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Saturday, 21 November 2020

गिद्धौर : उलाई नदी के विभिन्न घाटों पर जुटे छठ व्रती, कोरोना से मुक्ति की कामना के साथ महापर्व संपन्न

गिद्धौर/जमुई (Gidhaur/Jamui) | सुशांत साईं सुन्दरम : गिद्धौर में लोक आस्था का महापर्व छठ (Mahaparv Chhath) उल्लासपूर्वक मनाया गया. बुधवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ यह पर्व शनिवार को उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ समाप्त हुआ. बुधवार को छठ व्रतियों ने स्नान कर कद्दू की सब्जी, चावल और चने की दाल बनाई. जिसे सर्वप्रथम व्रती ने ग्रहण किया. तत्पश्चात परिजनों ने प्रसाद के रूप में उसे ग्रहण किया. इन व्यंजनों के साथ पापड़, तिलौरी, पकौड़ी सहित अन्य कई पकवान भी बनाये गए. नहाय-खाय को आमतौर पर कद्दू-भात के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन कद्दू की सब्जी और भात खाने की परंपरा के कारण यह दिन ही कद्दू-भात के नाम से प्रचलित हो गया है.

खरना में लगा दूध-गुड़ से बने रसिया का भोग

इसके अगले दिन खरना के मौके पर रोटी, केला, गुड़, भात-दूध अथवा रसिया या खीर का भोग पान-सुपारी के साथ छठ मैया को लगाया जाता है. जिसके बाद पहला प्रसाद छठ व्रती ग्रहण करते हैं. तत्पश्चात सभी परिजनों को छठ व्रती भखरा सिंदूर का टीका लगाकर प्रसाद देते हैं. यूँ तो परंपरा रही है कि खरना का प्रसाद के लिए न्योता नहीं दिया जाता है, लोग मांगकर इसे खाते हैं. लेकिन अब जिनके घर छठ होता है वे अपने मित्रों को खरना का प्रसाद खाने का न्योता भी अब देने लगे हैं. खरना से ही ३६ घंटों से भी अधिक समय का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है.

संध्या अर्घ्य से पूर्व हुई घाटों की साफ़-सफाई

खरना के अगले दिन संध्या बेला में अस्ताचलगामी सूर्य को गिद्धौर के उलाई नदी (Ulai River) में अर्घ्य दिया गया. गिद्धौर के दुर्गा मंदिर घाट, हनुमान मंदिर घाट, रानी बगीचा घाट, घनश्याम स्थान रोड घाट सहित अन्य सभी छठ घाटों पर भगवान भास्कर को श्रद्धालुओं ने अर्घ्य दिया. कोरोना के कारण जारी दिशा-निर्देशों को दरकिनार कर श्रद्धालु छठ घाट पहुंचे और छठी मैया में अपनी अटूट आस्था और विश्वास का परिचय दिया. इससे पूर्व छठ घाटों का निर्माण और सफाई शारदीय दुर्गा पूजा सह लक्ष्मी समिति की अध्यक्ष व पतसंडा पंचायत की मुखिया संगीता सिंह के दिशा-निर्देश पर किया गया. साथ ही सडकों की सफाई और मरम्मती आम लोगों ने आपसी सहयोग से किया. यह बिहार की ही परंपरा है कि उगते सूर्य के पूर्व डूबते सूर्य की पूजा की जाती है. इसका सकारात्मक तात्पर्य यह है कि जो अस्त हो रहा है उसका उदय भी सुनिश्चित है. यह लोगों में सकारात्मकता के भाव पैदा करता है.

प्रातः अर्घ्य में बच्चों ने जलाये फुलझड़ी-पटाखे

वहीं शनिवार को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया गया. सूर्योदय के पूर्व अनुमानित समय सुबह के 6 बजकर 5 मिनट से लगभग आधे घंटे विलम्ब से भगवान भास्कर ने दर्शन दिया. छठ व्रती सुबह के ४ बजे से ही छठ घाट पर जुटने लगे थे. बच्चे, बूढ़े, युवा और महिलाएं बड़ी संख्या में छठ घाट पहुंचे. बच्चों में उत्साह देखा गया. छठ घाट किनारे पटाखे-फुलझड़ियाँ लेकर बच्चे उमंग में झूमते नजर आये. वहीं सूर्योदय में विलंब के समय महिलाओं ने मंगलगान किया. आम से लेकर ख़ास, सभी ने लोक कल्याण की भावना के साथ छठ मैया को अर्घ्य दिया. बड़ी संख्या में बाहर रहने वाले लोग भी छठ पर्व में अपने गाँव वापस आये. बता दें कि छठ का त्योहार स्वच्छता, शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक है. इसकी तैयारियां दुर्गा पूजा खत्म होती ही शुरू हो जाती है. उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ ही गिद्धौर प्रखंड के अन्य सभी आठ पंचायतों में आस्था के साथ छठ महापर्व संपन्न हुआ.

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