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सूर्य को धन्यवाद स्वरूप मनाया जाता है मकर संक्रांति का त्योहार, जानिए भौगोलिक कारण

विशेष | मोनालिसा : आधुनिक काल से मकर संक्रांति को बहुत महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है। मान्यता है कि जब सितंबर माह में सूर्य उत्तरी गोलार्ध से दक्षिणी गोलार्ध की ओर 5 डिग्री खिसकती है, तो मौसम और तापमान में परिवर्तन देखने को मिलता है। वहीं नवम्बर माह में उत्तर पूर्व मानसून पूरे भारत में वर्षा कर के दक्षिण के तट पर कुछ बारिश की बूंदों से दक्षिण भारत के एकमात्र राज्य तमिलनाडु पर बरसती है, तब भारत से मानसून का अंत माना जाता है।

यूँ कहें तो वर्ष का अंत और नए वर्ष का आगाज़ में मौसम का परिवर्तन देखने को पूरे भारत वर्ष में मिलता है। जहां खेती से लेकर त्योहार का उल्लास भारत के नागरिकों में रहता है वहीं पशु पक्षी भी इस मौसम में स्थान परिवर्तन कर विश्राम करते हैं।

जहां उत्तर भारत में लोहरी तो पूर्व भारत मे बिहू से प्रचलित है, वही दक्षिण भारत मे थाई पोंगल, मकरचौला तो बंगाल में पौष सक्रांति या मकर सक्रांति के रूप में मनाया जाता है। जब सूर्य की किरण विषुवत रेखा से 5 डिग्री खिसकती है तो दक्षिण भारत मे उच्च दबाब का क्षेत्र बनता है और राजस्थान में निम्न दबाब का क्षेत्र बनता है। यानी कि सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध में 5 डिग्री की ओर शिफ्ट करता है। जब यह पेनिनसुलर भारत को टच करता है तब लोग यहां सूर्य को धन्यवाद स्वरूप त्योहार मानते है

अगर हम भारत मे स्थित बिहार राज्य की बात करें जो उत्तर पूर्व में स्थित है तो जनवरी माह में ठंड के प्रकोप से ढका रहता है। वहीं दक्षिण बिहार की बात करें तो बंगाल की खाड़ी के समीप होने की वजह से थोड़ा निम्न दबाब का क्षेत्र बना रहता है लेकिन उत्तर बिहार के भी करीब होने से हिमालय के बर्फ की गलन से ठंड से निजात न मिलने से वंचित रह जाता है।

मौसम की फेर बदल में यहां मकर संक्रांति मनाया जाता है।
इस मौसम में गुड़, तिल के अलावा कई सब्जिया जो स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है का सेवन लोग करते आ रहे हैं। 

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