आलेख (राहुल कुमार, अलीगंज)
रोज की तरह सुधीर जी बैंक से लौटे तो उन्होंने देखा धनंजय आज फिर उसी अड्डे पर अपने जाने पहचाने लोगों के साथ बैठकर दावा ठोक रहा है। सुधीर जी एक बैंक कर्मचारी हैं। पेशे से वो कैशियर का काम करते हैं और धनंजय के घर के करीब ही एक किराए के घर में रहते हैं।
सुधीर जी ने धनंजय से कहा कि ताश खेलना बहुत गलत बात है। तुम मेरी बात मान लो और जितनी जल्दी हो सके तुम इस काम को छोड़ दो। जिस राह पर तुम चल रहे हो तो फिर तुम्हें किसी और काम मे मन नहीं लगेगा, और तुम्हारा साथ भगवान भी नहीं देंगे तुम भगवान को कभी देख भी नहीं पाओगे। जहां तक मेरा मानना है की जो जुआ- ताश खेलते हैं अगर उन्हें वास्तव में जीत नहीं मिली तो वह अपने किस्मत को दोष देते हैं या फिर भगवान को। धनंजय भी उस बैंक कर्मचारी से इन बातों को लेकर उलझ गया कि मै बेकार की बातों पर विश्वास नहीं रखता जो है ही नहीं वो साथ क्या देगा, क्योंकि भगवान इस पूरे दुनिया में कहीं नहीं है। क्या तुम कभी ऐसे आदमी से मिले हो। अगर भगवान नहीं है होते तो धरती का सौन्दर्य- ये धूप, पेड़-पौधे ये फसले खुद-ब-खुद समय-समय पर कैसे उग आते हैं। ये नदी, कछार, जंगल, पहाड़ और यह सब के कैसे बन गए। धनंजय ने ताश की गड्डी को पीसते हुए कहा कि क्या आपने देखा इतनी बड़ी धरती को बनते हुए? नहीं ना,। सुधीर जी धनंजय की बात सुनने के बाद लम्बी सांस लेते हुए कहा इतना तो सब जानता है की भगवान का न कोई आकार है न कोई रंग होता है। आफत या संकट की घड़ी में जब दिल के आखिरी छोर पर भगवान के होने का हल्का सा भी एहसास होता है तो, बड़ा ही सुकून मिलता है। हम एक बात तो नहीं झूठलाई जा सकती है कि जब हमारे परिवार का कोई सदस्य जिंदगी और मौत के बीच लड़ रहा होता है तो डॉक्टर से कहीं ज्यादा भरोसा भगवान पर ही करते हैं उन लोगों का यकीन महसूस करने लायक होता है।
यह सब सुनकर धनंजय ने बैंक मैनेजर पर हंसते हुए कहा इतनी बाते तो आप बोल गए पर आप शायद यह बताना भूल गए कि भगवान् धरती या बादल के किस कोने में रहता है। आओ मेरे साथ मै यह साबित कर सकता हूं की भगवान्-उगवान की कोई चीज कहीं नहीं है।
फेंटे ताश के बावन (52) पत्तों को वहीं छोड़कर धनंजय अपने घर के छत पर चला गया। सुधीर जी ये सुनकर अवाक रह गए उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिर उसके छत पर ऐसा क्या है जिससे वह सिद्ध कर देगा की भगवान का कोई अस्तित्व नहीं है। वो भी छत पर पहुंचे।
धनंजय आसमान की ओर देख रहा होता एक लगातार बिना पलके झपके। सुधीर ने उस धनंजय से पूछ ही दिया कि यहाँ क्या है?
पिछले सप्ताह भी हमारी इस विषय पर बहस हुई थी तो आपने कहा था कि भगवान तो सब जगह है तो मैं उसी दिन यहां पर आकर प्रार्थना किया था कि ये भगवान् जी मैं पिछले कुछ दिनों से जुआ मे क्यों हार रहा हूं?। अगर आपकी आवाज़ मुझ तक नहीं पहुंचती, तो कम से कम एक बार मुझसे मिलने आओ और आकर कह दो कि जुआ खेलना गलत बात है। मै वादा करता हूं की जुआ खेलना बंद कर दूंगा। अब इन्हें कौन समझाए की तुमने तो उसी को अपनाया जिससे भगवान को बुरा लगता है।
धनंजय के कंधे पर हाथ रखकर सुधीर जी ने कहा मेरे दोस्त जब तक हमारे अंदर बुराइयां होती है तो, हमे पुरे संसार में ही बुराई नजर आती है। ऐसे सोच रखने वाले को कोई कैसे समझा सकता है कि आपका मन भगवान से जितना दूर है, परमात्मा आपसे उतना ही दूर है। इसमें परेशानी की क्या बात है तुम अभी अपनी आंखें बंद करो, जब तक भगवान् के रूप की कल्पना रहेगी। उतने समय तक वे तुम्हारे ह्रदय में ही रहेंगे। वो महाशय इतनी बाते बोलकर घर चले आये। थोड़ी देर बाद धनंजय क्षमा मांगने के लिए सुधीर जी के पास आया। माफी मांगने के साथ धनंजय ने पूछा की कैसे इस कलयुग में मुझ जैसे लोग भगवान को पा सकते हैं सुधीर जी ने उत्सुकता बस कहा कि उसको पाने के एक साधारण तरीका यह भी है अच्छे लोगों से लगाव रखो इससे फायदा होता है कि हमारे सोच मे बदलाव होने लगता है सोचने का तरीका भी बेहतरीन हो जाता है। और बुरे संगत इसे कहते हैं की जिस तरह नींबू के रस का मात्र एक बूंद हजारों लीटर दूध को बर्बाद कर देता है उसी तरह बुरे व्यक्ति हमारे सही नजरियों को खोखला कर देता है।
मैनेजर साहब की बात समझाने के इस अलग अंदाज़ से प्रभावित होकर मै तो बस अपने अंतर्मन से, यही विनती करता हूं कि हे भगवान् मुझ जैसे हजारों लोग जो बेहतर रास्ते से भटक गये हैं उन्हें तो सही मार्ग पर लाने के लिए ज़मीन पर आ जाइए ... ।
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