(दुर्गा मंदिर, गिद्धौर) |
गिद्धौर/जमुई (Gidhaur/Jamui) | अपराजिता :
महालया दुर्गा पूजा (Durga Puja) के शुरू होने के ठीक पहले की अमावस्या यानि नवरात्रि के एक दिन पहले मनाया जाता है. महालया दुर्गा पूजा (Durga Pooja) की शुरुआत और पितृपक्ष का समापन माना जाता है. इस साल अधिक मास के कारण नवरात्रि 17 अक्टूबर से प्रारंभ है. हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की अमावस्या को महालय अमावस्या कहते हैं. गिद्धौर (Giddhaur) राज रियासत के वर्तमान ज्योतिषाचार्य पंडित डॉ. विभूति नाथ झा ने बताया कि इस वर्ष दो आश्विन मास हैं- एक शुद्ध आश्विन मास तथा दूसरा अधिक मास. 18 सितम्बर से 16 अक्टूबर तक अधिक मास है. 17 से 31 अक्टूबर तक शुद्ध आश्विन मास होंगे. इस वर्ष महालया (Mahalaya) 17 सितम्बर को था. 17 से 26 अक्टूबर तक नवरात्रि की पूजा होगी.
बंगाल में महत्वपूर्ण है महालया
बंगाल में इसी दिन माँ दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकार उनकी आँखे बनाते हैं और उनमें रंग भरने का कार्य करते हैं. इस कार्य की शुरुआत भी विधि-विधान के साथ की जाती है.
महालया का इतिहास क्या है?
आदिकाल में महिषासुर नमक एक दैत्य हुआ करता था जो बड़ा ही क्रूर, विनाशकारी, अधर्मी तथा अत्याचारी था. महिषासुर को वरदान मिला था की कोई भी देवता अथवा पुरुष उसका वध नहीं कर पाएगा. वरदान पाकर महिषासुर ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया, जिसमे महिषासुर ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली. महिषासुर के अत्याचार से सभी देवता परेशान हो गए और भगवान विष्णु के पास गए. महिषासुर से रक्षा के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदिशक्तिरुपा जगदम्बा की आराधना की. इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से दिव्य प्रकाश निकला, जिसने देवी का रूप धारण कर लिया. सभी देवताओं ने देवी को अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए. देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से भीषण युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया. माँ दुर्गा को शक्ति की देवी माना जाता है.
इस वर्ष कोरोना (Corona) जैसी वश्विक महामारी के कारण मातारानी के भक्तों को सामाजिक दूरी बनाते हुए तथा मास्क का प्रयोग करते हुए मंदिर में पूजा हेतु जाना चाहिए. माँ तो हम भक्तों की रक्षा हमेशा करती ही हैं. लेकिन हमें भी अपने कर्मों से विमुख नहीं होना चाहिए. हमें अपने तथा अपनों के स्वास्थ्य के प्रति हमेशा जागरूक रहने की आवश्यकता है. देवी से स्वास्थ्य की रक्षा के लिए श्री दुर्गासप्तशती में कहा गया है –
“रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् । त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।”
भावार्थ – माँ तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर सभी कामनाओं का नाश कर देती हो. जो लोग तुम्हारी शरण में आ चुके हैं उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं. तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं.
महालया को लेकर एक अन्य कहानी भी प्रसिद्ध है.
हिन्दू मान्यता के अनुसार माँ दुर्गा का भगवान भोले नाथ से विवाह होने के बाद उनके मायके आगमन को महालया के रूप में मनाया जाता है. उनके आगमन पर खास तैयारी की जाती है. मान्यतानुसार इस दिन माता कैलाश पर्वत से भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय, देवी लक्ष्मी तथा देवी सरस्वती के साथ पृथ्वी लोक पर आती हैं. महालया अमावस्या का खास महत्व गरुड़ पुराण में बताया गया है. हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार इस दिन हमारे पूर्वज हवा के रूप में दरवाजे पर आ के दस्तक देते हैं. साथ ही अपने हर परिवारवालों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं.
“सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्ययाम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते.” इस श्लोक में सभी के कल्याण हेतु माँ को नमन किया जाता है. इस श्लोक का अर्थ है सभी का मंगल करने वाली देवी, सभी को शरण देने वाली, तीन नेत्रों और अत्यंत सुंदरी नारायणी, हम आपको नमन करते हैं. यह मन्त्र 17 अक्टूबर से नवरात्र प्रारंभ होते ही चारों दिशाओं में गूंजेगा. दुर्गा पूजा महालया के दिन से ही शुरू हो जाता है. महालया हमारे जीवन में शांति, सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य, उन्नति एवं प्रगति लेकर आता है. इस वर्ष नवरात्रि 17 अक्टूबर से शुरू है. विजयादशमी २६ अक्टूबर को है. gidhaur.com आपको नियमित दुर्गा पूजा से सम्बंधित ख़बरें और जानकारियां उपलब्ध करवाते रहेगा.
मातारानी आप सबों को उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें. आप सभी स्वस्थ रहें, खुश रहें और जुड़े रहें आपके अपने gidhaur.com से
जय मातारानी. पतसंडे वाली माता की जय.
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