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जहाँ माँ भगवती को चुनरी चढ़ाने से भक्तों की पुरी होती है मुराद


धर्म एवं आध्यात्म | अनूप नारायण :
अंग क्षेत्र में शक्ति सिद्धि पीठ स्थल तिलडीहा दुर्गा मंदिर की प्रसिद्धी बिहार ही नही बल्कि झारखंड, बंगाल,यूपी,नेपाल आदि देश विदेश के कोने कोने तक फैली हुई है । वैसे तिलडीहा दुर्गा मंदिर का इतिहास 400 वर्ष प्राचीन का है . जो स्थापना काल से ही गौरवशाली रहा है . बंगाल राज्य के शांन्तिपुरा जिले के दालपोसा गांव के हरिवल्लव दास शक्ति के पूजारी थे . जहां वर्ष 1603 ई० में तांत्रिक विधि से 105 नरमुंड पर तिलडीहा स्थित बदुआ नदी के किनारे श्मशान घाट में माँ भगवती की स्थापना की थी . वर्तमान में उसी के बंशज इस मंदिर के मेंढ़पति योगेश चन्द्र दास है . बदलते समय के मुताबिक समय समय पर इस मंदिर का स्वरूप में भी परिवर्तन किया गया . जहां पूर्व में पुआल के मंदिर से खपड़ैल व फिर खपड़ैल से पक्के का बना दिया किन्तू मंदिर की अंदर की जमीन व प्रतिमा पिंड आद भी मिट्टी के ही है . जहां इस मंदिर को लोग आज भी खप्पड़वाली मां के नाम से जानते है . इस मंदिर की एक खास बिशेषता है कि यहां मां भगवती के खड़ग,व अरधा प्राचीन काल का है . जहां पहलि बलि मां भगवती को इस खड़ग से बंद मंदिर में मेंढ़पति के द्वारा ही दिया जाता है . यहां की एक और बिशेषता है कि यहां एक ही मेढ़ पर कृष्ण, काली,मां भगवती, सरस्वती, लक्ष्मी,के साथ साथ भगवान शंकर का प्रतिमा भी स्थापित किया जाता है जो देश के गिने चुने स्थानो पर है . यहां की ऐसा मान्यता है कि मां भगवती को लाल चुनरी बहुत ही प्रिय है जिसे चढ़ाने से भक्तो की मन्नते पुरी होती है . इसी आस्था व विश्वास के साथ श्रद्धालू यहां दशहरा के महाअष्टमी के साथ साथ प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को बिहार,झारखंड, बंगाल,यूपी,नेपाल जैसे राज्यो के कोने कोने से बड़ी संख्या में श्रद्धालू यहां पहुंचकर मां भगवती को चुनरी चढ़ाकर मन्नते मांगते है . जहां मन्नते पुरी होने पर श्रद्धालू मां को खुश करने के लिए बकरे की बलि चढ़ाते है . यहां की भक्ति में शक्ति ऐसी है कि प्रत्येक साल इस मंदिर में तीस हजार से भी ज्यादा बकरे की बलि दी जाती है . तिलडीहा दुर्गा मंदिर में मां भगवती को नवरात्रा में प्रथम पूजा व महाअष्टमी को गंगा जल से जलाभिषेक करने की भी बहुत पुरानी परंम्परा है . ऐसी मान्यता है कि तिलडीहा दुर्गा मंदिर में मां भगवती को जल सहित जल पात्र चढ़ा देने से उन भक्तो पर मां की बिशेष कृपा रहती है . खासकर सुनी गोद के शिकार महिलाए द्वारा महाअष्टमी के दिन यहां मां भगवती को डलिया चढ़ाने से उनकी सुनी गोद संतान से भर जाती है वैसे श्रद्धालू को नौवमी के दिन इस मंदिर में मुंडन का अनुष्ठान कराना अनिवार्य हो जाता है . यह हर वर्ष हजारौ श्रद्धालूओ दुर -दुर से मुंडन का अनुष्ठान कराने आते है . शक्ति सिद्धि पीठ रहने के कारण बिहार ,झारखंड,बंगाल,यूपी,आदि राज्यो से सैकड़ो तांत्रिक तंत्र मंत्र विधा की सिद्धि के लिए अष्टमी को पहुचते है इतना बड़ा आयोजन में ग्रामीण व जिला प्रशासन के साथ साथ मुंगेर जिला प्रशासन का काफी सहयोग रहता है . करोड़ो का सालाना आय आने वाली यह मंदिर न तो किसी ट्रस्ट के अधीन है और न ही कोई आय व्यय का ब्यौरा ही उपलब्ध है . मेंढ़पति परिवार ही मंदिर में आने वाली करोड़ो रूपया की आय का संचय कर मंदिर को चलाते है.