिकारों का हनन है. इसके खिलाफ पीड़ित व्यक्ति अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट या फिर अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है. साथ ही रात में लाउडस्पीकर और डीजे बजाने पर रोक लगाने की मांग कर सकता है.
ध्वनि का मानक डेसीबल होता है सामान्यतया 85 डेसीबल से तेज ध्वनि को कार्य करने में बाध्यकारी माना जाता है जो कि ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में आता है.
ध्वनि प्रदूषण नियमों के तहत अधिकतम स्वीकार्य सीमा दिन के दौरान 50 से 75 डेसिबल और रात में 40 से 70 डेसिबल के बीच है.
0 टिप्पणियाँ