कवि कथा - ८ : कवि मेरी दुर्दशा पर रोने लगे, समझ में नहीं आ रहा था कि उसे हिन्दी में 73 नम्बर कैसे आया और मुझे 29 क्यों? - gidhaur.com : Gidhaur - गिद्धौर - Gidhaur News - Bihar - Jamui - जमुई - Jamui Samachar - जमुई समाचार

Breaking

Post Top Ad - Contact for Advt

Post Top Ad - Sushant Sai Sundaram Durga Puja Evam Lakshmi Puja

सोमवार, 7 सितंबर 2020

कवि कथा - ८ : कवि मेरी दुर्दशा पर रोने लगे, समझ में नहीं आ रहा था कि उसे हिन्दी में 73 नम्बर कैसे आया और मुझे 29 क्यों?

विशेष : जमुई जिलान्तर्गत मांगोबंदर के निवासी 72 वर्षीय अवनींद्र नाथ मिश्र का 26 अगस्त 2020 को तड़के पटना के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. स्व. मिश्र बिहार विधान सभा के पूर्व प्रशासी पदाधिकारी रह चुके थे एवं वर्तमान पर्यटन मंत्री के आप्त सचिव थे. स्व. मिश्र विधान सभा के विधायी कार्यो के विशेषज्ञ माने जाते थे. इस कारण किसी भी दल के मंत्री उन्हें अपने आप्त सचिव के रूप में रखना चाहते थे.

अवनींद्र नाथ मिश्र जी के निधन के बाद उनके भाई एवं गिधौरिया बोली के कवि व हिंदी साहित्य के उच्चस्तरीय लेखक श्री ज्योतिन्द्र मिश्र अपने संस्मरणों को साझा कर रहे हैं. स्व. अवनींद्र नाथ मिश्र का पुकारू नाम 'कवि' था. ज्योतिन्द्र मिश्र जी ने इन संस्मरणों को 'कवि कथा' का नाम दिया है. इन्हें हम धारावाहिक तौर पर gidhaur.com के अपने पाठकों के पढने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. यह अक्षरशः श्री ज्योतिन्द्र मिश्र जी के लिखे शब्दों में ही है. हमने अपनी ओर से इसमें कोई भी संपादन नहीं किया है. पढ़िए यहाँ...

कवि -कथा (८)

तुलसी जयंती के दिन बालकवि होने की हैसियत ज्यादा देर नहीं टिक सकी। दो तीन दिन बाद  क्लास में पिछले छमाही इम्तहान की कापियाँ जब जाँच ली गयी तो सम्बन्धित छात्रों को वे कापियाँ एसेसमेंट के लिये दे दी जाती थी । जिसे गार्जियन भी देखते थे । हिसाब में तो मैं फेल ही होता था इस बार हिंदी में 29 नम्बर देकर हिंदी के स्वघोषित महाकवि शिक्षक श्री विकास प्रसाद सिंह ने मेरी खटिया खड़ी कर दी। हमारे वर्ग मित्र ने मजाक उड़ाना शुरू किया । मेरे अनुज कवि तो मेरी दुर्दशा पर रोने लगे । उसे भी यह समझ में नहीं आ रहा था कि उसे हिन्दी में 73 नम्बर कैसे आया और मुझे 29 क्यों ? अपमान और गुस्से का घूँट पीते हुए किसी प्रकार छुट्टी की घण्टी बजने का इंतज़ार किया । स्कूल के गेट के आगे ही जमुई कोर्ट है । दूसरा दुर्योग सामने था इसका आभास मुझे हुआ ही नहीं। मेरे पिताजी कचहरी के किसी काम से गांव के ग्राम सेवक बालेसर प्रसाद के साथ D C L R से मिलने आये थे। कवि ने उन्हें देख लिया ।अब अपना मूड ठीक करें तो कैसे । मनोभाव को मैं छिपा नहीं सका। पिताजी समझ गये कि कुछ हुआ है। उन्होंने सोचा कि शायद भूख लगी होगी । कचहरी के समोसे रसगुल्ले तो रोज लुभाते ही थे। बालेसर भाई हमें ले गये और भर पेट नाश्ता हुआ । नाश्ते के क्रम में कवि ने बाबूजी को सब बता दिया। अपने बारे में भी बताया कि वह हिंदी और मैथ में भी 70 नम्बर से ज्यादा लाया है । और मैं 30 नम्बर भी नहीं ला सका । अच्छा हुआ ,कचहरी में तो मेरा केस नहीं खुला । एक सप्ताह बाद मेरे बाबूजी दिग्घी गये और सुप्रीम कोर्ट  में रिट ही दायर नहीं किया , बड़े भाई पर महाभियोग भी लगा दिया कि विद्वान का बेटा तो पढबे करेगा । आप उसकी हिन्दी को अच्छा कहते थे ! वो हिन्दी में भी फेल है।
बड़े बाबूजी ने संयत भाव से उन्हें जबाब दिया कि कॉपी जांच में ही गड़बड़ी हुई होगी या और कोई कारण होगा।
पता करो। बड़ी माँ ने हिदायत दी कि उसको  डाँट फटकार नहीं करिएगा ।मेरे बाबूजी को इससे ज्यादा डोज़  चाहिए भी नहीं था।
( चित्र में मेरी बड़ी माँ)
हुआ यूं था कि विकास सिंह जी स्वघोषित महाकवि थे। हिन्दी की सप्रसंग व्याख्या लिखने में उनकी कविताओं को ही कोट करते हुए नीचे में डॉ विकास लिखने को  बच्चों पर दबाब बनाते ,उनका यह सुझाव मुझे पसंद नहीं था । बड़े बाबूजी ने सप्रसंग व्याख्या लिखने वक्त आवश्यकतानुसार ही सन्दर्भ को सुशोभित करने के लिए हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थ कवियों की पंक्तियों को कोट करने की प्रक्रिया बताई थी। मैं वही करता था ।कहीं भी विकास जी को कोट नहीं करता था। जब कि कवि  वेवजह भी डा विकास लिख दिया करता था। जब दोनों कापियाँ बड़े बाबूजी के सामने गयी तो  तो वे सब प्रपंच समझ गये। मुझसे कहा कि तुम जैसे लिखते हो लिखते रहो।  यह भी कहा कि कवि ने खुशामदी नम्बर लाया है ।
मेरा मन शांत हो गया लेकिन इससे क्या ।स्कूल में ,होस्टल में तो कवि ही मिहनती विद्यार्थी  की गिनती में आ गये थे ।अब मेरे जैसे मनमौजी के लिये दबंग टीचर की खोज होने लगी। स्कूल में तो कीस्टो बाबू का नाम था । उनसे पूछा गया कि मुझे ट्यूशन पढ़ायेंगे । वे बोले अगले महीने से आ जायेगा। इस बीच मेरी माँ दिघी में अत्यंत सीरियस हो गयी । दौड़ा दौड़ी हो गया । आनन फानन में मुझे माँ के साथ इसलिये पटना ले जाया गया कि कहीं मर जायेगी तो बेटा मुखाग्नि तो देगा। खैर , दो महीने तक हुए इलाज के बाद मेरी माँ मुझे वापस मिल गयी ।दो महीने मेरी पढ़ाई बाधित हुई। माँ ने ज़िद ठान दिया कि उसकी बेटी का विवाह देख ले । अब बीच बीच में मुझे बड़े बाबूजी के साथ वर दण्ड में जाना होता था । लड़की न देखली ,लडक़ी के भाई  देखली।  तब  फोटो और बायोडाटा का जमाना नहीं था। अथक प्रयास के बाद 1964 में छोटी बहन का विवाह हो गया। अब हम हायर सेकेंडरी फाइनल के लिए सेंट अप किये जा चुके थे।कीस्टो बाबू ने मैथ में पास करने का गुर सिखाया कि रेखा गणित का सारा साध्य रट जाओ  ।उसके बाद तुम्हें पास करने से कोई रोक नहीं सकता। मैंने रात रात भर जागकर वैसा ही किया । उन्हीं के कहने पर अर्थमेटिक भी हल करने की कोशिश की। 1965 के जनवरी माह में फाइनल इम्तिहान दे ही दिया । मेरी माँ ही लखीसराय में डेरा लेकर हम सबों को समय पर खाना खिला देती थी।पिताजी भी साथ थे । लेकिन मेरी माँ को बराबर डर सता रहा था कि मैं फेल कर जाऊँगा । कवि के बारे में टीचर से लेकर गार्जियन तक उसकी निश्चित सफलता के बारे में आश्वस्त थे । जमुई से चलने वक्त अपना पता लिखा पोस्टकार्ड अपने गुरुदेव कीस्टो प्रसाद सिंह जी को देकर आये थे कि रिजल्ट आने पर तुरत पोस्ट कार्ड डाल दीजिएगा । चूंकि मैं उनका ट्यूसीनिया विद्यार्थी था तो उनको भी मेरी सफलता की चिंता थी । दिग्घी आकर चिंता मुक्त होकर मजे करने लगे।
क्रमशः



Kavi Katha, Jyotendra Mishra, Mangobandar, Gidhaur, Jamui, Khaira, Gidhaur News, Jamui News, Giddhaur, Gidhour, Apna Jamui, Gidhaur Dot Com

Post Top Ad -