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बुधवार, 22 जनवरी 2020

संपादकीय : दिल्ली में जदयू-लोजपा से भाजपा का गठबंधन! क्या झारखंड चुनाव परिणाम का है असर?

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संपादकीय | सुशान्त साईं सुन्दरम : 
अतिमहत्वाकांक्षा के कारण भाजपा ने झारखंड में सीट शेयरिंग के फार्मूले पर बात न बनने पर आजसू से गठबंधन तोड़ बगैर गठबंधन ही विधानसभा चुनाव लड़ा।
हालांकि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि उनकी पार्ट झारखंड में अकेले चुनाव लड़ेगी लेकिन प्रत्याशियों की घोषणा के अंत समय तक भी लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान झारखंड में भाजपा के साथ गठबंधन करने के इच्छुक थे, यह उन्होंने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उसी दौरान पटना पहुंचने पर भी मीडिया से कहा था।
लेकिन भाजपा बिहार में एनडीए के सहयोगियों को झारखंड में दरकिनार कर अकेले ही चुनावी मैदान में उतरी। अबकी बार 65 पर के नारे के बाद भी भाजपा का झारखंड विधानसभा चुनाव में जो हश्र हुआ वो भारतीय राजनीति में लंबे समय तक याद रखा जाएगा।
दिल्ली में जिस समय जे. पी. नड्डा की भारतीय जनता पार्टी के ग्यारहवें राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हो रही थी, उसी समय दूसरी ओर शिरोमणि अकाली दल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया। शिरोमणि अकाली दल से पंजाब में भाजपा की पक्की वाली गठबंधन है।
शिअद वर्ष 1998 से दिल्ली विधानसभा में भाजपा के गठबंधन की साथी रही है। गठबंधन तोड़ने का कारण सीट और सिंबल दोनों रहा। अब तक शिअद दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ती आ रही है, लेकिन इस बार उन्होंने कहा कि वे अपने सिंबल तराजू पर लड़ना चाहते हैं। साथ ही कुछ सीटों पर भी उन्होंने दावेदारी ठोंक दी। इसके अलावा एक और कारण रहा कि शिअद एनआरसी के ख़िलाफ़त में है। शिअद के प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि बीजेपी चाह रही है कि शिअद एनआरसी का समर्थन कर, जो सम्भव नहीं है। शिअद का कहना है कि सभी धर्मों के लोगों को नागरिकता दी जानी चाहिए।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की छवि दिल्लीवासियों के लिए प्रभावशाली रही है। गठबंधन टूट जाने की वजह से झारखंड में सत्ता में रही भाजपा को मुंह की खानी पड़ी थी। इसी डर की वजह से शिअद से गठबंधन टूटने के बाद लास्ट मोमेंट में दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए आनन-फानन में नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी से भाजपा ने गठबंधन कर लिया। इस नए गठबंधन के तहत जदयू दो सीटों पर और लोजपा एक सीट पर चुनाव लड़ रही है।
ये तीनों सीटें वो हैं जहाँ पूर्वांचल अथवा बिहार-झारखंड के लोग अधिकाधिक संख्या में बसे हैं। भाजपा का मानना है कि जदयू और लोजपा बिहार एनडीए में गठबंधन की साथी है और चूंकि वहां एनडीए की सरकार है तो इसे भुनाकर ये सीटें निकाली जा सकती हैं।
हालांकि चुनाव परिणाम आने के बाद ही यह सामने आएगा कि दिल्ली में यह चुनाव पूर्व हुए नए गठबंधन का फायदा भारतीय जनता पार्टी को किस हद तक मिलेगा। वैसे तो उनके प्रदेशाध्यक्ष मनोज तिवारी भी पूर्वांचली ही हैं। खैर जो भी हो लेकिन फिलहाल तो दिल्ली की आबोहवा जो शोर मचा रही है उससे तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि दिल्लीवासी एक बार फिर कहेंगे - 'लगे रहो केजरीवाल!'

[सुशान्त साईं सुन्दरम gidhaur.com के एडिटर-इन-चीफ़ हैं]

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