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वास्तु शास्त्र मानव जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण





धर्म एवं आध्यात्म [अनूप नारायण] :

वास्तु शास्त्र की अवधारणा
वास्तु का मूल अर्थ निवास स्थान से होता है। इसके सिद्धांत वातावरण में पंच तत्वों (जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश) के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं। जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश इन पाँचों तत्वों का हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ता है। यह विद्या भारत की प्राचीनतम विद्याओं में से एक है जिसका संबंध दिशाओं और ऊर्जाओं से है। इसके अंतर्गत दिशाओं को आधार बनाकर आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं को कुछ इस तरह सकारात्मक किया जाता है, ताकि वह मानव जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव ना डाल सकें।
                                              विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् भगवान विश्वकर्मा के मुताबिक शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। वास्तु शिल्पशास्त्र का ज्ञान मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कराकर लोक मे परमानन्द उत्पन्न करता है, इसीलिए वास्तु शिल्पज्ञान के बिना निवास करने का संसार मे कोई महत्व नहीं है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय है। वास्तु एक प्राचीन विज्ञान है। हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे आसपास की सृष्टि में व्याप्त अनिष्ट शक्तियो से हमारी रक्षा के उद्देश्य से इस विज्ञान का विकास किया। वास्तु का उद्भव स्थापत्य वेद से हुआ है, जो अथर्ववेद का अंग है। इस सृष्टि के साथ-साथ मानव शरीर भी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है तथा वास्तु शास्त्र के अनुसार यही तत्व जीवन तथा जगत को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक है।
भवन निर्माण में भूखंड एवं उसके आसपास के स्थानों का महत्व बहुत अहम होता है। भूखंड की शुभ-अशुभ दशा का अनुमान वास्तुविद् आसपास की चीजो को देखकर ही लगाते है। भूखंड की किस दिशा की ओर क्या है और उसका भूखंड पर कैसा प्रभाव पड़ेगा, इसकी जानकारी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतो के अध्ययन विश्लेषण से ही मिल सकती है। इसके सिद्धांतो के अनुरूप निर्मित भवन मे रहने वालो के जीवन के सुखमय होने की संभावना प्रबल हो जाती है। हर मनुष्य की इच्छा होती है कि उसका घर सुंदर और सुखद हो, जहां सकारात्मक ऊर्जा का वास हो, जहां रहने वालों का जीवन सुखमय हो। इसके लिए आवश्यक है कि घर वास्तु सिद्धांतो के अनुरूप हो और यदि उसमे कोई वास्तु दोष हो, तो उसका वास्तुसम्मत सुधार किया जाए। यदि मकान की दिशाओ मे या भूमि मे दोष हो तो उस पर कितनी भी लागत लगाकर मकान खड़ा किया जाए, उसमे रहने वालो की जीवन सुखमय नहीं होता। मुगल कालीन भवनो, मिस्र के पिरामिड आदि के निर्माण-कार्य मे वास्तुशास्त्र का सहारा लिया गया है।

वास्तु शास्त्र का पौराणिक महत्व : –

वास्तु का प्रभाव चिर स्थायी है, क्योंकि पृथ्वी का यह झुकाव शाश्वत है, ब्रह्माण्ड में ग्रहो की चुम्बकीय शक्तियो के आधारभूत सिध्दांत पर यह निर्भर है और सारे विश्व मे व्याप्त है इसलिए वास्तु शास्त्र के नियम भी शाश्वत है, सिध्दांत आधारित, विश्वव्यापी एवं सर्वग्राहा है। किसी भी विज्ञान के लिए अनिवार्य सभी गुण तर्क संगतता, साध्यता, स्थायित्व, सिध्दांत परकता एवं लाभदायकता वास्तु के स्थायी गुण है। इसीलिए वास्तु को हम बेहिचक वास्तु विज्ञान कह सकते है।

वास्तु व ज्योतिष शास्त्र में पूरकता
वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र दोनो एक-दूसरे के पूरक है क्योंकि दोनो एक-दूसरे के अभिन्न अंग हैं। जैसे शरीर का अपने विविध अंगों के साथ अटूट संबंध होता है। ठीक उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र का अपनी सभी शाखायें प्रश्न शास्त्र, अंक शास्त्र, वास्तु शास्त्र आदि के साथ अटूट संबंध है। ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र के बीच निकटता का कारण यह है कि दोनों का उद्भव वैदिक संहितायों से हुआ है। दोनों शास्त्रों का लक्ष्य मानव मात्र को प्रगति एवं उन्नति की राह पर अग्रसर कराना है एवं सुरक्षा देना है। वास्तु सिद्धांत के अनुरूप निर्मित भवन एवं उसमे वास्तु सम्मत दिशाओं मे सही स्थानों पर रखी गई वस्तुओं के फलस्वरूप उसमे रहने वाले लोगो का जीवन शांतिपूर्ण और सुखमय होता है। इसलिए उचित यह है कि भवन का निर्माण किसी वास्तुविद से परामर्श लेकर वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप ही करना चाहिए। इस तरह, मनुष्य के जीवन मे वास्तु का महत्व अहम होता है। इसके अनुरूप भवन निर्माण से उसमे सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। फलस्वरूप उसमे रहने वालों का जीवन सुखमय होता है। वहीं, परिवार के सदस्यों को उनके हर कार्य मे सफलता मिलती है।

सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह कराता है वास्तु शास्त्र

ऊर्जा स्रोत में चुंबकीय, थर्मल और विद्युत ऊर्जा भी शामिल होगी। जब हम इन सभी ऊर्जाओं का आनन्दमय उपयोग करते हैं, तो यह हमें अत्यंत आंतरिक खुशी, मन की शांति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिए धन प्रदान करती हैं। वास्तु को किसी भी प्रकार के कमरे, घर, वाणिज्यिक या आवासीय संपत्ति, बंगले, विला, मंदिर, नगर, नियोजन आदि के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वास्तु छोटी एवं बड़ी परियोजनाओं एवं उपक्रमों पर भी लागू होता है। पूर्ण सामंजस्य बनाने के लिए तीन बल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनमें जल, अग्नि एवं वायु शामिल हैं। वास्तु के अनुसार, वहां पूर्ण सद्भाव और शांति होगी, जहां यह तीनों बल अपनी सही जगह पर स्थित होंगे। अगर इन तीन बलों की जगह में आपसी परिवर्तन यानी गड़बड़ी होती है, जैसे कि जल की जगह वायु या अग्नि को रखा जाए तथा अन्य ताकत का गलत स्थानांतरण हो तो इस गलत संयोजन का जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण सद्भाव की कमी एवं अशांति पैदा होती है।