अजब गजब! बिहार के एक ऐसे पेड़ की कहानी जो अपने आप में है खास - gidhaur.com : Gidhaur - गिद्धौर - Gidhaur News - Bihar - Jamui - जमुई - Jamui Samachar - जमुई समाचार

Breaking

A venture of Aryavarta Media

Post Top Ad

Post Top Ad

Monday, 9 December 2019

अजब गजब! बिहार के एक ऐसे पेड़ की कहानी जो अपने आप में है खास


09 DEC 2019

गोपालगंज/पटना [अनूप नारायण] : यह जंगल नहीं, बल्कि 150 साल पुराना वटवृक्ष है। इसकी करीब 200 शाखाएं एक बीघा क्षेत्र में फैली हैं। यह पेड़ गोपालगंज जिला मुख्यालय से 52 किलोमीटर दूर बैकुंठपुर प्रखंड के राजापट्टी कोठी स्थित सोनासती देवी मंदिर के पास है। इसे अंग्रेजों ने संरक्षित किया था। अंग्रेज यहां नील की खेती किया करते थे। इसकी खासियत यह है कि इसके नीचे तापमान 5 से 6 डिग्री कम रहता है।
कालांतर में अंग्रेज यहां नील की खेती किया करते थे. उस दौरान यहां काम कर रहे मजदूरों को छाया और गर्मी के दिनों में ठंडक देने के लिए इस पेड़ को लगाया गया था. इस पेड़ की खासियत यह है कि इस पेड़ के बीच में और नीचे तापमान अन्य जगहों से 5 से 6 डिग्री कम रहता है. गर्मी के दिनों में चलने वाली लू और गर्म हवाएं भी इसकी छाया में पहुंच कर ठंडी हो जाती है.

● अपने आप में जंगल दिखता है ये पेड़

इस पेड़ की शाखाएं एक-दूसरे से गूंथकर जमीन में अपनी मोटी जड़ें जमा चुकी हैं. जड़ों के लिहाज से यहां सिर्फ एक पेड़ की वजह से जंगल जैसा नजारा दिखता है. इस वट वृक्ष की मोटी जड़ें 50 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड सोखती हैं. ऐसा जानकर मानते है. ये शाखाएं अपने आप में कार्बन सोखने के लिए फ़िल्टर का काम करती है.

● पर्यावरणविद बोले

पर्यावरणविद और वनस्पति विज्ञान के प्रोफ़ेसर डॉ सरफराज अहमद के मुताबिक ऐसे पेड़ को अक्षय वट कहते हैं. इसका बॉटेनिकल नाम- फिक्स रीलिजोसा है. इसकी फैमिली-मोरसिया है. इसकी शाखाएं 50 से 60 किलो ग्राम कार्बन-डाईऑक्साइड सोखतीं है. अधिक मात्रा में कार्बन अवशोषित करने के चलते यह ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करता है. ऐसे पुराने पेड़ जितना ज्यादा घने और ज्यादा शाखाएं होती हैं वो नमी और ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करती हैं. यही कारण है कि जब बाहर का तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच हो तो इसकी छाया में पारा 30 से 35 डिग्री रहता है.

● अंग्रेजों ने किया था संरक्षित

बताया जाता है कि महिला अंग्रेज हेलेन ने इस पेड़ को संरक्षित किया था. इस पेड़ के सामने अंग्रेजों की हवेली का खंडहर हुआ करता था जो अब दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती. लेकिन यह विशाल वट वृक्ष आज भी वैसे ही खड़ा है. ब्रिटिश हुकूमत में यहां नील की खेती होती थी. कोठी में अंग्रेज अधिकारी के साथ उनकी पत्नी हेलेन भी रहती थी. आसपास की महिलाएं यहां सोनासती मईया की पूजा करने आती थीं. तब हेलेन ने इस पेड़ को संरक्षित किया था, ताकि पूजा-पाठ हो और मजदूरों को छाया मिल सके.

Post Top Ad