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पटना : महावीर कैंसर संस्थान में परंपरागत तरीके से हुई देव शिल्पी विश्वकर्मा की पूजा


पटना (Patna), शुभम मिश्र : सूबे के सुप्रसिद्ध महावीर कैंसर संस्थान पटना,के रेडियोथेरेपी विभाग में शुक्रवार को शुभमुहूर्त में देवताओं के शिल्पकार कहे जाने वाले विश्वकर्मा जी की पूजा अर्चना परंपरागत तरीके से हर्षोल्लास के साथ की गई।इस बाबत आयोजक आर.एस.ओ रघुवंश कुमार,मुख्य रेडियोथेरेपी टेक्नोलोजिस्ट मनोज जी पिल्लई,वरीय रेडियोथेरेपी टेक्नोलोजिस्ट संजय शर्मा,मिथिलेश कुमार,ओमप्रकाश कुमार एवं विजय कुमार शर्मा ने बताया कि हमलोग कैंसर के मरीजों की चिकित्सा करने में बड़ी मशीनों का उपयोग करते हैं एवं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता, के साथ-साथ वास्तुकार माना जाता है।उनकी पूजा करने से काम में प्रयोग की जाने वाली मशीनें जल्दी खराब नहीं होती हैं और अच्छे से काम करती हैं।जिस कारण हमलोग प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी कन्या संक्रांति के पुण्यकाल में 17 सितम्बर,शुक्रवार के दिन इस संस्थान में देव शिल्पी की पूजा कर रहे हैं।जिससे कैंसर रोगियों की चिकित्सा करने में परेशानी न हो।

वहीं बतादें कि पौराणिक मान्यतानुसार भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पकार या यूं कहें कि इंजीनियर कहा गया है।जिनका जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को कन्या संक्रांति के पुण्यकाल में हुआ था।जिस कारण इस दिन को विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं।

उक्त अवसर पर संस्थान की डा॰ विनीता त्रिवेदी,डा॰ ऊषा, डा॰ मुकुल मिश्रा,डा॰ रीता रानी,डा॰ कंचन,डा॰ सुचिता,डा॰ तुलिका,फीजिसीस्ट शांतनु मैती,निर्जरा महंता,मेंहदी हसन,फरहाना, रेडियो थेरेपी टेक्नोलोजिस्ट आनंद कुमार शर्मा,राजेश कुमार,अंजलि मेहता,संदीप कुमार,अंशु सिंह,रागिनी शर्मा,वर्षा कुमारी,अंशु भारती, खुशबू कुमारी,मनीष कुमार, प्रभात रंजन, रेडियेशन विभाग के छात्र शिवम,आदर्श, शुभम, नवीन, पवन,जीतेश, वर्णिका, पिंकी, उज्जवल,गोलू, शिखा,पूजा, प्रतिभा,ज्योति सिन्हा सहित दर्जनों चिकित्सक एवं कर्मचारी मौजूद थे।

इस तरह हुई भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति

पौराणिक कथानुसार सृष्टि के प्रारंभ में भगवान विष्णु चीर सागर की शेषशय्या पर प्रकट हुए।उनके नाभि-कमल से चतुर्मुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे।ब्रह्म के पुत्र धर्म की ' वस्तु ' नामक स्त्री से उत्पन्न सातवें पुत्र ' वास्तुदेव' हुए ; जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे।उन्हीं वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से उत्पन्न विश्वकर्मा का जन्म हुआ ; जो अपने पिता की भांति वास्तुकला के अद्वितीय विद्वान बने।पुराणों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताये गये हैं।द्विबाहु ,चतुर्बाहु, दस बाहु,एकमुखी,चतुर्मुखी, पंचमुखी रूपों में हमलोग जानते हैं।वहीं भगवान विश्वकर्मा का ज़िक्र 12 आदित्यों और लोकपालों के साथ ऋग्वेद में भी होता है।

वस्तु एवं शिल्प विद्याओं से संबंध

पौराणिक मान्यतानुसार विश्वकर्मा जी के पांच पुत्र मनु ,मय,त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हुए।ये पांचो वस्तु एवं शिल्प की अलग-अलग विद्याओं में पारंगत थे।इन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार किया।
इस प्रसंग में इन्हें जोड़ा जाता है 
• मनु - लोहा से
• मय - लकड़ी 
• त्वष्टा - कांसा एवं तांबा
• शिल्पी -- ईंट
• दैवज्ञ -- सोना एवं चांदी

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