गंगा-यमुना सरीखी इन दो पवित्र नदियों में सरस्वती स्वरुपनी दुधियाजोर मिश्रित होती है जिसे वर्तमान में झाझा रेलवे स्टेशन के पूर्व सिग्नल के पास देखा जा सकता है। इस संगम में स्नान करने के उपरांत हरिवंश पुरान का श्रवण करने से निस्संतान दंपती को गुणवान पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के प्रारंभ होते ही सुदूर अंचल से ब्रह्म मुहूर्त में इसी पवित्र नदी में स्नान कर नर-नारी दंडवत करते हुए इस मंदिर के द्वार पहुंचकर पूजा-अर्चना करते रहे हैं। चंदेल राजाओं के गिद्धौर राज की इस राजधानी को पतसंडा अथवा परसंडा के नाम से भी जाना जाता है।
शारदीय नवरात्र शुरू होते मध्य रात्रि से ही श्रद्धालु यहां दंडवत देने आने लगते हैं। केवल निकटवर्ती गांव ही नहीं, बल्कि दूर-दराज के इलाकों से भी असंख्य नर-नारी श्रद्धापूर्वक दंडवत देने आते हैं। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, दंडवत देने में उम्र मायने नहीं रखती। भारी भीड़ चप्पे चप्पे पर दिखाई देती है। रिजर्व गाड़ियों में श्रद्धालु यहां मध्यरात्रि से ही पहुंचने लगते हैं।
उलाई नदी एवं नागी-नकटी नदी के संगम में स्नान कर श्रद्धालु दंडवत देते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं और माता रानी के सामने नतमस्तक होते हैं। साथ ही कुछ श्रद्धालु दंडवत देते हुए ही मंदिर की परिक्रमा करते हैं। यही क्रम अपनी श्रद्धानुसार एक, तीन, पांच, सात, ग्यारह बार जैसे विषम संख्या में दिया जाता है। बारिश हो, या कोहरा, या हो कंपकंपाती ठंड, अहले सुबह ही श्रद्धालु दंडवत देने पहुंच जाते हैं। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह सदैव जागृत रहने वाला स्थान है। लोगों की आस्था ही है जो सबको यहां खींच लाती है और उनकी हर मनोइच्छा पूरी होती है।
[सभी तस्वीरें : निखिल कुमार]
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