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कवि कथा - १३ : कवि के विवाह में घूंघट का रस्म मुझसे करवाया गया, तबसे कवि मुझे भाईजी कहने लगे

विशेष : जमुई जिलान्तर्गत मांगोबंदर के निवासी 72 वर्षीय अवनींद्र नाथ मिश्र का 26 अगस्त 2020 को तड़के पटना के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. स्व. मिश्र बिहार विधान सभा के पूर्व प्रशासी पदाधिकारी रह चुके थे एवं वर्तमान पर्यटन मंत्री के आप्त सचिव थे. स्व. मिश्र विधान सभा के विधायी कार्यो के विशेषज्ञ माने जाते थे. इस कारण किसी भी दल के मंत्री उन्हें अपने आप्त सचिव के रूप में रखना चाहते थे.

अवनींद्र नाथ मिश्र जी के निधन के बाद उनके भाई एवं गिधौरिया बोली के कवि व हिंदी साहित्य के उच्चस्तरीय लेखक श्री ज्योतिन्द्र मिश्र अपने संस्मरणों को साझा कर रहे हैं. स्व. अवनींद्र नाथ मिश्र का पुकारू नाम 'कवि' था. ज्योतिन्द्र मिश्र जी ने इन संस्मरणों को 'कवि कथा' का नाम दिया है. इन्हें हम धारावाहिक तौर पर gidhaur.com के अपने पाठकों के पढने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. यह अक्षरशः श्री ज्योतिन्द्र मिश्र जी के लिखे शब्दों में ही है. हमने अपनी ओर से इसमें कोई भी संपादन नहीं किया है. पढ़िए यहाँ...
कवि- कथा (१३)

कवि अर्थात अवनींद्र नाथ मिश्र ने जब तत्कालीन विधान सभाध्यक्ष के आवासीय कार्यालय में बाजाप्ता आप्त सचिव का पद सम्हाल लिया तो मैंने भी खुद को समेटते हुए अपनी सरकारी सेवा में मिहनत करना शुरू किया ताकि विभाग में मेरी पहचान बने ।एक साल के अंदर टॉप टेन की सूची में आ गया ।टॉप टेन की व्यवस्था विभागीय most urgent  कार्य के त्वरित निष्पादन के लिए सिंचाई विभाग में की गई थी ।इन्हें अनिवार्य रूप से मानदेय दिया जाता था । कवि भी मेरे साथ ही रहते थे । एक साथ ऑफिस निकलते । वे  प्रायः देर रात में लौटते ।उनके आने पर ही उनकी भौजाई खाना खाती थी। प्रायः कवि के पसन्द का ही खाना बनता था। 1978 में कवि का विवाह सनहौला ब्लॉक के भूरिया गांव के प्रतिष्ठित  कविराज हरिनन्दन मिश्र जी की पुत्री से हुआ। बड़े
 बाबूजी के आदेशानुसार घूंघट का रस्म बड़ा भाई होने के कारण मुझसे ही कराया गया। उसी वक्त से कवि मुझे भाईजी कहकर संबोधित करने लगे । इस सम्बोधन और ओहदे का फायदा उन्होंने तब उठाया जब जुलाई 78 में हुई शादी के बाद अगला द्विरागमन वर्ष 1979 के मार्च में मेरी माँ ने तय किया था ।उसने बीच का रास्ता निकालने के लिये भाई जी से अपना वीटो लगाकर पत्नी को पटना में बुला लेने का मन बना लिया । वेतन मिल ही रहा था ।तय हुआ कि दोनों मिलकर एक दूसरा मकान लिया जाय ।जिसमें कम से कम दो रूम हो । ऐसा ही हुआ । लेकिन कुछ ही महीनों में अनुज के स्वभाव में किंचित परिवर्त्तन प्रकट होने लगे । खुलापन की जगह गोपनीयता बरतने लगे । यद्यपि परिवर्त्तन की वजह सर्वज्ञात रहते  हुए भी संयुक्त परिवार की अनूठी गरिमा को भरसक बचाये रखने का प्रयास करना ही था ।उस कालखंड में भी हमारा परिवार  भाइयों के आपसी प्रेम का उदाहरण माना जाता था जबकि मेरे परिवार में पधारने वाली बहुएं  संयुक्त परिवार की फिलॉसफी से अनभिज्ञ थीं ।फिर भी हम 16 वर्षों तक एक साथ किराए के मकान में यत्र तत्र रहे ।उन्हें विधानसभा में शोध सहायक के पद पर योग्यतानुसार स्थायी कर दिया गया था ।  घर मे बहनों के विवाह का उत्तरदायित्व  कमासुत पुत्रों की ओर सरका दिया गया  । मेरे बाबूजी के परम् प्रिय पुत्र के रूप में इस कारण भी इनकी गिनती होती थी कि ये दोनों मानसिक तौर पर राज नीति  के करीब थे ।  कवि जो कहें सो सच ।मैं सच कहूँ तो झूठ । 
क्रमशः


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