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चकाई : संत वैदेही शरण जी महाराज बोले - शिव की आराधना से होती है परम धाम की प्राप्ति



चकाई/जमुई (Chakai/Jamui), 2 मार्च | सुधीर कुमार : अजन्मा अविनाशी देवों के देव् महादेव की निश्वार्थ आराधना से जहां मनुष्य को इस संसार रूपी भवसागर से मुक्ति मिल जाती हैं वहीं उसे परम् धाम की प्राप्ति होती है, उक्त सारगर्भित बातें अयोध्या से आये रामचरित मानस के प्रख्यात मर्मज्ञ श्री श्री 108 सन्त वैदेही शरण जी महराज ने रामचन्दरडीह शिव पार्वती मन्दिर के प्रांगण में आयोजित 5 दिवसीय शिव पार्वती महोत्सव के दौरान अपने प्रवचन के दौरान कही।


उन्होंने आगे कहा कि  भगवान भोलेनाथ बहुत जल्द ही अपने भक्तों पर प्रसन्न हो जाते है और मनचाहा फल प्रदान करते है।केवल भक्त निश्वार्थ भाव से धतूरा का फूल ,बेलपत्र एवं जल उन्हें अर्पण करें आपको उनकी कृपा अवश्य प्राप्त होगी।


वहीं उन्होंने शिव पुराण में वर्णित ब्याध की गाथा का उल्लेख करते हुए बताया कि एक बार एक ब्याधा अपने परिवार के भूख को मिटाने शिकार हेतु वन में एक जलाशय के किनारे एक घड़ा में पानी भरकर रात्रि प्रहर में बेलपत्र के पेड़ पर बैठ गय,जब जब हिरन पानी पीने जलाशय में आता तब वह धनुष पर प्रत्यंचा चढाता इसी कारण हाथ के धक्के से घड़े में रखा जल पेड़ के नीचे बनी शिवलिंग पर गिर सकता साथ में बेलपत्र भी। इसी प्रकार चार बार जल शिवलिंग पर गिरने से उनके अनजाने में ही सही चारो प्रहर की पूजा पूरी हुई. इसी बीच उसका हृदय परिवर्तन हो गया और उसने हिरन के शिकार का विचार त्याग दिया। वहीं अनजाने में ही ब्याध की पूजा से प्रशन्न भगवान भोलेनाथ ने उसे दर्शन देकर उसे सपरिवार अपने धाम में जगह दी।ऐसे है देवों के देव् औघड़ दानी भोलेनाथ।


वहीं सन्त वैदेही जी महाराज ने  शिव रात्रि महोत्सव कार्यक्रम के चौथे दिन शिव पार्वती विवाह पर चर्चा करते हुए कहा कि भगवान भोलेनाथ की पहली शादी प्रजापति दक्ष की पुत्री सती से सम्पन्न हुई थी। मगर दक्ष द्वारा यज्ञ के दौरान अपने जमाता शिव का अपमान करने पर वहां मौजूद सती ने अपने आपको यज्ञ के हवनकुंड में समर्पित कर दिया। इसके बाद कालांतर में सती ने राजा हिमाचल पर्वतराज  के घर उनकी पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया।


वहीं पार्वती ने अपने दूसरे जन्म में भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने हेतु घोर तपस्या की, देवताओं सहित स्वयं भगवान शिव ने रूप बदलकर उन्हें भगवान विष्णु सहित अन्य देवताओं को वरण करने का लालच दिया मगर पार्वती जी ने साफ कहा "बरोहुं शम्भू ना तो रहब कुवारी     जन्म जन्म के रगड़ हमारी।" तब भगवान शिव ने प्रशन्न होकर उन्हें अपनी भार्या के रूप में स्वीकार किया. जब बाबा भोलेनाथ की बारात महाशिवरात्रि के दिन भूत ,बेताल बरातियों के साथ पार्वती को ब्याहने राजा हिमाचल के घर पहुँची तो शरातियों की चीख निकल गयी।


वहीं जब भोलेनाथ जी की सास रानी मैनावती अपने सखियों के साथ दूल्हा रूपी शिव को परीक्षने आई तो गले में बंधे सांप की फुफकार सुन बेहोश हो गई तथा अन्य महिलाएं दूल्हे के भयानक रूप देख भाग खड़ी हुई. तब मां पार्वती ने भोलेनाथ से विनती की कि वे इस कठोर रूप को त्याग तथा नाग आदि को गले से उतारकर दूल्हे के सुंदर रूप में आएं तब भोलेनाथ ने अपना रूप बदला। तब उनका विवाह इसी महाशिवरात्रि की रात धूमधाम से सम्पन्न हुआ।


इस कथा का जो भक्त श्रवण करेगा या आज के दिन जो श्रद्धालु अखंड उपवास कर उनकी आराधना करेगा एवं उनके बारात में भाग लेगा उसे शिवलोक धाम की प्राप्ति होग.


वहीं  इस कार्यक्रम के आयोजक धर्मवीर आनन्द ने बताया कि शिव पार्वती विवाह की तैयारी चल रही।मंगल रात्रि को बारात नगर भृमण के लिए निकलेगी जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोग भूत, बेताल के रूप में भाग लेंगे।


इस मौके पर चकाई थानाध्यक्ष राजीव कुमार, चन्द्रधर मिश्र,सन्तु राय,सुनील प्रसाद ,जयनन्दन प्रसाद,भीम पंडित, केटकु पंडित, केदार पंडित, महेंद्र पंडित, गणेश मिश्र,रमेश मिश्र,सुनील ख़बाडे,अरुण रावत,परवीन राय सहित बड़ी संख्या में मोके पर मौजूद थे ।

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