गिद्धौर स्थित ऐतिहासिक पंचमंदिर, बाबा बूढ़ा नाथ मंदिर, बूढ़ी नाथ मंदिर, बाबूसाहब टोला शिव मंदिर, धोवघट के ऐतिहासिक महादेव मंदिर, कोल्हुआ के बाबा घनश्याम मंदिर एवं क्षेत्र के अन्य मंदिरों में साफ-सफाई हो रही है. लेकिन, कोरोना का असर प्रभावी होने के कारण उक्त मंदिरों में भीड़ व चहल पहल बेहद कम होगी. श्रद्धालु इसको लेकर संवेदनशील होने लगे हैं.
11 मार्च को है महाशिवरात्रि
इस वर्ष महाशिवरात्रि गुरुवार यानी 11 मार्च को है. कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का असर इसपर भी अपना रंग दिखा रहा है. इसको लेकर बहुत से श्रद्धालु भी स्वयं सुरक्षा के तहत घर पर ही पूजा कर लेना मुनासिब समझ रहे हैं.
कोरोना से बचाव को मास्क जरूरी
कोरोना से बचाव के लिए शारीरिक दूरी और मास्क पहनना जरूरी है. शिवरात्रि में मंदिर जाएंगे तो शारीरिक दूरी का पालन मुश्किल होगा. ऐसे में जरूरी है कि हम घर पर ही भोलेनाथ की पूजा कर लें. ढेकडीह निवासी पंडित वेदानंद पांडेय ने कहा कि इस अवसर पर होने वाली भारी भीड़ में कोरोना को काबू में करना किसी चुनौती से कम नहीं है. अत: घर पर ही पूजा कर लेना श्रेयस्कर है. धतूरा का फल, फूल, भांग का फूल, फल, बेर, बेलपत्र के साथ सफेद फूल व दूध से भगवान भोलेनाथ की पूजा करने की परंपरा है. इस दिन भगवान की पूजा करने से मनुष्य की सारी मनोरथ पूरा होने के साथ सीधा मोक्ष मिलता है.
कब है मुहूर्त, क्यों करते हैं पूजा?
इस पर्व को देश भर में सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. इस त्योहार को लेकर कई प्रकार की मान्यताएं प्रचलित हैं. पहली यह कि इस दिन भगवान लिंग के रूप में प्रकट हुए थे. जबकि दूसरी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. शिव-पार्वती के विवाहोत्सव के रूप में देश भर में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है.
कोरोना से बचाव के लिए शारीरिक दूरी और मास्क पहनना जरूरी है. शिवरात्रि में मंदिर जाएंगे तो शारीरिक दूरी का पालन मुश्किल होगा. ऐसे में जरूरी है कि हम घर पर ही भोलेनाथ की पूजा कर लें. ढेकडीह निवासी पंडित वेदानंद पांडेय ने कहा कि इस अवसर पर होने वाली भारी भीड़ में कोरोना को काबू में करना किसी चुनौती से कम नहीं है. अत: घर पर ही पूजा कर लेना श्रेयस्कर है. धतूरा का फल, फूल, भांग का फूल, फल, बेर, बेलपत्र के साथ सफेद फूल व दूध से भगवान भोलेनाथ की पूजा करने की परंपरा है. इस दिन भगवान की पूजा करने से मनुष्य की सारी मनोरथ पूरा होने के साथ सीधा मोक्ष मिलता है.
कब है मुहूर्त, क्यों करते हैं पूजा?
इस पर्व को देश भर में सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. इस त्योहार को लेकर कई प्रकार की मान्यताएं प्रचलित हैं. पहली यह कि इस दिन भगवान लिंग के रूप में प्रकट हुए थे. जबकि दूसरी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. शिव-पार्वती के विवाहोत्सव के रूप में देश भर में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है.
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