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आलेख : निजीकरण पर अंकुश लगाकर व्यवस्था को दुरुस्त करे सरकार



देश में इन दिनों में जो कुछ घटना हो रहा है और उसके पीछे जिस तरह से सारे सरकारी प्रतिष्ठानों को निजी करण करने का प्रयास सरकार एवं सरकारी तंत्र पर कई सवाल खड़ा करते हैं।  ऐसा लगता है कि सरकार के पास ना कोई विकल्प है और ना ही सरकारी प्रतिष्ठानों को चलाने में कोई दिलचस्पी। अभी कुछ दिनों पहले सरकार के ही मंत्री के द्वारा वक्तव्य दिया गया कि सरकार का काम तेल, कोयला बेचना नहीं है, सरकार का काम रेल हवाई चलाना नहीं है, सरकार का काम अन्य चीजों बेचना या चलाने का काम नहीं है।


तो सरकार का काम क्या है ?
आखिर क्यों हमें पूर्वजों के द्वारा मिली विरासत में या फिर प्राकृतिक के द्वारा मिली संसाधनों  जिससे अच्छा खासा लाभ अर्जित कर रहे सरकारी प्रतिष्ठानों निजीकरण किया जा रहा है या फिर उसे बेचा जा रहा है ? क्या सरकारी अपनी नाकामी को छुपाने के लिए यह कदम उठा रही है ?  क्या उन्हें एक निजीकरण का ही रास्ता दिखाई दे रहा है ?
यहां मैं किसी सरकार विशेष पर नहीं बोल रहा हूं चाहे वह कांग्रेस की सरकार हो या फिर बीजेपी की दोनों सरकारों ने वही काम किया है । कांग्रेस की सरकार ने कोल एवं 2G स्पेक्ट्रम के क्षेत्र को निजीकरण किया जिस वजह से सरकार को जो लाभ होना चाहिए था वह प्राइवेट कंपनियों के हाथ लगा। अब बीजेपी सरकार ने समझो पूरा देश को ही निजीकरण कर दिया हो। निजीकरण का लाभ इस प्रकार दिखाया जाता है, जैसे जैसे चुनावी रैली भाषणों में वादे और सपने दिखाए जाते हैं कि निजीकरण से सुविधाएं उपलब्ध होगी निजीकरण के आने से लोगों को लाभ होगा पर हकीकत तो कुछ और बयां करती है ।सुविधाओं के नाम पर लूट होगी और गरीबों का शोषण होगा। आज देश में कई प्राइवेट स्कूल और हॉस्पिटल है, किस तरह से आम जनता का इन प्रतिष्ठानों के द्वारा शोषण की खबरें आती है, किस तरह गरीबों का दोहन किया जाता है और रही बात सुविधा की तो सुविधा के नाम पर सिर्फ देश की लगभग देश आधी आबादी को वंचित कर दिया जाएगा। उनका कारण एक होगा वह है गरीबी या फिर मध्यम परिवार से होना क्योंकि वह उस सुविधा के लाभ लेने लायक ही नहीं हो पाएंगे , जिन सुविधाओं की बड़े-बड़े सपने दिखाए जा रहे हैं। निजीकरण होना देश के लिए एक कंपनी के बस में होने जैसा है जैसा कि हम आजादी के पहले थे निजी करण से बहुत सारी दिक्कतें आने वाली है , जिनमें से कुछ प्रमुख मुद्दे इस प्रकार है :-
 सरकार का कहना है कि रोजगार के अवसर बढ़ेंगे लेकिन कैसा रोजगार यह भी तो जानना जरूरी है। मेरा मानना कि  सिर्फ संविदा कर्मी जैसे बहाल होंगे उनका कार्यकाल 1 या 2 साल का होगा और फिर से शुरू होगा कमियों शोषण कम वेतन माह में उन से काम लिया जाएगा जो कि आज की न्यूनतम मजदूरी के लगभग या उससे कम होगा जिससे ना तो वह अपना परिवार का विकास कर पाएगा और ना ही उन्नति ।
सरकार का एक और कहना है कि सुविधाओं को परिपूर्ण करने वाली कंपनियां आएंगी और देश का विकास करेगी लेकिन मेरा मानना है कि कैसी सुविधा जब हमारे देश में लगभग आधी आबादी गरीबी और मध्यमवर्ग का परिवार रहता क्या आपको लगता है कि वह इन सुविधाओं का लाभ भी ले पाए क्योंकि कंपनियां को तो सिर्फ लाभ चाहिए वह किसी भी मूल्य इतने रख देंगे कि गरीब लोग या मध्यम परिवार के लोगों शायद ही सुविधा का लाभ लें पाएं। फिर सरकार अपने हाथ खड़ा कर देंगे यह हमने नहीं किया यह कंपनियों वालों ने किया फिर उस पर भी राजनीति होगी और फिर हम धीरे-धीरे उन कंपनियों का ही गुलाम हो जाएंगे जैसे हम स्वतंत्र के पहले थे अत्याचार ,दुराचार, अमानवीय व्यवहार होना शुरू हो जाएगा। एक उदाहरण पेश करता हूं
रेल को निजीकरण लगभग कर दिया गया अब उनके  टिकटों पर गौर कीजिएगा टिकटों की कीमत 5000 से 10000 तक की जाएगी तो क्या आपको लगता है कि कोई गरीब आम जनता का शोषण नहीं हैं?  चलिए मान लीजिए कोई गरीब यदि उन टिकट का मूल्य भी चुका देता है और वह सफर करता है , तो क्या उस रेलगाड़ी में उसे हीन- भावना से नहीं देखेंगे? क्योंकि वहां तो अधिकांश लोग अमीर परिवार से या फिर होगा उसे अगले स्टेशन पर कहीं उतरने को ना बोल दिया जाए क्योंकि अक्सर खबरें आती रहती हैं कि बड़े बड़े मॉल या फिर रेस्टोरेंट्स में गरीबों को बाहर निकाल दिया जाता है तो हम कैसे मान लें कि यह सफर में गरीबों के साथ ऐसा नहीं होगा । इसकी गारंटी हमें कौन देगा कि उनके साथ अन्याय नहीं होगा क्या हम कंपनी के गुलाम होकर रह जाएंगे ?  क्या गांधी जी ने ये सपना हमारे देश के विकास के लिए देखा था? गांधीजी को अफ्रीका में रेल से नीचे उतार दिया गया था तो उन्होंने वहां आंदोलन छेड़ दिया था। क्या हम फिर उसी युग की ओर लौट रहे हैं  , जहां मानवीय जीवन का कोई मोल नहीं रहेगा और हमें फिर से संघर्षपूर्ण जीवन जीने को बाध्य होना पड़ेगा।
कई सरकारी कार्यालय निजीकरण के अंदर आ गए कई स्वास्थ्य विभाग की सेवाएं भी वितरण के अंदर आ चुकी है फिर भी व्यवस्था वही की वही है। यहां सरकार को चाहिए की निजीकरण ना करके अपने सरकारी व्यवस्था को दुरुस्त करने की और निजिकरण में अपने हितैषी प्राइवेट कंपनियों को लाभ पहुंचाने से बेहतर है कि सरकार सरकारी क्षेत्र को बढ़ावा दें एवं उसे दुरुस्त करें और बेहतर सुविधा साधन देश की जनता को उपलब्ध कराएं।

( उक्त आलेख गिद्धौर निवासी प्रमित कुमार ✍️ की स्वयं लिखित रचना है)

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