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सोमवार, 7 सितंबर 2020

कवि कथा - ९ : हम भाई तो थे ही, हम दोस्त भी थे, अपने हिस्से की प्रेम गाथाएं भी एक दूसरे से शेयर करते थे

विशेष : जमुई जिलान्तर्गत मांगोबंदर के निवासी 72 वर्षीय अवनींद्र नाथ मिश्र का 26 अगस्त 2020 को तड़के पटना के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. स्व. मिश्र बिहार विधान सभा के पूर्व प्रशासी पदाधिकारी रह चुके थे एवं वर्तमान पर्यटन मंत्री के आप्त सचिव थे. स्व. मिश्र विधान सभा के विधायी कार्यो के विशेषज्ञ माने जाते थे. इस कारण किसी भी दल के मंत्री उन्हें अपने आप्त सचिव के रूप में रखना चाहते थे.

अवनींद्र नाथ मिश्र जी के निधन के बाद उनके भाई एवं गिधौरिया बोली के कवि व हिंदी साहित्य के उच्चस्तरीय लेखक श्री ज्योतिन्द्र मिश्र अपने संस्मरणों को साझा कर रहे हैं. स्व. अवनींद्र नाथ मिश्र का पुकारू नाम 'कवि' था. ज्योतिन्द्र मिश्र जी ने इन संस्मरणों को 'कवि कथा' का नाम दिया है. इन्हें हम धारावाहिक तौर पर gidhaur.com के अपने पाठकों के पढने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. यह अक्षरशः श्री ज्योतिन्द्र मिश्र जी के लिखे शब्दों में ही है. हमने अपनी ओर से इसमें कोई भी संपादन नहीं किया है. पढ़िए यहाँ...
कवि-कथा (९)

वर्ष 1965 , हायर सेकेंडरी का इम्तहान देकर निश्चिन्तता आ गयी।हमारा सत्रहवाँ साल चल रहा था।सनद रहे कि हम दोनों भाई तो थे ही । हम दोस्त भी थे। हम उम्र भी थे ।वसन्त का आगमन हो चुका था । अपने अपने हिस्से की प्रेम गाथाएं भी एक दूसरे से शेयर करते थे । दोपहर में पढ़ने के बहाने प्रेम पत्र लिखना अथवा पढ़ना एक अनिवार्य चर्या में शामिल हो गया था। भले हम सफल नहीं हुए लेकिन प्रेम करना तो सीख ही गये । आगे का हाल बताना अशोभन होगा । भाई कवि की विनोद प्रियता ने प्रेम के मामले में भी उसे अव्वल बना दिया । हमारे पास जो वक्त था वह रिजल्ट के इंतज़ार भर का था। कवि से कहा कि चलो मछली मारने चलते हैं । वह सोना चाहता था । सो गया।
खीझ कर टट्टी में खोंस कर रखी हुई  बंसी और छीप निकाली और केंचुआ ढूंढते सहेजते पोखर पर पहुँच गये ।
मुझसे पहले मेरे जैसा ही सनकी बंसी डाले बैठा था । मैंने भी अपनी जगह बनाई और साधना में बैठ गए।11 बजे से बैठे बैठे , बकोध्यान लगाये 4 बज गये । मछली मारने जाते थे तो लम्बे गर्दन वाली बोतल जिसमें गुलाब जल आता था डिस्पेंसरी के लिये ,उसमें पानी भर कर पीने के लिये ले जाते थे। इसके अलावे एक जेब छूरी भी रखते थे ताकि खजूर की छड़ी के छाल से मछली का हार गूंथ सकूं। एक हाथ लम्बा बनता था । अभी तीन हिस्सा ही उस खजूरी हार में पोठिया, चेंगा, गरई और एक दो नैनी का बच्चा गूंथ सका था । फिर भी परिश्रम बेकार नहीं गया ।लगभग तीन पाव तो हो ही गया । एक और एक और के फेर में इधर उधर  छीप डाल रहे थे ।  थक भी गये थे ।भूख भी लग रही थी । तभी मुझे सायकिल की घण्टी बजने की आवाज आई। अपने घर की साइकिल की घण्टी की आवाज से मेरे कान परिचित थे । सो मैंने नजर उठाकर तालाब के ऊपर भिंड पर देखा। अरे यह क्या ? बड़े बाबूजी ? घर में कुछ हुआ क्या ? 
तभी  उन्हीने  पूछा  ? क्या हो रहा है भोले व्यापारी ? वे अक्सर मुझे भोले व्यापारी कहा करते थे । यह उनका व्यंग्य मिश्रित स्नेह होता था । समझना हो तो समझिए नहीं तो आप जानिए।इतना तो तय था कि वे कभी छड़ी नहीं उठाते थे ।न चलाते थे । बस बात से ही काम चलाते थे। सब कुछ समेट कर उनके सामने हाजिर हुआ ।बोले चलो। मैं बंशी छीप मछली का हार लेकर बाबूजी के कैरियर पर बैठ गया। घर पहुँचे तो मेरी माँ मुझे घूरने लगी। बड़ी माँ उदास दिखी। कवि के आँख में आँसू थे। छोटी बहने कवि के बगल में खड़ी थी । हुआ क्या ।मैं तो भौंचक था। तभी बाबूजी ने पोस्ट कार्ड मुझे दिया ।यह पोस्ट कार्ड गुरुदेव कीस्टो बाबू ने भेजा था ।लिखा था - वैद्य जी , प्रणाम । चि ज्योतीन्द्र सेकेंड डिवीजन से उत्तीर्ण हो गया है । चि अवनींद्र को क्रॉस लग गया । स्कूल आकर समझ लें । आपका  -- कीस्टो 
मैंने बड़े बाबूजी की ओर देखा। वे कतई उदास नहीं थे ।मैंने उनसे कहा कि अक्सर मेरे और कवि के नाम में लोग कन्फ्यूज कर जाते हैं । संभव है कीस्टो बाबू से लिखने में गलती हो गयी हो । तब तक कवि बिफर पड़े । कैसे गलती हो जाएगा ? तुम्हारा ही रिजल्ट होगा ।
मैंने फिर दुहराया ।मेरा होने का तो कोई आधार ही नहीं है ।मेरा मैथ तो गड़बड़ाया ही होगा ।वह फिर अड़ गया।
बड़े बाबूजी ने कहा कि कल जमुई जाकर पता कर लेना। 
मैं सोच नहीं पा रहा था कि इन मछलियों का क्या करूँ जो दिन भर की मिहनत से अर्जित किया गया था । 
क्रमशः

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