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Wednesday, 6 May 2020

आखिरकार बिहार से छीन लिया गया रेलवे प्रशिक्षण संस्थान, वर्षों की साज़िश में केंद्र सरकार व रेलवे बोर्ड कामयाब

पटना | अनूप नारायण :
जमालपुर के रेलवे प्रशिक्षण संस्थान को  लखनऊ हस्तांतरित करने का नोटिस।
भारतीय रेलवे ने बिहार के सबसे पुराने प्रशिक्षण संस्थान को बंद करने का निर्णय लिया है । रेलवे ने इस संबंध में  पत्र लिख दिनांक 27-04-20 को अधीन विभाग देकर संस्था को बंद कर लखनऊ हस्तांतरित करने का आदेश दे दिया है।
एशिया का सबसे बड़ा व प्रसिद्ध रेल इंजन कारखाना जमालपुर की स्थापना 8 फरवरी 1862 को हुई थी। बताते चले कि  इंडियन रेलवे इंस्टीट्यूट ऑफ मैकेनिकल एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग(IRIMEE, इरिमी) नाम से यह प्रशिक्षण संस्थान 1888 में खोला गया, इसमें 1927 से रेलवे के मैकेनिकल इंजीनियरिंग को प्रशिक्षण दिया जाता  रहा है । रेलवे के छह मुख्य संस्था में यह सबसे पुराना है।
पहले भी केंद्र सरकार पर इस संस्थान को साज़िश के तहत बन्द करने के प्रयास का आरोप लगता रहा है। 2015-16 में भी ऐसे प्रयास हुए थे, तब मधेपुरा सांसद पप्पू यादव ने इसके विरोध में आवाज उठाई थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी केंद्र सरकार के फैसले पर रोष जताया था। उनका कहना था की प्रधानमंत्री रेलवे यूनिवर्सिटी बनाना चाहते हैं देश में, तो क्यों नही जमालपुर के इस संस्थान को ही यूनिवर्सिटी बना देते। तब हंगमा होने के बाद रेलवे बोर्ड ने आश्वासन दिया था कि संस्थान बंद नही होगा।
लेकिन पिछले कुछ साल के समाचारों पर गौर करें, तो यही लगता है की रेलवे बोर्ड ने कोई कमी नही छोड़ी इस संस्थान हो यहां से हटाने में। बीते सालों में यहां से ट्रेनिंग लेने वाले रेलवे कर्मचारियों की संख्या लगातार कम की जाती रही।
वर्ष 2016 से एससीआरए का नामांकन है बंद, अब इरिमी स्थानांतरण होना तय।

वर्ष 2016 में रेलवे बोर्ड, नई दिल्ली और यूपीएससी विभाग की ओर से विशेष श्रेणी रेलवे शिशिक्षु (एससीआरए) के लिए परीक्षाएं व नामांकन एक साथ बंद कर दी गयी थी। इरिमी में आखिरी बैच 2015 के मात्र 6 प्रशिक्षु शेष रह गए हैं। हालांकि यहां इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ मेकनीकल इंजीनियर्स (आईआरएसएमई) सहित डिप्टी, फोरमैन, चार्जमैन सहित अन्य रेलवे पदाधिकारियों का ट्रेनिंग व पढ़ाई चल रही है। लेकिन इरिमी स्थानांतरण होने के बाद अब जमालपुर सिर्फ ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट बनकर रह जाएगा।
एकतरफ बिहार के लोग आस लगाए बैठे हैं कि बिहार में रोजगार की संभावना बढ़ाने के लिए राज्य सरकार व केंद्र सरकार कोई इंडस्ट्री लाएगी, इधर जो सहारा पहले से है वो भी छीन लिया जा रहा है। आज कोरोना संकट के चलते बिहारी मजदूर पैदल हजारों किलोमीटर चलकर मर रहे हैं, वापस कभी मुम्बई-दिल्ली ना जाने की बात कर रहे हैं, लेकिन ऐसे में लगता नही उनके पास दूसरे राज्यों में अपमानित होने के अलावा कोई दूसरा विकल्प है।

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